दिल्ली हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपों को खारिज किया पर लड़की के नवजात शिशु के लिए गुजारा राशि देने को कहा [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
14 May 2018 10:41 PM IST
दिल्ली हाईकोर्ट ने वृहस्पतिवार को दो लोगों को एक नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार करने का दोषी ठहराने के निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया पर दोनों को पैदा हुए बच्चे के गुजारे की राशि चुकाने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति एसपी गर्ग और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर की पीठ ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देने वाले दो अभियुक्तों तेजिंदर सिंह और विक्रम सिंह की अपील पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया। निचली अदालत ने इन दोनों को 13 साल की एक लड़की के साथ 4-5 महीने तक बलात्कार करने के आरोप में जनवरी 2013 को सजा सुनाई थी।
इस अपराध के बारे में पता तब चला जब यह लड़की गर्भवती हो गयी। चूंकि इस लड़की को गर्भवती होने के सात महीने के बाद डॉक्टर के पास ले जाया गया, गर्भपात विकल्प नहीं था। इस लड़की ने मार्च 2012 में एक लड़के को जन्म दिया जिसे हरियाणा के एक निजी अनाथालय में रखा गया है।
अपील पर गौर करते हुए कोर्ट ने कहा कि लड़की के बयान में स्थिरता नहीं है। पीठ ने कहा, “जांच के अलग-अलग चरणों में उसने विरोधाभासी और अलग-अलग बयान दिए। शुरू में तो उसने अपने माँ-बाप को इसके बारे में किसी भी स्तर पर नहीं बताया; पुलिस को भी इसकी जानकारी नहीं दी गई। लड़की ने इन दोनों लोगों के साथ शारीरिक संबंध कायम रखा और बिना किसी विरोध के। उसे जब भी बुलाया, वह अपीलकर्ता के फैक्ट्री में उससे मिलने जाती रही। वह उस स्थल पर बुलाने पर बार बार जाती रही।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि लड़की के शरीर पर हिंसा के कोई निशान नहीं पाए गए।
इस लड़की की उम्र के बारे में स्कूल का कोई रिकॉर्ड या जन्म प्रमाणपत्र के अभाव में कोर्ट ने इन दोनों लोगों के साथ लड़की के शारीरिक संबंध कायम होने के समय उसकी उम्र 16 वर्ष से अधिक बताया। कोर्ट ने कहा कि जो हुआ उसमें लड़की की सहमति थी। कोर्ट ने कहा, “शारीरिक संबंध (अगर थे) तो इसमें लड़की की सहमति थी। यह निर्धारित करना अभियोजन का काम नहीं है कि कम बुद्धि होने के कारण वह यह नहीं समझ रही थी कि शारीरिक संबंध के क्या परिणाम होंगे; इसको प्रमाणित करने के लिए कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं।”
कोर्ट ने इस मामले में पोक्सो अधिनियम, 2012 को लागू करने के प्रयास को भी निष्फल कर दिया और कहा कि इस अधिनियम के लागू होने से पहले यह मामला हुआ।
इसके बाद कोर्ट ने अपील की अनुमति दे दी और दोषियों को सजा को निरस्त कर दिया। कोर्ट ने कहा, “चूंकि पीड़िता इस अपराध के होने के समय 16 साल से अधिक उम्र की थी और जो हुआ उसमें उसकी सहमति थी, इसलिए अपीलकर्ताओं को आईपीसी की धारा 376 के तहत इस अपराध का दोषी नहीं माना जा सकता और इसलिए निचली अदालत का फैसला टिक नहीं सकता और इसलिए इसे निरस्त किया जता है।”
कोर्ट ने हालांकि कहा कि डीएनए रिपोर्ट यह सिद्ध करता है कि यह बच्चा दूसरे अपीलकर्ता विक्रम सिंह का है। कोर्ट ने लड़की की इस बात से सहमति जताई कि उसने उसके भोलेपन का फ़ायदा उठाया। इसके बाद कोर्ट ने तेजिंदर सिंह और विक्रम सिंह को क्रमशः पांच और आठ लाख रुपए मुआवजा देने को कहा।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि जब तक यह बच्चा बालिग नहीं हो जाता, निचली अदालत की अनुमति के बिना खाते से यह राशि नहीं निकाली जा सकती। हलांकि निचली अदालत को यह अधिकार दिया गया कि वह बच्चे के कल्याण को देखते हुए इस समय से पहले भी राशि की निकासी की अनुमति दे सकता है।