उत्त्तराखंड हाईकोर्ट ने कहा, राज्य सरकार राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय को तीन महीने के भीतर क्रियाशील करे [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
21 Jun 2018 6:59 PM IST
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार से कहा कि वह तीन महीने के भीतर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय को चालू करे। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि नए भवन के निर्माण होने तक राज्य सरकार इसे अभी किसी सरकारी भवन से चलाए या किराए पर कोई भवन ले।
न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति लोक पाल सिंह की पीठ ने अपने निर्देश में कहा कि इस विश्वविद्यालय का प्रथम अकादमिक सत्र इस वर्ष सितम्बर से शुरू हो जाना चाहिए। इस बीच राज्य सरकार उधम सिंह नगर में एनएलयू परिसर का निर्माण कार्य शुरू करने वाली है। कोर्ट ने इस पर गौर करते हुए कहा कि इस शहर में सरकार के पास लगभग 1800 एकड़ जमीन है।
जहां तक इस एनएलयू के कामकाज के तरीके की बात है, कोर्ट ने राज्य को इस बारे में राष्ट्रीय विधि विध्वविद्यालय, उत्तराखंड अधिनियम, 2011 के तहत एक माह के भीतर नियमों के निर्धारण का आदेश दिया और इनके तहत एनएलयू में हर तरह की नियुक्ति एक माह के भीतर करने को कहा।
कोर्ट इस मामले में दो याचिकाओं की सुनवाई कर रहा था. इनमें से एक याचिका डॉ. भूपाल सिंह भाकुनी ने और दूसरी डॉ. महेंद्र सिंह पाल ने दायर की है। इन याचिकाओं में कहा गया है कि 2011 में अधिनियम के पास होने के बावजूद अभी तक राज्य में एनएलयू की स्थापना नहीं हुई है।
याचिकाओं के प्रत्युत्तर में अधिकारियों ने कहा कि इस अधिनियम में कहा गया है कि एनएलयू का मुख्यालय भोवाली,नैनीताल में होगा. हालांकि, इस स्थान पर संस्थान के लिए भूमि उपलब्ध नहीं है। और कहीं और इसका मुख्यालय बनाने के लिए अधिनियम में आवश्यक परिवर्तन करने होंगे ताकि इस मामले में आगे बढ़ा जा सके।
भूमि की उपलब्धता
कोर्ट ने इस बात पर गौर किया कि उधम सिंह नगर में सरकार के पास भूमि उपलब्ध है और उसने अब तक इस विश्वविद्यालय की स्थापना नहीं किये जाने के लिए सरकार की खिंचाई की। कोर्ट ने कहा, “भूमि उपलब्ध नहीं होने की राज्य सरकार की दलील को कोर्ट नहीं स्वीकार कर सकता। हमें जानकारी है कि पर्याप्त भूमि उपलब्ध है।
अगर कोई विश्वविद्यालय स्थापित करने की बात है तो कुछ समस्याएँ तो रहेंगी ही। अगर राज्यस के पास विश्वविद्यालय की स्थापना की इच्छाशक्ति है तो इन समस्याओं को दूर किया जा सकता है जिसका कि अधिनियम की धारा 3 में प्रावधान है।विश्वविद्यालय की स्थापना होनी चाहिए और इसके बाद इसके क्लास किसी भी सरकारी या किराए के भवन में चल सकते हैं।”
कोर्ट ने आगे कहा कि फिलहाल पुस्तकालय की आवश्यकता को नजरअंदाज किया जा सकता है और छात्र कोर्ट के फैसले और कानूनों को ऑनलाइन डाउनलोड कर सकते हैं।
कोर्ट ने सरकार की इस दलील को नहीं माना कि यह नीतिगत मामला है और इसे सरकार पर छोड़ देना चाहिए. कोर्ट ने कहा :
“हम यहाँ नीतिगत मामलों से नहीं जूझ रहे हैं बल्कि एक ऐसे अधिनियम पर गौर कर रहे हैं जिसे विशेषकर एक विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए पास किया गया। काफी लंबा अरसा गुजर जाने के बाद भी इसे आजतक स्थापित नहीं किया गया है और एक सद्प्रयास को अफसरशाही ने विफल कर दिया है। राज्य सरकार के अमले को इतना संवेदनशील होना चाहिए था कि इसकी स्थापना जल्द से जल्द हो जाती।”
कोर्ट ने कहा कि जिस जनहित याचिका पर वह गौर कर रहा है वह इस अदालत में चार साल से लंबित है।
फंड जमा करना राज्य की जिम्मेदारी है
जब कोर्ट को यह बताया गया कि विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए फंड जुटाने हैं, कोर्ट ने कहा कि यह राज्य की जिम्मेदारी है। कोर्ट ने कहा, “जब एनएलयू स्थापित करने का अधिनियम 2011 में पास हुआ तभी से राज्य सरकार को पता था कि इसके लिए धन की जरूरत होगी। धन जमा करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। जहां तक शिक्षा की बात है, इस पर कोई समझौता नहीं हो सकता. एनएलयू राज्य सरकार की एक सफलता हो सकती थी।”
वरिष्ठ एडवोकेट सीडी बहुगुणा ने विश्वविद्यालय चलाने के लिए जरूरी कोष में एक लाख रुपए देने की घोषणा की। उनके इस विचार से सहमति जताते हुए कोर्ट ने बहुगुणा को बार के सदस्यों, जजों और आम लोगों से धन जुटाने को कहा और इसके लिए एक अलग कोष बनाने को कहा जिसके तहत चंदा प्राप्त किया जा सके।