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बॉम्बे हाईकोर्ट ने MAT के आदेश को सही कहा, रिटायर हुए पिता के पद पर सीधी नियुक्ति चाहनेवाले याचिकाकर्ता के भेदभाव के आरोपों को भी रद्द किया [निर्णय पढ़ें]
![बॉम्बे हाईकोर्ट ने MAT के आदेश को सही कहा, रिटायर हुए पिता के पद पर सीधी नियुक्ति चाहनेवाले याचिकाकर्ता के भेदभाव के आरोपों को भी रद्द किया [निर्णय पढ़ें] बॉम्बे हाईकोर्ट ने MAT के आदेश को सही कहा, रिटायर हुए पिता के पद पर सीधी नियुक्ति चाहनेवाले याचिकाकर्ता के भेदभाव के आरोपों को भी रद्द किया [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2017/08/Bombay-Hc-6.jpg)
गवर्नमेंट सेन्ट्रल प्रेस में कार्य करनेवाले चतुर्थ वर्गीय अधिकारी के बेटे विकास सावंत की याचिका को खारिज करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि नियुक्ति की सामान्य प्रक्रिया को नजरअंदाज कर किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए सीधे नियुक्त करना क्योंकि उसके पिता एक चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी थे, संविधान के अनुच्छेद 16(2) उल्लंघन है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति वीके ताहिलरमानी और न्यायमूर्ति एमएस सोनक की पीठ ने 17 अप्रैल 2014 के मैट (एमएटी) के आदेश को सही ठहराया और अपने पिता के पद पर सीधी नियुक्ति की याचिकाकर्ता की अपील को ठुकरा दिया। कोर्ट ने याचिकाकर्ता की इस दलील को भी ठुकरा दिया कि उसके साथ भेदभाव हो रहा है क्योंकि वह अनुसूचित जाति का है।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता के पिता ने रिटायर (1 सितंबर 2002 को) होने से पहले 4 जनवरी 2002 को एक आवेदन देकर गवर्नमेंट सेंट्रल प्रेस, मुंबई के मैनेजर से अपने पुत्र और वर्तमान याचिकाकर्ता को चतुर्थ वर्ग में नियुक्ति के लिए आवेदन दिया। याचिकाकर्ता ने अपने आवेदन में कहा कि 14 अप्रैल 1981 और 6 मार्च 1990 के जीआर के मुताबिक़ चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों के संतानों को सरकारी सेवा में चतुर्थ वर्ग में सीधी नियुक्ति दिए जाने का अधिकार है बशर्ते कि वे सभी शर्तें पूरी करते हों।
फैसला
याचिकाकर्ता की वकील नीता गायकवाड़ ने कोर्ट में कहा कि उनकी मुवक्किल नियुक्ति की शर्तें पूरी करता है और इसलिए उसको इस पर नियुक्ति नहीं देना अनुचित है।
उन्होंने यह भी कहा कि इसी संस्थान में छह उम्मीदवारों को इस तरह की नियुक्ति दी गई है और याचिकाकर्ता को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत यह सूचना दी गई है।
उन्होंने आरोप लगाया की उनके मुवक्किल से भेदभाव किया जा रहा है।
सरकार के वकील एजीपी एनसी वलिम्बे ने दलील दी कि याचिकाकर्ता उक्त दोनों जीआर को गलत पढ़ रहा है। इनमें सिर्फ स्थानीय रोजगार कार्यालय में पंजीकरण में छूट देने की बात कही गई है। ये दोनों ही जीआर चतुर्थ वर्ग के कर्मचारियों को सरकारी रोजगार में सीधी नियुक्ति नहीं देते।
जजों ने अपने फैसले में कहा,
“उक्त जीआर में ऐसा कुछ नहीं है की चतुर्थ वर्ग के सरकारी कर्मचारियों के बच्चों को नियुक्ति की सामान्य प्रक्रिया को दरकिनार कर सीधी नियुक्ति दी जाए… सिर्फ ऐसे कर्मचारियों के बच्चों को स्थानीय रोजगार कार्यालयों में पंजीकरण में छूट दिए जाने की बात कही गई है... मैट ने इन दोनों जीआर की जो व्याख्या की है वह एकदम सही है और उसके फैसले में कोई गलती नहीं हुई है और इसलिए मैट के निर्णय में दखल देने की कोई जरूरत नहीं है।”
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ भेदभाव के आरोपों को भी नकार दिया और कहा कि पहले जिन छह लोगों की नियुक्ति हुई है वे सब नियमतः हुई है।