Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

आपराधिक मामलों में बरी किये जाने के आधार पर क्या न्यायिक अधिकारी के रूप में किसी की नियुक्ति निरस्त की जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट करेगा इस मामले की जांच [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
29 May 2018 2:33 PM GMT
आपराधिक मामलों में बरी किये जाने के आधार पर क्या न्यायिक अधिकारी के रूप में किसी की नियुक्ति निरस्त की जा सकती है? सुप्रीम कोर्ट करेगा इस मामले की जांच [आर्डर पढ़े]
x

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के एक फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है। इस फैसले में हाईकोर्ट ने अनुसूचित जाति के एक उम्मीदवार आकाशदीप मौर्य को सिविल जज और न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद पर नियुक्त करने का आदेश दिया था और उसके खिलाफ विगत में चार आपराधिक मामले दर्ज होने के कारण उसको अयोग्य घोषित करने के आदेश को निरस्त कर दिया क्योंकि इन सभी मामलों में मौर्य बरी हो गया था।

हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ एक विशेष अनुमति याचिका दाखिल की जिसमें उसे इस पद पर नियुक्ति के अयोग्य ठहराने वाले आदेश को निरस्त कर दिया था।

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की अवकाशकालीन पीठ ने विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया।

पृष्ठभूमि

मौर्य को इस आधार पर नियुक्ति से रोक दिया गया था कि उसके खिलाफ चार आपराधिक मामले दर्ज थे, यद्यपि उसे सभी मामलों में बरी कर दिया गया था। उसने इसके बाद इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की।

न्यायमूर्ति रामचंद्र सिंह झाला और गोपाल किशन व्यास की हाईकोर्ट पीठ ने कहा, “यह सही है कि याचिकाकर्ता एससी वर्ग का है जो कि समाज का एक कमजोर वर्ग है और इसके खिलाफ दो फर्जी मामले दर्ज कराए गए थे लेकिन जांच के बाद पुलिस ने बताया कि इस तरह का कोई मामला हुआ ही नहीं था और अन्य दो मामले को समझौते से निपटा लिया गया था और निचली अदालत ने इस आधार पर उसे बरी कर दिया।”

हमारी राय में, इस तरह के मामलों में अगर यूं ही नियुक्ति की अनुमति नहीं दी जाती है तो कोई भी न्यायिक व्यवस्था में विश्वास नहीं करेगा, इसलिए यह नियोक्ता का दायित्व है कि वह उम्मीदवार की उपयुक्तता का सोच समझकर वस्तुपरक आकलन करे।”

हाईकोर्ट ने आगे कहा, “यह इस मामले का महत्त्वपूर्ण पहलू है कि याचिकाकर्ता एससी वर्ग का है जो कि समाज का एक कमजोर वर्ग है, वह प्रतियोगिता परीक्षा में बैठा और उसमें सफल रहा और उसकी नियुक्ति की अनुशंसा की गयी। लेकिन आवेदन दाखिल करने से पहले उसके खिलाफ कुछ मामलों के दर्ज होने के कारण उसकी नियुक्ति की अनुमति नहीं दी गयी और इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी गौर नहीं किया गया। हमारी राय में, समिति याचिकाकर्ता की नियुक्ति के मामले पर गौर करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य है क्योंकि कमजोर वर्ग के एक व्यक्ति को उसके उस कानूनी अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता जो उसने प्रतियोगिता परीक्षा में सफल होकर प्राप्त किया है।”


 
Next Story