आपराधिक अपील की शीघ्र सुनवाई के लिए वैकल्पिक फोरम बनाने पर क्या कदम उठाए जा रहे हैं यह जानने के लिए केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

17 May 2018 4:36 PM GMT

  • आपराधिक अपील की शीघ्र सुनवाई के लिए वैकल्पिक फोरम बनाने पर क्या कदम उठाए जा रहे हैं यह जानने के लिए केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस [आर्डर पढ़े]

    भारत सरकार और मध्य प्रदेश को नोटिस यह जानने के लिए कि क्या आपराधिक मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए कृष्ण कांत तामरकर मामले में दिए सुझावों के अनुरूप कोई वैकल्पिक व्यवस्था कायम करने को लेकर कोई कदम उठाने पर वे विचार कर रहे हैं या नहीं”

    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और मध्य प्रदेश को नोटिस जारी कर यह पूछा है कि आपराधिक मामलों की शीघ्र सुनवाई के लिए वैकल्पिक मंच बनाने के बारे में वे क्या कदम उठा रहे हैं।

    न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोएल और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की पीठ ने एक विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि वर्ष 2001 और 2002 में दायर की गयी आपराधिक मामलों से संबंधित याचिका पर मध्य प्रदेश में सुनवाई हो रही है और इस बात की कोई संभावना नहीं है कि इसके बाद की अपील पर संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुरूप शीघ्रता से सुनवाई हो पाएगी।

    इस मामले में हुसैन और अन्य बनाम भारत संघ और कृष्ण कांत तामरकर बनाम मध्य प्रदेश राज्य जैसे मामलों में दिए गए फैसलों का जिक्र किया गया।

    कोर्ट ने केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी करने के इस मामले पर अगली सुनवाई की तिथि 17 जुलाई निर्धारित की।

    कृष्ण कान्त तामरकर बनाम मध्य प्रदेश राज्य मामले में दो जजों की पीठ ने अपने निर्देश में कहा था :

    “...भारत संघ को इस बात पर गौर करना चाहिए कि हाई कोर्ट के समक्ष जो आपराधिक मामलों अन्य मामलों की अपील लंबित है उसको वर्तमान व्यवस्था के तहत एक निश्चित समय सीमा के तहत निपटाया जा सकता है या नहीं। अगर नहीं, तो क्या यह संभव है कि इस तरह की अपील के लिए कोई अन्य उपयुक्त फोरम उपलब्ध कराया जाए ताकि लोगों को शीघ्र न्याय उपलब्ध कराने का उनका मौलिक अधिकार सुनिश्चित किया जा सके या कोई अन्य तरीका जिससे इस स्थिति को ठीक किया जा सके...”       

    एक अन्य मामले में सोमवार को इसी पीठ ने क़ानून मंत्रालय को निदेश दिया था कि वह सीआरपीसी की धारा 339B में संशोधन कर ऐसे फरार आरोपियों पर मुकदमा चलाने के बारे में उसे बताए जो कि अदालत की सुनवाई में नहीं आते हैं।


     
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