बार एसोसिएशन वकील को किसी व्यक्ति की क़ानूनी मदद करने से नहीं रोक सकता : सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
29 Jun 2018 11:12 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बार एसोसिएशन किसी वकील को किसी व्यक्ति का क़ानूनी प्रतिनिधि बनने और उसकी पैरवी करने से नहीं रोक सकता।
न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर और इंदु मल्होत्रा की अवकाशकालीन पीठ ने दीपक कालरा की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। याचिका में जबलपुर जिला बार एसोसिएशन के उस प्रस्ताव को चुनौती दी गई है जिसमें उसने किसी भी वकील पर उनकी पैरवी करने से रोक लगा दिया है। कालरा का अपनी पत्नी के खिलाफ मामला चल रहा है। 13 जून को सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश राज्य और बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया (बीसीआई) को इस याचिका पर नोटिस जारी किया।
“आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है...अगर इस तरह का कोई प्रस्ताव पास किया गया है, तो उसे वापस ले लिया जाएगा,” न्यायमूर्ति नजीर ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा।
“एक बात तो स्पष्ट है, अगर जिला बार एसोसिएशन ने इस तरह का कोई प्रस्ताव पास किया है, तो उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था...किसी को भी क़ानूनी प्रतिनिधित्व से वंचित नहीं किया जा सकता,” बीसीआई के वकील ने कोर्ट से कहा।
हलांकि उन्होंने कहा कि लेकिन यह दलील कि बार एसोसिएशन ने यह प्रस्ताव पास किया है वह प्रथम दृष्टया गलत पाया गया है क्योंकि कोर्ट के समक्ष याचिका के साथ जो साक्ष्य नत्थी किया गया है वह अखबार में छपी रिपोर्ट है।
याचिकाकर्ता के आग्रह पर पीठ ने सीमित उद्देश्य के लिए सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र की सेवा लेने के बारे में नोटिस जारी किया और कहा गया कि याचिकाकर्ता को वकील के आने जाने, उनके रहने का खर्च उठाना पड़ेगा।
याचिकाकर्ता ने कहा कि मार्च में वह अपनी पत्नी के साथ एक विवाद के मामले में जबलपुर के एक कोर्ट के समक्ष पेश हुआ। सुनवाई के बाद उसकी पत्नी (प्रतिवादी नंबर 6) के वकील ने याचिकाकर्ता पर थप्पड़ मारने का झूठा आरोप लगाया। इसकी वजह से कोर्ट परिसर में हो हल्ला मच गया और याचिकाकर्ता की पिटाई कर दी गई और उसे थाने ले जाया गया।
15 मार्च को जिस दिन याचिकाकर्ता को जमानत पर छोड़ा गया, उसके वकील ने उसको बताया कि जबलपुर जिला बार एसोसिएशन ने एक निर्देश जारी कर सभी वकीलों से उसकी पैरवी नहीं करने को कहा है।
19 मार्च को एक अखबार ने भी एसोसिएशन के इस निर्देश की खबर छापी। 16 मार्च को याचिकाकर्ता ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को लिखा और पुलिस हिरासत में उसके साथ हुई ज्यादती की शिकायत भी की। वहाँ से किसी भी तरह का राहत नहीं मिलने के बाद उसने अब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है।
अपनी याचिका में उसने कहा है कि मोहम्मद अख्तर बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य मामले में मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने हाल के एक फैसले में कहा कि निष्पक्ष और स्वतंत्र ट्रायल किसी आरोपी का मौलिक अधिकार है और किसी वकील का अधिकार भी इसी अधिकार के तहत आता है।