गोधराकांड के बाद भड़की हिंसा का मामला : गुजरात हाईकोर्ट ने 19 अभियुक्तों की सजा को सही ठहराया, 14 को मिला उम्र कैद, 3 बरी [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
15 May 2018 9:34 AM IST
गुजरात हाईकोर्ट ने गोधराकांड के बाद हुए कत्लेआम के मामले में 19 अभियुक्तों की सजा को सही ठहराया है। यह हिंसा आनंद जिले के ओड में हुआ था जिसमें महिलाओं और बच्चों सहित 23 लोगों को मार्च 2002 में ज़िंदा जलाकर मार दिया गया था।
हाईकोर्ट ने 14 लोगों को हत्या के जुर्म में आजीवन कारावास और पांच अभियुक्तों को सात साल की जेल की सजा सुनाई जबकि तीन अन्य लोगों को बरी कर दिया।
न्यायमूर्ति अकिल कुरैशी और बीएन करिया की पीठ ने इस बारे में अभियुक्तों द्वारा दायर अपील की सुनवाई की।
कोर्ट राज्य सरकार की अपील पर भी गौर कर रहा था जिसने अभियुक्तों की उम्र कैद की सजा की जगह मृत्युदंड देने की मांग की थी और वह किसी को बरी किये जाने के खिलाफ भी थी।
गोधरा में 27 फरवरी 2002 को ट्रेन को जलाए जाने के बाद कुछ संगठनों ने राज्य भर में बंद का आह्वान किया। यह शुक्रवार का दिन था। 1500 लोगों की जनसंख्या वाले इस ओड गाँव में भीड़ जमा होने लगी। इस गाँव में कुछ मुस्लिम भी रहते थे। भीड़ ने मुसलमानों की बस्ती को निशाना बनाना शुरू कर दिया। पुलिस ने गोलियाँ चलाई जिसमें निशित पटेल की मौत हो गयी। इसके बाद भीड़ ने मुसलामानों के घरों को आग लगा दी जिसमें 23 लोग मारे गए।
सुप्रीम कोर्ट गोधरा के बाद हुए जिन नौ दंगों की जांच कर रही है उसमें ओड का दंगा भी शामिल है और इसके लिए विशेष जांच दल गठित की गयी और इसकी जांच का जिम्मा सीबीआई के रिटायर निदेशक पीके राघवन को दिया गया।
पीठ ने 19 लोगों की सजा को जायज ठहराया और कहा कि गवाहों के बयानों के आधार पर कोई संदेह नहीं बच जाता कि भीड़ लोगों को नुकसान पहुंचाने के लिए जमा हुई थी।
पीठ ने कहा, “यह भीड़ कोई छोटी नहीं थी...1000 से ज्यादा लोग जमा हुए थे। जिस आरोपी के इसमें शामिल होने के बारे में सभी गवाहों ने बताया है, इस भीड़ का हिस्सा था। कई मामलों में गवाहियों ने उनके सक्रिय रूप से शामिल होने की बात कही है। ये लोग किसी तरह से निर्दोष लोग या तमाशबीन नहीं थे। एक समझदार आम नागरिक ऐसे हिंसक मौकों पर अपने घर के अंदर ही रहता है। विभिन्न आरोपियों की संलग्नता और उनकी मौजूदगी के बारे में विभिन्न स्रोतों से पुष्टि हो जाने के बाद उनको संदेह का लाभ नहीं दिया जा सकता या उन्हें इस दलील पर बरी नहीं किया जा सकता कि एक ही गाँव के होने के कारण ये लोग तमाशबीन थे।”
विरलों में विरल घटना नहीं
हाईकोर्ट ने कहा कि यह घटना विरलों में विरल नहीं थी और इसलिए मृत्युदंड की सजा नहीं दी जा सकती।
“...इसके बावजूद कि मारे गए लोगों में बड़े, बूढ़े, बच्चे और महिलाएं शामिल थीं...हमें नहीं लगता कि यह एक विरलों में विरल मामला है और इसके लिए मृत्युदंड दिया जाए।”