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NEET 2018: कम दिखाई पड़ने के कारण छात्र दिव्यांग कोटे के तहत प्रवेश के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा; कोर्ट ने जारी किया नोटिस [आर्डर पढ़े]
![NEET 2018: कम दिखाई पड़ने के कारण छात्र दिव्यांग कोटे के तहत प्रवेश के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा; कोर्ट ने जारी किया नोटिस [आर्डर पढ़े] NEET 2018: कम दिखाई पड़ने के कारण छात्र दिव्यांग कोटे के तहत प्रवेश के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा; कोर्ट ने जारी किया नोटिस [आर्डर पढ़े]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/06/UU-Lalit-Deepak-Gupta.jpg)
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को मेडिकल में प्रवेश लेने वाले एक ऐसे छात्र की याचिका पर नोटिस जारी किया जिसको कम दिखाई देता है। कोर्ट ने नोटिस जारी कर इस छात्र को विकलांगता प्रमाणपत्र जारी करने और NEET 2018 के तहत आरक्षित श्रेणी में उसे प्रवेश देने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति दीपक गुपता की पीठ ने इस छात्र की याचिका पर नोटिस जारी किया और छात्र आशुतोष पुरस्वानी को बीजे मेडिकल कॉलेज, अहमदाबाद के मेडिकल बोर्ड के समक्ष तीन दिनों के भीतर उपस्थित होने का आदेश दिया। इस कॉलेज को निर्देश दिया गया है कि वह इस छात्र की विकलांगता के बारे में सुप्रीम कोर्ट रेजिस्ट्री को चार दिनों के भीतर रिपोर्ट भेजे। इस मामले की अगली सुनवाई 3 जुलाई निर्धारित की गई है।
आशुतोष ने अपने पिता के माध्यम से कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उसने अपनी याचिका में कहा है कि ‘कम दिखाई देने’ के बावजूद उसे विकलांगता प्रमाणपत्र जारी नहीं किया गया। इस प्रमाणपत्र में उसकी विकलांगता किस हद तक की है उसका जिक्र होगा जो कि इस श्रेणी के तहत प्रवेश मिलने के लिए जरूरी है।
आशुतोष ने गुजरात प्रोइफेशनल मेडिकल एजुकेशनल कोर्सेज (रेगुलेशन ऑफ़ एडमिशन इन अंडरग्रेजुएट कोर्सेज) रूल्स, 2017 और NEET के प्रॉस्पेक्टस का हवाला दिया है जिनमें इस तरह के प्रमाणपत्र की जरूरत बताई गई है। उसका कहना है कि उसकी विकलांगता की जांच के लिए जिन चार कॉलेजों को अधिकृत किया गया है उनमें से एक के पास वह गया पर उसको वहाँ से खाली हाथ लौटना पड़ा क्योंकि कमिटी ने कहा कि वह सिर्फ चलने फिरने से संबंधित विकलांगता के बारे में ही प्रमाणपत्र जारी करता है। याचिका में उसने कहा है कि उसे राज्य मेडिकल बोर्ड से भी कोई जवाब नहीं मिला।
यही वजह है कि उसे सुप्रीम कोर्ट की शरण में आने को बाध्य होना पड़ा।
आशुतोष ने मेडिकल कॉउंसिल ऑफ़ इंडिया (एमसीआई) के एक संशोधन और अधिसूचना की ओर भी सुप्रीम कोर्ट का ध्यान खींचा है जिसमें हर साल कुल छात्रों की संख्या का पांच प्रतिशत ऐसे छात्रों के लिए आरक्षित रखने का प्रावधान है जो विकलांगों की श्रेणी में आते हैं। उसने आरोप लगाया है कि उसको प्रमाणपत्र नहीं देकर इस अधिनियम के प्रावधानों उल्लंघन हुआ है।