हिंदू विवाह अधिनियम के तहत जलते हुए अगरबत्ती के फेरे लगाना ‘पवित्र आग’ के फेरे लगाने के बराबर : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

10 May 2018 3:36 PM GMT

  • हिंदू विवाह अधिनियम के तहत जलते हुए अगरबत्ती के फेरे लगाना ‘पवित्र आग’ के फेरे लगाने के बराबर : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति की उस अपील को खारिज कर दिया जिसमें उसने कोर्ट से अनुरोध किया था कि वह 14 फरवरी 2009 को हुई उसकी शादी को अमान्य कर दे। इस व्यक्ति ने 10 सितम्बर 2012 को फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। फैमिली कोर्ट ने वैवाहिक अधिकार को बहाल करने की अपील मान ली थी।

    न्यायमूर्ति केके तातेड और बीपी कोलाबावाला ने अपीलकर्ता के वकील की इस दलील को ठुकरा दिया कि अगरबत्ती के फेरे लगाना पवित्र आग के चारों और सात फेरे लेने के बराबर नहीं है और हिंदू विवाह अधिनियम की धारा पांच में पवित्र आग की बात कही गई है।

    पीठ ने कहा कि पवित्र आग क्या है इसको अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है।

    मामले की पृष्ठभूमि

    अपीलकर्ता पति ने कहा कि लड़की के घर वालों द्वारा गालियाँ दिए जाने के कारण उसके पिता को दिल का दौरा पड़ा और उसने 13 फरवरी को होने वाली शादी रुकवा दी।

    इसके बाद उसने कहा कि एक सामाजिक कार्यकर्ता ने उससे संपर्क किया और उसको एक हनुमान मंदिर में आने के लिए बाध्य किया। उसको कहा गया कि लड़की का रक्त चाप कम हो गया है और अगर उसने शादी नहीं की तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। और इस तरह उसे शादी करने के लिए बाध्य किया गया।

    उसने यह भी कहा कि प्रतिवादी पत्नी ने मीडिया, फोटोग्राफर और टीवी चैनेलों को बुला लिया था और उसको शादी करते हुए फोटो खिंचवाने के लिए बाध्य किया गया।

    पति ने यह भी कहा कि उससे शादी के रजिस्टर पर जबरदस्ती हस्ताक्षर कराया गया और फोटो में उसे लड़की की मांग में सिंदूर भरते हुए दिखाया गया।

    फैसला

    कोर्ट ने सारे सबूतों पर गौर करने के बाद इस दलील को मानने से इनकार कर दिया कि शादी जबरदस्ती कराई गई थी। कोर्ट ने कहा कि शादी के तुरंत बाद प्रतिवादी पत्नी को शिकायतकर्ता पति के घर ले जाया गया और वे 28 अप्रैल 2009 तक साथ रहे। पीठ ने यह भी कहा कि दंपति में शारीरिक संबंध बने और इस तरह अपीलकर्ता यह बताने में विफल रहा है कि शादी उसकी मर्जी के खिलाफ हुई।

    कोर्ट ने अपीलकर्ता के वकील की इस दलील को भी ठुकरा दिया कि शादी के दौरान शप्तपदी कार्यक्रम नहीं हुआ और इसलिए शादी को वैध नहीं ठहराया जा सकता है।

    कोर्ट ने उस पंडित भोगेन्द्र झा के बयान का भी उल्लेख किया जिसने बताया कि उसने पति-पत्नी दोनों को मंत्रोच्चार कराया और जलती हुई अगरबत्ती के फेरे लगवाए।

    कोर्ट ने कहा,

    अधिनियम में यह नहीं बताया गया है कि पवित्र आग क्या है। शादी में अगरबत्ती जल रहे थे और अपीलकर्ता और प्रतिवादी दोनों ने इसके सात फेरे लिए इस पर कोई विवाद नहीं है। इस स्थिति में, हमारी दृष्टि से हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 7 के तहत शादी हुई।”

    पीठ ने फैमिली कोर्ट के फैसले की प्रशंसा की और विवाह संबंध बहाल करने के फैसले को सही ठहराया।


     
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