दशकों पहले हुए व्यभिचार के मामले को सही साबित करने के लिए डीएनए टेस्ट की मदद नहीं ली जा सकती; केरल हाईकोर्ट ने 77 वर्षीय पति की याचिका ठुकराई
LiveLaw News Network
19 Jun 2018 5:09 PM IST
‘जब बच्चे बालिग़ होते हैं, तो उनको ऐसे दीवानी मामले में रक्त का नमूना देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता जिसके वे हिस्सा नहीं हैं’
केरल हाईकोर्ट ने 77 वर्षीय एक पति की याचिका खारिज करते हुए कहा कि दशकों पहले हुए व्यभिचार के मामले को साबित करने के लिए डीएनए टेस्ट का सहारा नहीं लिया जा सकता ।
इस व्यक्ति ने फैमिली कोर्ट में अपनी पत्नी से तलाक की अपील की थी यह कहते हुए कि उसकी पत्नी ने उससे कहा था कि उससे पैदा हुए उसके तीन बच्चों का पिता नहीं है। तलाक की अपनी याचिका में इस व्यक्ति ने डीएनए टेस्ट कराने की मांग की थी जिसको अस्वीकार कर दिया गया ।
न्यायमूर्ति केपी ज्योतीन्द्रनाथ ने फ़्रांसीसी दार्शनिक मिशेल द मोंताइन का एक कथन उद्धृत किया :”एक अच्छी शादी एक अंधी पत्नी और एक बहरे पति के बीच ही हो सकती है” ।
न्यायमूर्ति वी चितम्बरेश की पीठ ने कहा कि इनके तीन बालिग़ बच्चे इस मूल मामले का हिस्सा नहीं हैं. “जब बच्चे बालिग़ हो गए हैं, उनको एक दीवानी मामले में जिसका वे हिस्सा नहीं हैं, डीएनए टेस्ट के लिए रक्त का नमूना देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता । याचिकाकर्ता शायद यह साबित करना चाहता है कि अगर डीएनए टेस्ट से यह पता चल जाता है कि तीनों बच्चे उससे पैदा नहीं हुए हैं, तो पत्नी के व्यभिचारी होने की बात साबित हो जाती है” , पीठ ने कहा ।
कोर्ट ने कहा कि सच क्या है इसका पता लगाने के लिए यही टेस्ट कराना जरूरी नहीं है। “...इतने सालों के बाद डीएनए टेस्ट का सहारा पत्नी के व्यभिचार को साबित करने के लिए नहीं लिया जा सकता। डीएनए टेस्ट के आदेश देने भर से समाज में बच्चों की प्रतिष्ठा पर असर पड़ेगा और इस बात का भी ध्यान रखना पड़ेगा कि ये सब के सब बच्चे अब बालिग़ हैं और ये तब पैदा हुए थे जब यह शादी जायज थी और अब वे इस मामले का हिस्सा नहीं हैं, ” कोर्ट ने कहा ।