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पर्यावरण और वन मंत्रालय की अनुमति के बगैर अधिसूचित मसूरी और देहरादून मास्टर प्लान को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने खारिज किया [आर्डर पढ़े]
![पर्यावरण और वन मंत्रालय की अनुमति के बगैर अधिसूचित मसूरी और देहरादून मास्टर प्लान को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने खारिज किया [आर्डर पढ़े] पर्यावरण और वन मंत्रालय की अनुमति के बगैर अधिसूचित मसूरी और देहरादून मास्टर प्लान को उत्तराखंड हाईकोर्ट ने खारिज किया [आर्डर पढ़े]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/01/Uttarakhand-HC-1.jpg)
‘प्रथम मास्टर प्लान 2008 से 2018 के कारण पर्यावरण और पारिस्थितिकी के क्षरण के तथ्यों को कोर्ट अनदेखा नहीं कर सकता क्योंकि इसकी वजह से जो नुकसान हुआ उसे पैसे से कभी पूरा नहीं किया जा सकता’
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मसूरी और देहरादून के लिए उत्तराखंड सरकार के मास्टर प्लान को रद्द कर दिया है। इस मास्टर प्लान को सरकार ने भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय की अनुमति के बिना अधिसूचित कर दिया था।
न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति लोक पल सिंह की पीठ ने कहा की राज्य के प्रथम मास्टर प्लान के कारण पर्यावरण और पारिस्थितिकी को भारी नुकसान हुआ और दून घाटी को हुए नुकसान के लिए उसने पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया था। पीठ ने इस बारे में सतीश चंद्र घिल्डियाल की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कहा।
पीठ ने कहा की सरकार ने बहुत ही निर्दयता और असंवेदनशीलता का परिचय दिया है और केंद्र सरकार की अनुमति लेने की बजाय उसने 2008 में मास्टर प्लान को अधिसूचित कर दिया था।
जहां तक 1988 अधिसूचना की बात है, वह दून घाटी की नाजुक पारिस्थितिकी को देखते हुए जारी किया गया था और यह सुनिश्चित करने के लिए था कि वहाँ निर्माण कार्य पर्यावरण संरक्षण सिद्धांतों के अनुरूप हों, राज्य सरकार को पूरे क्षेत्र का मास्टर प्लान/भूमि के प्रयोग के बारे में योजना बनानी थी और केंद्र सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय को इसको अनुमोदित करना था।
“यह 6 अक्टूबर 1988 को जारी अधिसूचना का पूरी तरह उल्लंघन है। राज्य सरकार ने दून घाटी में पर्यावरण के नष्ट होने के प्रति उचित संवेदनशीलता नहीं दिखाई है। वहाँ पर्यावरण और परिस्थितिकी को नुकसान हो रहा है। हम सब इससे प्रतिकूलतः प्रभावित हो रहे हैं। जलवायु परिवर्तन पहले ही हो गया है। यह समझ में नहीं आ रहा है कि राज्य सरकार ने केंद्र की अनुमति के बिना मास्टर प्लान को क्यों अधिसूचित किया है जो कि क्षेत्रवार सिद्धांत पर शहरीकरण का मैगना कार्टा है। 6 अक्टूबर 1988 को जारी अधिसूचना के अनुरूप केंद्र सरकार की अनुमति के बिना इस अधिसूचना को जारी करना गैर कानूनी है ,” पीठ ने कहा।
कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह इस मामले को केंद्र सरकार के पास उसकी अनुमति लेने के लिए ले जाए। साथ ही कहा कि नए मास्टर प्लान के तहत देहरादून के चाय बागान का प्रयोग किसी और कार्य के लिए नहीं होगा और उसकी यथास्थिति बरकरार रखी जाएगी।