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गलती करना मानवीय स्वभाव है : छात्रवृत्ति के दस्तावेजों में फर्जीवाड़े के लिए निकाले गए छात्र के बचाव में आया दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]
![गलती करना मानवीय स्वभाव है : छात्रवृत्ति के दस्तावेजों में फर्जीवाड़े के लिए निकाले गए छात्र के बचाव में आया दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें] गलती करना मानवीय स्वभाव है : छात्रवृत्ति के दस्तावेजों में फर्जीवाड़े के लिए निकाले गए छात्र के बचाव में आया दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/05/Delhi-High-Court-2.jpg)
दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को इस बात जोर दिया कि छात्रों को अपराधी माने बिना कॉलेजों में अनुशासन बनाए रखने की जरूरत है। कोर्ट ने उस मेडिकल छात्र का बचाव किया जिसे छात्रवृत्ति के दस्तावेजों में फर्जीवाड़े के लिए छह साल पहले कॉलेज से निष्कासित कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति विपिन संघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कहा, “हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि गलती करना मानवीय स्वभाव है। किशोर वय और युवावस्था किसी भी व्यक्ति के जीवन में एक ऐसी अवस्था होती है जब क्या सही और क्या गलत है इसकी परवाह किये बिना वे गलतियां करते हैं और अपने इस कदम के गंभीर परिणामों की भी परवाह नहीं करते। वैसे याचिकाकर्ता हो सकता है कि उक्त गलती करने के समय वयस्क होने की उम्र को पार कर गया होगा, पर उस समय भी वह काफी युवा था।”
पीठ ने कहा कि विभिन्न अदालत छात्रों को ऐसे दंड देने का अनुमोदन करती रही है जो उनमें सुधार ला सके और कहा, “यह लगातार माना जाता रहा है कि छात्रों को दंड देते समय यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि वे अपराधी नहीं हैं और उनपर जो दंड लगाए जाएं उससे उनमें यह भावना नहीं आए कि उनके साथ कुछ गलत हुआ है। संबंधित संस्थानों में अनुशासन बनाए रखने की बात का ध्यान रखते हुए ध्येय उनको सही रास्ते पर लाना होना चाहिए।”
कोर्ट प्रभात कुमार सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। एकल जज की पीठ ने प्रभात को कॉलेज से निष्काषित करने के फैसले को सही ठहराया था।
प्रभात ने आर्मी कॉलेज ऑफ़ मेडिकल साइंसेज के एमबीबीएस कोर्स में दाखिला लिया था। छात्र रहते हुए प्रभात ने एक मेडिकल कैंप में हिस्सा लिया और कई गरीब मरीजों को चिकित्सकीय सलाह दी। इसकी वजह से कॉलेज अथॉरिटीज ने उसे 2011 में छह माह के लिए निष्काषित कर दिया।
इसके बाद प्रभात को आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग की योजना के तहत अकादमिक वर्ष 2011-12 के लिए छात्रवृत्ति मिली। जांच से पता चला कि उसने इस छात्रवृत्ति के लिए तब आवेदन दिया था जब वह निष्कासन की अवधि में था। जांच समिति ने यह भी पाया कि इस छात्रवृत्ति को पाने के लिए प्रभात ने फर्जी दस्तावेज बनवाए थे और इसलिए समिति ने उसको निष्कासित करने की अनुशंसा की थी जिसे अगस्त 2012 में मान लिया गया।
इसके बाद प्रभात ने अपनी अपील में कहा कि उसको स्थाई रूप से निलंबित करने का मामला अनावश्यक रूप से काफी कठोर है।
कोर्ट ने कहा कि जांच के लिए समिति का गठन जिस तरीके से हुआ उसमें कई बड़ी खामियां हैं और प्रभात के साथ यह समिति ऐसे पेश आई है जैसे वह कोई सेना का अधिकारी हो। समिति यह भूल गई कि वह एक 20 साल का युवक है।
कोर्ट ने इसके बाद कहा कि प्रभात एक बहुत ही पिछड़े पृष्ठभूमि से आता है और उसके फर्जीवाड़े को “बुद्धि रहित बुद्धिमानी” बताया जिसको उसने अपनी जरूरत की पूर्ती के लिए आजमाया। कोर्ट ने कहा कि अपने निलंबन के छह साल बाद वह अब एक परिपक्व व्यक्ति है और अब अपने व्यवहार में ईमानदारी बरतने का वादा किया है।
कोर्ट ने कहा कि उसको जो दंड दिया गया है वह अनावश्यक रूप से कठोर और खौफनाक रूप से गैर अनुपातिक है...इस समय याचिकाकर्ता के निष्कासन को चार साल हो चुका है...जब हम इस छात्र की परिस्थितियों पर गौर करते हैं जिसमें उसकी विनम्र पृष्ठभूमि; उसका उज्जवल अकादमिक करियर; उसकी युवावस्था; शिक्षा पाने का उसका अधिकार; जीवन में अपनी आकांक्षाओं को पाने और जीवन में आगे चलकर कहीं पहुँचने जैसी बातें शामिल हैं और फिर हम पाते हैं कि उसे इन छह सालों में हर ओर से सिर्फ अपमान ही झेलना पड़ा है, तो हमें यह कहते हुए हिचक नहीं हो रही है कि उसको स्थाई रूप से निलंबित करने की सजा अनावश्यक रूप से कठोर और खौफनाक रूप से गैर अनुपातिक है।”
इसलिए कोर्ट ने उसके दंड को कम कर उतनी कर दी है जो वो पूरा कर चुका है और उसको कॉलेज जाने की अनुमति दे दी।