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सौतेली माँ के साथ दुर्व्यवहार महँगा पड़ा, पिता के मकान में हिस्सेदारी छिनी; बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसके नाम उपहार के करार को निरस्त किया [निर्णय पढ़ें]
![सौतेली माँ के साथ दुर्व्यवहार महँगा पड़ा, पिता के मकान में हिस्सेदारी छिनी; बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसके नाम उपहार के करार को निरस्त किया [निर्णय पढ़ें] सौतेली माँ के साथ दुर्व्यवहार महँगा पड़ा, पिता के मकान में हिस्सेदारी छिनी; बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसके नाम उपहार के करार को निरस्त किया [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/03/bombay-hc.png)
अपनी सौतेली माँ के साथ दुर्व्यवहार करने वाले व्यक्ति को अपने पिता के मकान में हिस्सेदारी से हाथ धोना पड़ा। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि यह समझा गया था कि मकान में 50 % की साझेदारी देने के बाद याचिकाकर्ता अपने पिता और सौतेली माँ का बुढ़ापे में ख़याल रखेगा।
न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई की पीठ ने बेटे को 50 % साझेदारी देने संबंधी बाप के करार को समाप्त करने के उप अनुमंडलीय राजस्व अधिकारी के फैसले को सही ठहराया।
बेटे ने 6 मार्च 2017 को एसडीओ के फैसले को मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ़ पेरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स एक्ट, 2007 की धारा 5 और 23 के तहत बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
एसडीओ ने अपने फैसले में पिता द्वारा अपने बेटे को ब्रुकलिन हिल्स कोआपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी की फ्लैट में 50 % हिस्सेदारी देने के करार को गैरकानूनी बता दिया।
याचिकाकर्ता की अपनी माँ का 2014 में निधन हो गया था।
पिता ने दूसरी शादी करनी चाही। याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी ने प्रतिवादी नंबर एक (पिता) से कहा कि वह उनका हिस्सा उनके नाम पर ट्रांसफर कर दें। पिता ने मई 2014 में उसको 50% हिस्सेदारी दे दी।
इसके बाद याचिकाकर्ता और उसके पत्नी ने पिता और सौतेली माँ से दुर्व्यवहार शुरू कर दिया और दोनों को मजबूरन उस फ्लैट से निकलना पड़ा। पिता ने इसके बाद एसडीओ से मुलाक़ात की।
याचिकाकर्ता ने एसडीओ के समक्ष कहा की उसके पिता उसके साथ रह सकते हैं पर वह अपनी सौतेली माँ को अपने साथ नहीं रहने देगा। इस पर एसडीओ ने उस करार को अवैध घोषित कर दिया जिसके बाद बेटे ने हाईकोर्ट की शरण ली।
बेटे की याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा, “उपहार का यह करारनामा प्रतिवादी नंबर एक ने किया था अधिनियम 2007 के लागू होने के बाद। उपहार का यह करार याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी के आग्रह पर किया गया था। यह बात स्पष्ट थी कि 50 % की हिस्सेदारी मिलने के बाद याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी प्रतिवादी और उसकी पत्नी की देखभाल करेंगे”।
“याचिकाकर्ता और उसकी पत्नी प्रतिवादी नंबर एक (पिता) की देखभाल तो करना चाहते हैं पर अपने सौतेली माँ की नहीं। इस स्थिति में हमें एसडीओ द्वारा दिए गए फैसले में कोई खामी नजर नहीं आती और हम इस याचिका पर गौर नहीं करना चाहते”।