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अगर किसी संसदीय सीट के उप-चुनाव में एक साल से कम समय बचा है तो भी चुनाव होगा : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
11 May 2018 4:44 PM GMT
अगर किसी संसदीय सीट के उप-चुनाव में एक साल से कम समय बचा है तो भी चुनाव होगा : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
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संसद की मंशा किसी चुनाव क्षेत्र को प्रतिनिधित्वहीन रखने की नहीं है, पीठ ने कहा

सुप्रीम कोर्ट ने एक वोटर की इस अपील को ठुकराने के बॉम्बे हाई कोर्ट के निर्णय को सही ठहराया जिसमें मांग की गई थी कि उस चुनाव क्षेत्र में अभी चुनाव नहीं कराया जाए जिसके प्रतिनिधि ने पिछले साल दिसंबर में पद त्याग दिया था।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि चूंकि राजस्व पर बोझ पड़ेगा और संसद की अवधि अब एक साल से भी कम बची है इस वजह से किसी चुनाव क्षेत्र में चुनाव को रोका नहीं जा सकता।

हाई कोर्ट का विचार

प्रमोद लक्षमण गुडाधे नामक व्यक्ति ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी और कहा था कि जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 151-A यह कहता है कि जब अवधि कम है तो चुनाव करना जरूरी नहीं है। यह कहा गया कि अगला संसदीय चुनाव जून 2019 में होना है अगर चुनाव मई में कराये जाते हैं तो संसद के नए सदस्य को लगभग एक साल तक संसद में रहने का मौक़ा मिलेगा। कोर्ट ने कहा कि नए सदस्य को एक साल से अधिक का समय मिलेगा और यह कहते हुए याचिका रद्द कर दी।

हाई कोर्ट ने यह दलील भी ठुकरा दी थी कि जून 2019 में होने वाले चुनावों के लिए मार्च 2019 से चुनाव संहिता लागू हो जाएगी और नए चुने जाने वाले सांसद को प्रभावी रूप से मार्च 2019 तक ही संसद में रहने का मौक़ा मिलेगा।

सुप्रीम कोर्ट का विचार

वोटर ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जिसकी सुनवाई मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने की। पीठ ने हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “अधिनियम उचित अधिकारी को यह दायित्व भी देता है कि वह देखे कि कोई चुनाव क्षेत्र अनिश्चित काल तक के लिए प्रतिनिधित्वहीन न रहे। ऐसा इसलिए क्योंकि चुने हुए प्रतिनिधि पर अपने चुनाव क्षेत्र के लोगों की चिंताओं को व्यक्त करने की जिम्मेदारी होती है। अगर उनको क़ानून में इस तरह का अधिकार मिला है तो वोटरों को उनके इस अधिकार से वंचित नहीं रखा जा सकता है।”

पीठ ने कहा कि धारा 151A सीट खाली होने के समय से छह माह के भीतर चुनाव कराने की बात कहता है और वर्तमान मामले में यह समय एक साल से कम नहीं है। चुनाव होगा या नहीं होगा यह इस धारा के उपखंड-b के तहत आता है और हमें इससे मतलब नहीं है, पीठ ने कहा।

इस उपखंड में कहा गया है कि अगर चुनाव आयोग केंद्र सरकार की सलाह से यह बताता है कि उक्त अवधि के दौरान चुनाव कराना मुश्किल है तो धारा 151A के प्रधान प्रावधान लागू नहीं होंगे।

कोर्ट ने आगे कहा कि राजस्व पर बोझ पड़ने की जो चिंता व्यक्त की गई है उसको आधार नहीं माना जा सकता। ऐसा इसलिए क्योंकि प्रतिनिधि पर आधारित लोकतंत्र चुने गए प्रतिनिधि पर आश्रित होता है”। कोर्ट ने ने यह भी कहा कि अगर कोई चुनावी विवाद लंबित है तो उस स्थिति में मामला दूसरा होगा जो कि अधिनियम की धरा 84 या धारा 98c या धारा 101(b) के तहत आता है।


  
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