अगर पति या पत्नी कोर्ट के आदेश के अनुरूप एक दूसरे के साथ रह नहीं पाते हैं तो यह न्यायालय की अवमानना नहीं है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

11 May 2018 6:06 AM GMT

  • अगर पति या पत्नी कोर्ट के आदेश के अनुरूप एक दूसरे के साथ रह नहीं पाते हैं तो यह न्यायालय की अवमानना नहीं है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    वैवाहिक अधिकारों के बारे में जब कोई आदेश किसी योग्य अदालत द्वारा दिया जाता है जो पति या पत्नी में से किसी एक के पक्ष में होता है तो इस तरह के आदेश को लागू नहीं कराया जा सकता है और दोनों में से जिसको वैवाहिक जीवन को शुरू करने को कहा गया है, उसको ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, कोर्ट ने कहा।

    एक पत्नी को अवमानना के कारण सजा दिए जाने के हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट न कहा कि पत्नी को अन्य लोगों के साथ रहने के लिए बाध्य करना और ऐसा नहीं करने पर उसके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करना और उसको क़ानून के तहत अधिकतम सजा सुनाने का समर्थन नहीं किया जा सकता।

    पृष्ठभूमि

    पति ने हाई कोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी और बाद में कोर्ट ने इस मामले से जुड़े विवाद को सुलझा दिया। हाई कोर्ट ने समझौते की शर्तें निर्धारित की जो कि इस आदेश का हिस्सा था और याचिका पर सुनवाई समाप्त कर दी गई।

    चूंकि पत्नी इस समझौते के अनुरूप नहीं चली और कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया, इसलिए पति ने उसके खिलाफ हाई कोर्ट में न्यायालय की अवमानना का केस कर दिया और करार को लागू करवाए जाने की मांग की। ऐसा नहीं करने पर अपीलकर्ता को न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत सजा देने की मांग की। हाई कोर्ट ने पत्नी को अवमानना का दोषी पाया और उसे छह माह की जेल की सजा सुनाई। पत्नी ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

    पत्नी को किसी अन्य के साथ रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकते

    पीठ ने कहा, “सहमति की शर्तें समझौते का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं, कि दोनों पक्ष दुबारा साथ रहना शुरू कर दें। यह मामला बच्चे के संरक्षण का है। निस्संदेह, जब दोनों अपने वैवाहिक जीवन को दुबारा शुरू करना चाहते हैं और फिर एक साथ पति-पत्नी के रूप में रहना शुरू कर देते हैं, तो प्रणव के संरक्षण का मामला खुदबखुद सुलझ जाता है क्योंकि प्रणव माँ और बाप दोनों के साथ रह सकेगा। पर दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो पाया।”

    कोर्ट ने आगे कहा, “...यह एक अलग मामला है कि जब इस तरह के आदेश को नहीं माना जाता है तो इसके दूसरे परिणाम होते हैं। आदेश प्राप्त करने वाला तलाक की अर्जी दे सकता है। ऐसी स्थिति में ...आदेश को नहीं मानने के लिए अवमानना का दोषी मानते हुए पत्नी को अधिकतम अवधि के लिए जेल की सजा सुनाने के फैसले का समर्थन नहीं किया जा सकता।”


     
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