सीसीआई डीजी के बुलाने पर पक्षकारों को अपने वकील के साथ आने के अधिकार पर साक्ष्य संग्रहण के दौरान गवाहों से मशविरा नहीं कर सकते : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
28 May 2018 10:45 AM IST
डीजी यह सुनिश्चित करेगा कि वकील गवाहों के सामने नहीं बैठें; वे इतनी दूर बैठें ताकि गवाह उनसे बात नहीं कर सकें, या उनसे संपर्क नहीं कर सकें, पीठ ने कहा।
दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रतिस्पर्धा अधिनियम के तहत महानिदेशक (डीजी) द्वारा जांच के लिए बुलाये जाने पर पक्षकारों को अपने वकीलों के साथ आने के अधिकार को सही ठहराया है। पर उसने डीजी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया है कि वकील गवाहों के सामने नहीं बैठें; उनसे कुछ दूरी पर रहें और गवाह उनसे बातचीत या परामर्श नहीं करें।
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने दिल्ली हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष एकल पीठ के उस आदेश के खिलाफ अपील की थी जिसमें पीठ ने सीसीआई द्वारा बुलाये जाने पर एक कंपनी के अधिकारियों को अपने वकीलों के साथ आने की अनुमति दी गई थी।
आयोग के वकील प्रशांतो सेन ने कहा कि प्रतिस्पर्धा अधिनियम की धारा 35 और प्रतिस्पर्धा आयोग (सामान्य) विनियमन, 2009 के तहत साफ़ कहा गया है कि एडवोकेट डीजी के सामने पेश नहीं हो सकते; वे आयोग के समक्ष अपना कानूनी प्रतिनिधि भेज सकते हैं; हालांकि जांच के दौरान डीजी के समक्ष इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं रखा गया।
दूसरी और, कंपनी के वकील संदीप सेठी ने यूएस, यूके और ईयू के एंटीट्रस्ट कानूनों का हवाला दिया और कहा कि उन क्षेत्राधिकारों में भी गवाहियों को अपने वकीलों को साथ रखने की इजाजत है।
‘निहित निषेध’ मामलादार को एडवोकेट की सेवा लेने से नहीं रोक सकता
न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट और संजीव सचदेवा की पीठ इस ‘निहित निषेध’ की दलील से संतुष्ट नहीं हुए और कहा कि वकील रखने और किसी मुवक्किल को अपनी सेवाएं देने जैसे अधिकारों के बारे में एडवोकेट अधिनियम पूरी तरह स्पष्ट है और संविधान के द्वारा इस तरह के अधिकारों पर किसी भी तरह के प्रतिबन्ध का क़ानून में स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। इस तरह का स्पष्ट प्रावधान नहीं होने की स्थिति में कोर्ट निहितार्थों में नहीं जा सकती है, पीठ ने कहा।
कोर्ट एकल पीठ के इस निर्णय से भी सहमत थी कि चूंकि डीजी के अधिकार काफी व्यापक हैं और उसकी जांच के परिणाम काफी गहन होंगे इसलिए पक्षकार/व्यक्ति को जांच के दौरान अपने वकील को साथ रखने के उनके अधिकारों की रक्षा जरूरी है और यह उनसे नहीं छीना जाए।
अमरीका, ईयू एंटीट्रस्ट क़ानून के तहत वकीलों के पक्षकारों के साथ होने की अनुमति है
पीठ ने आगे कहा, “चूंकि हमारे देश में प्रतिस्पर्धा क़ानून अभी शुरुआती स्थिति में है, आयोग, सीओएमपीएटी और सुप्रीम कोर्ट अमूमन इस बारे में विदेशी फैसलों और ईयू एंटीट्रस्ट क़ानून और अमरीका में दिए गए फैसलों पर निर्भर करता रहा है ताकि वह प्रतिस्पर्धा अधिनियम की व्याख्या कर सकें। इस संदर्भ में यह देखा जा सकता है कि अमरीका और ईयू (या ईसी) में पक्षकारों को जांच के स्तर पर भी वकीलों द्वारा प्रतिनिधित्व की इजाजत दी जाती है।
गवाहों को वकीलों से मशविरा की अनुमति नहीं हो
कोर्ट ने सीसीआई की इन चिंताओं के मद्देनजर कि जांच और गवाहियों की गवाही रिकॉर्ड करने के दौरान वकीलों का सक्रिय रूप से शामिल होना प्रतिस्पर्धा को संवर्धित करने को देखते हुए आम हित में नहीं होगा क्योंकि वकील गवाहों को ऐसे बयान देने से मना कर सकता है जो उनके विरोध में जा सकता है।
पीठ ने कहा, “कार्यवाही के दौरान आयोग या डीजी, दोनों में से कोई भी कानूनी प्रतिनिधि के द्वारा अपनी बात रखने के दौरान उचित प्रक्रिया के अपनाए जाने के बारे में निर्देश दे सकता है। वह वकीलों के साथ आने की अनुमति दे सकता है पर जब डीजी किसी गवाह का बयान ले रहा होता है तो वह इस दौरान गवाह से बात नहीं कर सकता या कोई प्रश्न नहीं पूछ सकता।
“इस ग्रह, पक्षकार को वकील के साथ आने का अधिकार है, पर डीजी की जांच में कोई अनावश्यक बाधा पहुंचाए बिना। आयोग एंटीट्रस्ट मामलों मेंभर में दुनिया अपनाए जाने वाले सर्वाधिक उत्तम प्रक्रिया को अपना सकता है और इसे विनियमन में शामिल कर सकता है; उस समय तक यह डीजी पर निर्भर करता है कि वह उचित प्रक्रियात्मक आदेश जारी करे। कोर्ट यह महसूस करता है कि यह सावधानी जरूरी है क्योंकि ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है जब किसी प्रभावशाली वकील की उपस्थिति जाँच अधिकारी या डीजी द्वारा गवाहियों से पूछताछ को प्रभावित कर सकता है। गैर-शाब्दिक बातचीत के अलावा, वकील साक्ष्यों के संग्रहण में अचम्भे में डालने वाले तत्वों को सीमित कर सकता है। इसलिए डीजी यह सुनिश्चित करेगा कि वकील गवाहियों के सामने नहीं बैठे; वह दूर बैठे और गवाहों के साथ किसी तरह की बातचीत नहीं कर पाए।”