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सड़क दुर्घटना में मरने वाली नन के लिए मुआवजे की ईसाई धार्मिक संस्था की मांग को मद्रास हाईकोर्ट ने सही ठहराया [निर्णय पढ़ें]
![सड़क दुर्घटना में मरने वाली नन के लिए मुआवजे की ईसाई धार्मिक संस्था की मांग को मद्रास हाईकोर्ट ने सही ठहराया [निर्णय पढ़ें] सड़क दुर्घटना में मरने वाली नन के लिए मुआवजे की ईसाई धार्मिक संस्था की मांग को मद्रास हाईकोर्ट ने सही ठहराया [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2017/09/Madras-HC.jpg)
मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने सड़क दुर्घटना में मृत एक नन के लिए मुआवजे की मांग को लेकर एक ईसाई धार्मिक संस्था की याचिका को सही ठहराया है। नन की मौत राज्य परिवहन की एक बस द्वारा ठोकर मार देने से हुई। संस्था ने कहा कि अपनी एक कार्यकर्ता की अकाल मौत के कारण संगठन को काफी घाटा हुआ।
न्यायमूर्ति एएम बशीर की पीठ ने 2009 में सेंट मारिया ऑक्सीलियम सिस्टर्स कांग्रेस के पक्ष में वाहन दुर्घटना दावा अधिकरण के आदेश को तमिलनाडु राज्य परिवहन निगम द्वारा दी गई चुनौती को खारिज कर दिया। यह नन उसी कांग्रेस में काम कर रही थी और 2002 में उसकी सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी।
कोर्ट ने कहा कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है की जब उसकी दुर्घटना में मौत हुई उस समय उसका कोई अन्य कानूनी प्रतिनिधि था। इसके अलावा कोर्ट ने उसके मामले में निर्णय मोंटफोर्ट ब्रदर्स ऑफ़ सेंट गेब्रियल और अन्य बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का भी उल्लेख किया इस स्वैच्छिक कार्यकर्ता की मौत के कारण उसको काफी घाटा उठाना पड़ा।
राज्य परिवहन निगम का कहना था कि मृत सिस्टर और धार्मिक संस्था के बीच संबंध कर्मचारी और नियोक्ता का था और नियोक्ता मुआवजे का दावा करने वाला कानूनी उत्तराधिकारी नहीं हो सकता।
निगम ने अधिकरण द्वारा सेंट मारिया ऑक्सीलियम सिस्टर्स कांग्रेस को 7. 5 प्रतिशत की वार्षिक ब्याज की दर से 3.22 लाख रुपए का मुआवजा चुकाने के फैसले को चुनौती दी।
हाईकोर्ट ने कहा कि सेंट मारिया ऑक्सीलियम सिस्टर्स कांग्रेस मदर जनरल सिस्टर अनिमारिया द्वारा पंजीकृत है. इस तरह दावा करने वाली संस्था एक सेवा/धार्मिक संगठन है। सिस्टर अलंगारा ने इस संगठन में रहकर समाज की सेवा की और अपने परिवार को भी इस वजह से छोड़ दिया। दुर्घटना होने के समय वह इस संस्था में एक सिस्टर के रूप में काम रही थी।
हाईकोर्ट ने कहा कि अधिकरण का यह निष्कर्ष था की इस सिस्टर की दुर्घटना में मौत से संगठन को भारी नुकसान हुआ।
निगम की दलील यह थी की यह संस्था मृतक की कानूनी प्रतिनिधि नहीं है और इसलिए वह मुआवजे का दावा नहीं कर सकती है। ऐसा इसलिए भी क्योंकि दोनों के बीच कर्मचारी और नियोक्ता संबंध है।
न्यायमूर्ति अहमद ने कहा कि “इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि जिस दिन सिस्टर की दुर्घटना में मौत हुई उस दिन उसका कोई अन्य कानूनी प्रतिनिधि भी था। उपरोक्त तथ्य और मोंटफोर्ट ब्रदर्स ऑफ़ सेंट गेब्रियल और अन्य बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस एवं अन्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को देखते हुए प्रतिवादी का दावा सही है और मृत सिस्टर की कानूनी प्रतिनिधि होने के कारण यह संस्था मुआवजे का दावा कर सकती है।”
कोर्ट ने निगम की इस दलील को भी खारिज कर दिया की मुआवजे की राशि काफी अधिक है।