सीआईसी ने कहा, खुद के बचाव के लिए सूचना प्राप्त करना यौन उत्पीड़न के आरोपी का मानवाधिकार है, सीपीआईओ पर लगाया जुर्माना [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

1 July 2018 11:17 AM GMT

  • सीआईसी ने कहा, खुद के बचाव के लिए सूचना प्राप्त करना यौन उत्पीड़न के आरोपी का मानवाधिकार है, सीपीआईओ पर लगाया जुर्माना [आर्डर पढ़े]

    केंदीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने कहा कि यौन उत्पीड़न के दोषी व्यक्ति अगर अपने बचाव के लिए कोई सूचना प्राप्त करना चाहता है तो यह उसका मानवाधिकार है। एक नागरिक और एक आरोपी के रूप में उसको आरटीआई अधिनियम के तहत ऐसा करने का अधिकार है। इसके साथ ही सीआईसी ने सूचना देने से इनकार करने पर पीआईओ पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगाया और उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का आदेश दिया।

    सीआईसी एम श्रीधर आचार्युलू ने सीपीआई की इसलिए आलोचना की क्योंकि उसने याचिकाकर्ता को लिखे गए पत्र के लिए छह रुपए मांगे। उन्होंने कहा कि यह किसी को परेशान करने जैसा है और इसलिए दुर्भावना से प्रेरित लगती है। सीपीआईओ की समस्या है उनकी सोच और उनका व्यवहार।

     सीआईसी उस अपील की सुनवाई कर रहा था जो एक ऐसे व्यक्ति ने दायर की थी जिसके खिलाफ यौन उत्पीड़न के एक मामले की जांच चल रही थी। उसने 15 बिन्दुओं पर सूचनाएं माँगी थी जिनमें उन नामित लोगों के बयान की कॉपी भी शामिल थी जो सीआईसी ने प्रारम्भिक जांच के दौरान हस्तगत किये थे। इसके अलावा आतंरिक शिकायत समिति (आईसीसी) के अध्यक्ष और एक अधिकारी के बीच हुए पत्र व्यवहार की कॉपी भी माँगी गई थी।

    सीपीआईओ ने उनको मांगी गई सूचनाएं नहीं दीं लेकिन तीन दस्तावेज दिए जिससे मांगी गई सूचनाओं का कोई संबंध नहीं है।

    सीपीआईओ ने उसे एक पृष्ठ की सूचना के लिए छह रुपए भी देने को कहा।

    सीआईसी को आश्चर्य इस बात पर हुआ कि सीपीआईओ ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीडन अधिनियम, 2013 के तहत सूचना नहीं दी जो कि मीडिया को यौन उत्पीडन की शिकार महिला की पहचान और उसका पता छापने से रोकता है।  

    याचिकाकर्ता ने सीआईसी में अपील की और कहा कि एक एक ऐसे आरोपी के रूप में जिसके खिलाफ चार्जशीत दाखिल किया जा चुका है, स्वाभाविक न्याय का तकाजा यह है कि इस मामले की जांच से जुड़े सभी दस्तावेजों की प्रमाणित प्रति उसको दी जाए जिसमें गवाहों के बयानों की कॉपी भी शामिल है ताकि वह अपना बचाव प्रभावशाली ढंग से कर सके।

    गवाहों का बयान गोपनीय कैसे?

    सीआईसी ने कहा कि सीपीआईओ इस पर कोई सफाई नहीं दे सका कि इस मामले में इन क्लॉज़ का प्रयोग कैसे हो सकता है। जाहिर है कि उसने अपनी सोच पर भरोसा नहीं किया। गवाहों के बयानों को “ट्रेड सीक्रेट” कैसे कहा जा सकता है? यह पूरी तरह बकवास है।

    “यौन उत्पीडन का आरोप बहुत ही गंभीर आरोप है और अगर यह झूठा है और अगर इसे आरोपी को सूचना देने से रोककर अगर साबित किया जा सकता है तो इससे आरोपी का करियर बर्बाद हो सकता है, उसकी प्रतिष्ठा को हमेशा के लिए नुकसान पहुँच सकता है और उसकी पत्नी और बच्चे के साथ उसके संबंध बिगड़ सकते हिं और उसका गृहस्थ जीवन तबाह हो सकता है।

    सीआईसी ने मनेका गाँधी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सन्दर्भ देते हुए कहा अनुच्छेद 21 के तहत जीने का अधिकार न केवल एक भौतिक अधिकार है बल्कि गरिमा पूर्वक जीने का अधिकार भी इसमें शामिल है।

     सीआईसी ने कहा कि याचिकाकर्ता को पब्लिक अथॉरिटी ने उसे वह दस्तावेज नहीं दिया जो उसे एसएच डब्ल्यू अधिनियम के तहत उसको प्राप्त करने का अधिकार है।

    कल्पना करें कि अगर 20 से 100 रुपए हर दिन खर्च करके यह सीपीआईओ 18 रुपए की मांग करता है तो हर साल राष्ट्रीय खजाने को कितने का घाटा होगा? अगर कोई याचिकाकर्ता 6 रुपए दे भी देता है तो भी 94 रूपए का घाटा होगा। आरटीआई का नियम कहता है कि सीपीआई कॉपी करने का फीस दो रुपए प्रति पृष्ठ के हिसाब से वसूल कर सकता है पर जब ज्यादा खर्च करके उससे दो रुपए वसूलने को नहीं कहा गया है। इस तरह से यह साबित होता है कि ऐसा सिर्फ परेशान करने के लिए किया गया।


     
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