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चेक मामलों से जुड़े विवादों को शीघ्रता से ‘ऑनलाइन’ सुलझाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से माँगी स्थिति रिपोर्ट [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network
18 May 2018 8:32 AM GMT
चेक मामलों से जुड़े विवादों को शीघ्रता से ‘ऑनलाइन’ सुलझाने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से माँगी स्थिति रिपोर्ट [आर्डर पढ़े]
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सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रारों से स्थिति रिपोर्ट तलब की है यह जानने के लिए कि चेक से जुड़े मामलों को शीघ्रता से निपटाने के लिए किस तरह की ऑनलाइन व्यवस्था की गयी है।

न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोएल और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पीठ ने चेक बाउंस होने के मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर किये गए कुछ विशेष अनुमति याचिका की सुनवाई करते हुए कहा, “5 अक्टूबर 2017 को इस न्यायालय द्वारा मीटर्स एंड इंस्ट्रूमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य बनाम कंचन मेहता No. 1731 of 2017 (2018 (1) SCC 560) मामले दिए गए आदेश को देखते हुए हम रजिस्ट्रार जनरलों को यह निर्देश देते हैं कि वे इस कोर्ट के महासचिव को उसके निर्देश के बारे रिपोर्ट दें और ये बताएं कि हाईकोर्टों ने कोई प्रस्ताव दिया है कि नहीं (ये मामले निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत दायर किए गए हैं)। यह भी बताया जाए कि मामले को ऑनलाइन सुलझाने के बारे में क्या सोचा गया है।”

मीटर्स एंड इंस्ट्रूमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड

इस मामले में कोर्ट ने चेक से जुड़े मामलो को शीघ्रता से निपटाने के निर्देश दिए थे। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत  एक आरोपी को शिकायतकर्ता की अनुमति के बिना भी बरी किया जा सकता है अगर कोर्ट इस बारे में संतुष्ट है कि शिकायतकर्ता को पूरा मुआवजा मिल गया है।

न्यायमूर्ति एके गोएल ने इस सप्ताह कई सारे निर्देश जारी किये हैं। बुधवार को उन्होंने केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर यह पूछा है कि आपराधिक मामलों की शीग्रता से निपटाने के लिए उपयुक्त मंच की व्यवस्था करने की मंशा रखती है या नहीं। सोमवार को उन्हीं की पीठ ने क़ानून मंत्रालय से पूछा कि सुनवाई के दौरान फरार हुए अभियुक्त की अनुपस्थिति में सुनवाई करने के लिए क्या सीआरपीसी में संशोधन करने का उनका कोई इरादा यह है या नहीं।

गुजरात हाईकोर्ट ने भी जारी किये थे ऐसे निर्देश

इस बारे में लाइव लॉ रिपोर्ट कर चुका है कि गुजरात हाईकोर्ट ने निचली अदालत को निर्देश दिया था कि वह आरोपी को यह अनुमति दें कि वह शिकायतकर्ता के बैंक खाते में ऑनलाइन विवादित राशि भेज सके।


 
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