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जुर्माने का प्रावधान आवश्यक नहीं; सूचना चाहनेवाले आरटीआई अधिनियम के तहत जुर्माने की प्रक्रिया का सहारा नहीं ले सकते : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
29 May 2018 2:06 PM GMT
जुर्माने का प्रावधान आवश्यक नहीं; सूचना चाहनेवाले आरटीआई अधिनियम के तहत जुर्माने की प्रक्रिया का सहारा नहीं ले सकते : छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]
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जुर्माने का मामला आयोग और गफलत करने वाले सूचना अधिकारी के बीच का है और इसमें याचिकाकर्ता/सूचना प्राप्तकर्ता को कोई अधिकार नहीं है, कोर्ट ने कहा।

 छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने कहा है कि सूचना का अधिकार के तहत दंड का प्रावधान विवेकाधीन है और यह मामला सूचना आयोग और गफलत करने वाले उसके अधिकारी के बीच का है। कोर्ट ने कहा कि सूचना प्राप्त करनेवाले दंड की कार्यवाही में सुनवाई की मांग अधिकारतः नहीं कर सकते।

 वर्तमान मामले में, सूचना आयोग ने एक अधिकारी पर 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया क्योंकि सूचना देने में उन्होंने देरी की थी। सूचना मांगनेवाले ने इस आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की और कहा कि इस मामले में जुर्माना 25 हजार होना चाहिए क्योंकि सूचना देने में 15 महीने की देरी की गई।

दंडात्मक प्रावधान विवेकाधीन

न्यायमूर्ति संजय के अग्रवाल ने इस याचिका को यह कहते हुए खारिज करने के लिए आनंद भूषण बनाम आरए हरिताश मामले में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को नजीर बनाया जिसमें कहा गया है कि सूचना का अधिकार की धारा 20 के तहत दंड का प्रावधान विवेकाधीन प्रकृति का है और यह अनिवार्य नहीं है।

दंड की कार्यवाही अवमानना की कार्यवाही की तरह है, और तथ्यों को कोर्ट के संज्ञान में लाने के बाद यह मामला कोर्ट और अवमानना करने वाले के बीच सीमित हो जाता है और अवमानना की याचिका दायर करने वाले की इस मामले में आगे कोई भूमिका नहीं रह जाती है,” कोर्ट ने कहा।  

 सूचना चाहनेवाले दंड की प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकते

कोर्ट ने आगे कहा कि सूचना चाहनेवाले सिर्फ मुआवजे या लागत के अधिकारी हैं, अगर ऐसा कुछ दिया जाता है। इस अधिनियम में दंड के भुगतान या गफलत करने वाले अधिकारी से ऐसी कोई राशि वसूले जाने का कोई प्रावधान नहीं है और इसलिए सूचना चाहनेवाला दंड की प्रक्रिया में शामिल नहीं हो सकता जो कि आयोग और उसके अधिकारी के बीच का मामला है।

दिल्ली हाईकोर्ट ने आनंद भूषण बनाम आरए हरिताश मामले में जो फैसला दिया उसके अलावा हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने भी ऐसा ही एक फैसला संजय हिंदवान बनाम राज्यस सूचना आयोग मामले में दिया है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा, “हमें अधिनियम में कोई ऐसा प्रावधान नहीं मिला जिसके तहत आयोग को दंड को बढाने या कम करने का अधिकार दिया हो। अगर आयोग को लगता है कि सूचना देने में देरी के पर्याप्त कारण हैं और यह कि सार्वजनिक सूचना अधिकारी (पीआईओ) ने देरी के पर्याप्त संतोषजनक कारण बताए हैं तो उस स्थिति में कोई भी जुर्माना नहीं लगाया जा सकता। हालांकि, अगर आयोग यह समझता है कि जुर्माना वसूला जाना है तो यह अवश्य ही 250 रुपए प्रतिदिन होगा न कि किसी और दर से होगा जैसा आयोग चाहेगा। इस हद तक याचिकाकर्ता की बात सही है। जुर्माना या तो निर्धारित दर से लगाया जाएगा या फिर कोई जुर्माना नहीं लगाया जाएगा।”

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी इस बारे में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले से सहमति जताई है।


 
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