फरीदाबाद जिला बार एसोसिएशन ने प्रस्ताव पास कर बाहरी वकील को स्थानीय वकीलों के बिना कोर्ट में पेश होने पर प्रतिबंध लगाया

LiveLaw News Network

17 Jun 2018 4:02 PM GMT

  • फरीदाबाद जिला बार एसोसिएशन ने प्रस्ताव पास कर बाहरी वकील को स्थानीय वकीलों के बिना कोर्ट में पेश होने पर प्रतिबंध लगाया

    फरीदाबाद के जिला बार एसोसिएशन ने एक प्रस्ताव पास कर कहा है कि  बिना स्थानीय वकीलों को साथ लिए कोई भी बाहरी वकील यहां के अदालत में मामले की पैरवी नहीं कर सकता।  उनका मानना है की कि इससे अदालत और वकील दोनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

    “एसोसिएशन के कार्यपालक सदस्यों ने पाया है कि बाहरी वकीलों के स्थानीय वकीलों के बिना कोर्ट में पेश होने से फरीदाबाद जिला बार एसोसिएशन के सदस्यों को मुश्किल पेश आती है क्योंकि उनको मामलों का पता नहीं लग पाता और इससे स्थानीय वकीलों की आजीविका भी छिनती है”, ऐसा प्रस्ताव में कहा गया है।

    “इसलिए यह प्रस्ताव पास किया गया है कि बाहरी वकीलों को किसी भी अदालत में तब तक पैरवी  के लिए पेश होने की अनुमति नहीं होगी जब तक वे स्थानीय वकील को साथ नहीं लेते”।

    इस तरह के प्रस्ताव की जरूरत के बारे में एसोसिएशन के सचिव जोगिन्दर नरवत ने कहा, “इस प्रस्ताव से कोर्ट के कामकाज में आसानी होगी।  बाहर से आए वकील लंबे अंतराल पर सुनवाई चाहते हैं क्योंकि उनको दूर आना होता है और दूसरी व्यस्तताएं भी होती हैं। पर अगर उनके साथ कोई स्थानीय वकील होता है तो मामला ज्यादा तेज गति से आगे बढ़ सकेगा और जिस तारीख पर बाहरी वकील अदालत नहीं आ सकता उस तारीख पर स्थानीय वकील अदालत में पेश हो सकता है”।

    “इससे यह भी सुनिश्चित किया जा सकता है कि स्थानीय वकीलों का काम प्रभावित न हो और ये वकील उन मामलों में कोर्ट को सम्मन आदि जारी करने में मदद कर सकता है जिसमें बाहरी वकील पेश होता है।

    नरवत  कहा कि  यहां तक कि  सुप्रीम कोर्ट ने भी इस तरह के नियमों को सही बताया है।  उन्होंने 2016 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए कहा जिसमें इलाहबाद हाईकोर्ट के इसी तरह के एक नियम को सही बताया गया।

    पर फ़रीदाबाद बार एसोसिएशन के इस प्रस्ताव की दिल्ली के कई वकीलों ने आलोचना की है जो की गुडगाँव और फ़रीदाबाद की अदालतों में पैरवी के लिए जाते रहते हैं।

    ऐसे ही एक वकील संतोष पांडेय  ने कहा, “पूरे हरियाणा में यह हो रहा है और इससे बाहरी वकीलों के लिए मुश्किलें पैदा होती हैं। मैं फरीदाबाद और गुडगाँव  की अदालतों में स्थानीय कनिष्ठ वकीलों के साथ पैरवी करता हूँ नहीं तो मुझे कोई भाव ही नहीं देता और मुझे मामले की पैरवी में विरोध का सामना करना पड़ेगा। जहां तक मैं जानता हूँ, इस तरह का प्रस्ताव ने  तो पिछले 10 सालों से लागू है”।

    हालांकि पांडेय ने कहा की इस तरह का कोई मामला दिल्ली में नहीं है।

    वर्ष 2016  में सुप्रीम कोर्ट ने जमशेद अंसारी के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के नियम 3 और 3A, 1952 को सही ठहराया और इसे संविधान के अनुच्छेद 19(1) (g) के अनुकूल बताया। इस नियम के अनुसार वह वकील जो कि  राज्य की बार कौंसिल का सदस्य नहीं है उसे उस राज्य की किसी अदालत में पैरवी करने की अनुमति नहीं है बशर्ते कि स्थानीय वकील उसकी मदद करता है।

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