जिन उम्मीदवारों के कारण चुनाव रद्द हुए उनसे दुबारा चुनाव कराने की कीमत वसूलना चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता : मद्रास हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
17 Jun 2018 3:35 PM GMT
हो सकता है कि चुनाव आयोग जिसे निष्पक्ष चुनाव करने के लिए व्यापक अधिकार मिले हुए हैं इस बारे में उपयुक्त संशोधन या क़ानून बनाने का सुझाव दे सकता है, पीठ ने कहा।
मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि अगर किसी चुनाव लड़ रहे उम्मीदवार के कारण चुनाव रद्द होता है तो इस उम्मीदवार से दुबारा चुनाव कराने का खर्च वसूलने का अधिकार चुनाव आयोग को नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति एम सुन्दर की पीठ ने अरवाकुरिची और तंजावुर विधानसभा सीटों के लिए चुनाव कराए जाने की घोषणा के बाद इन पर आने वाले खर्च के आकलन के लिए वैधानिक ऑडिटर नियुक्ति करने की मांग वाली एक याचिका को खारिज कर दिया।
इन दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव आयोग ने चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों द्वारा गलत हथकंडे अपनाये जाने के आधार चुनावों को रद्द कर दिया था। ये दोनों ही उम्मीदवार दो बड़ी पार्टियों के थे। इन चुनावों पर होने वाले खर्चों के आकलन के लिए एक ऑडिटर की नियुक्ति की मांग की गई ताकि यह पता लगाया जा सके कि सरकारी खजाने पर इस चुनाव के कारण कितना बोझ पड़ेगा।
चुनाव नियमों के विभिन्न प्रावधानों पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा, “न ही संविधान और न ही कानूनी प्रावधान चुनाव आयोग को यह अधिकार देता है कि वह चुनाव लड़ने वाले उन उम्मीदवारों से चुनाव कराने का खर्चा वसूले जो चुनावों के रद्द किये जाने के लिए जिम्मेदार हैं”।
पीठ ने कहा कि यद्यपि यह सही है कि चुनाव लड़ने वाले बेईमान उम्मीदवारों को सरकार पर दुबारा चुनाव का बोझ बढ़ाकर बचकर निकल जाने की इजाजत नहीं होनी चाहिए, पर जनहित याचिका को इतना भी नहीं खींचा जाना चाहिए कि वह प्रशासन के सभी कार्यों पर हावी हो जाए।
“एक ऐसे देश में जहां शासन संविधान के माध्यम से होता है, और जिसमें विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच अधिकारों का बँटवारा उसकी विशेषता है, यह अदालत विधायी या कार्यपालिका के अधिकारों को अपने हाथ में नहीं ले सकता। यह विधायिका का काम है कि वह किसी उम्मीदवार की गलती के कारण रद्द हुए चुनावों के दुबारा चुनाव का खर्च उम्मीदवारों से वसूलने के लिए क़ानून बनाए। हो सकता है की चुनाव आयोग को निष्पक्ष चुनाव कराने का जो इतना व्यापक अधिकार मिला हुआ है उसको देखते हुए वह उपयुक्त क़ानून बनाए जाने का सुझाव दे सकता है”, पीठ ने कहा।
कोर्ट प्रशासन की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले ले यह काम जनहित याचिका नहीं करा सकता
पीठ ने कहा कि जनहित याचिका के द्वारा कोर्ट प्रशासन का काम अपने हाथों में नहीं ले सकता। यह भी नहीं कि यह कदम कदम पर निगरानी, निर्देश जारी करने की प्रक्रिया है जिसकी प्रशासन में जरूरत होती है। जहां मौलिक या अन्य अधिकारों पर पाबंदी लगा दी जाती है या राज्य पर अपनी ताकत के बेजा इस्तेमाल का आरोप होता है या वह गलत मंशा से काम करता है तो उस स्थिति में कोर्ट निरंतर निगरानी पर गौर कर सकता है ताकि वह प्रशासन गड़बड़ी। पर इस तरह की निगरानी सीमित हो सकती है और यह राज्य और उसकी एजेंसियों को क़ानून के अनुरूप काम करने के निर्देश तक सीमित हो सकता है”।