बॉम्बे हाईकोर्ट ने सत्ता में बैठे लोगों से कहा, ऐसा व्यवहार न करें कि लगे कि रिज़र्व बैंक और ईडी नेताओं के हाथों की कठपुतली है [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

29 Jun 2018 6:21 AM GMT

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने सत्ता में बैठे लोगों से कहा, ऐसा व्यवहार न करें कि लगे कि रिज़र्व बैंक और ईडी नेताओं के हाथों की कठपुतली है [निर्णय पढ़ें]

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि सत्ता और विपक्ष में बैठे लोगों को इस तरह से व्यवहार नहीं करना चाहिए कि आम लोगों को लगे कि आरबीआई और प्रवर्तन निदेशालय जैसे संसथान राजनीतिज्ञों के हाथों की कठपुतली है। कोर्ट ने रिज़र्व बैंक को एनडीटीवी के प्रशमन आवेदन पर गौर करने को कहा है।

    पृष्ठभूमि

    तथाकथित फेमा (एफईएमए) उल्लंघन के आरोप में अपने खिलाफ प्रवर्तन निर्देशालय की कार्रवाई शुरू होने के बाद एनडीटीवी ने (प्रशमन) कम्पाउंडिंग आवेदन दायर करने का निर्णय लिया। रिज़र्व बैंक ने इस आवेदन को अस्वीकार कर दिया। फिर रिज़र्व बैंक और प्रवर्तन निदेशालय के इस कदम के खिलाफ उसने एक याचिका दायर की। कोर्ट ने इस रिट याचिका को निपटाते हुए कहा कि रिज़र्व बैंक के समक्ष लंबित प्रशमन प्रक्रिया को जारी रहना चाहिए और ऐसा पूरी तरह क़ानून के तहत होना चाहिए।

    न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी और न्यायमूर्ति भारती एच डांगरे की पीठ ने इस याचिका की सुनवाई करते हुए यह बात कही। एनडीटीवी की पैरवी वरिष्ठ वकील जनक द्वारकादास ने की जिन्होंने पीठ से कहा कि रिज़र्व बैंक, ईडी और सीबीआई जैसी संस्थाओं की अथॉरिटी की अनदेखी की जा रही है।

    कोर्ट ने कहा कि यह बहुत की अफ़सोस की बात है कि एनडीटीवी जैसी पक्षकार इन संस्थाओं की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर संदेह कर रही है। पीठ ने कहा, “किसी को भी इस तरह की बात कोर्ट के समक्ष नहीं कहना चाहिए क्योंकि अगर इसे कार्यवाही में नोट किया जाता है तो इन संस्थाओं की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठेगा। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमें इस तरह की दलील सुननी पड़ रही है। हम उम्मीद करते हैं कि सभी संबंधित लोग हमारी पीड़ा और हमारे गुस्से को समझेंगे।”

    यह जरूरी है कि संस्थान लोगों के विश्वास को बनाए रखे

    पीठ ने कहा, “जो इसके मामले को देख रहे हैं और जो सत्ता में बैठकर उसे निर्देश दे रहे हैं उनको यह समझना चाहिए कि अगर इन संस्थानों के आधार को हिलाया जाता है और अगर ये अपने राजनीतिक आकाओं की बातें मानते हैं जैसा कि आरोप लगाया गया है, तो इससे उनको कुछ हासिल नहीं होगा। राजनीतिक पार्टियां और जो सत्ता और विपक्ष में बैठे हैं उनको यह समझना चाहिए कि सैन्य बल, पुलिस और न्यायपालिका की तरह यह जरूरी है कि ये संस्थान जनता के विश्वास को नहीं तोड़ें। जैसा कि इसके नाम से ही विदित है, प्रवर्तन निदेशालय कई तरह के क़ानून जैसे फेमा और पीएमएलए जैसे क़ानूनों को लागू करता है। इस तरह की संस्थान हमारे विदेशी मुद्रा संसाधन के संरक्षक हैं जिसकी वे सुरक्षा और उनका प्रबंधन और प्रशासन करते हैं...”


     
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