सिर्फ गुजारे की राशि के दावे के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम की शरण में नहीं जा सकते : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

9 May 2018 3:36 PM GMT

  • सिर्फ गुजारे की राशि के दावे के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम की शरण में नहीं जा सकते : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    हर कोई यहाँ तक कि गुजारे की राशि के लिए भी अधिनियम 2005 की शरण में नहीं जा सकता, इस अधिनियम का उद्देश्य उन महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना है जो किसी भी तरह की पारिवारिक हिंसा की शिकार हैं, कोर्ट ने कहा।

    बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के प्रावधानों को सिर्फ गुजारे की राशि के दावे के लिए प्रयोग नहीं किया जा सकता। जब तक कि पक्षकार घरेलू हिंसा का आरोप नहीं लगाता और कोर्ट में पीड़ित के रूप में नहीं आता तब तक इस प्रावधान का प्रयोग नहीं किया जा सकता।

    इस मामले में फैमिली कोर्ट ने अधिनियम की धारा 20 के तहत पति को 2 लाख रुपए अपनी पत्नी को चुकाने का आदेश दिया। पति ने हाई कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी।

    न्यायमूर्ति भारती एच डेंगरे ने पत्नी के आवेदन पर गौर करने के बाद कहा कि पत्नी ने सिर्फ यह कहा है कि पति बहुत पैसा कमाता है और वह बहुत अमीर है जबकि पत्नी के पास आजीविका का कोई साधन नहीं है, आवेदन में किसी भी तरह के घरेलू हिंसा का आरोप नहीं लगाया है।

    सिर्फ पीड़ित लोग ही ले सकते हैं इस अधिनियम की मदद

    पीठ ने कहा कि यह अधिनियम सिर्फ घरेलू हिंसा के उन पीड़ितों को ही राहत दिलाने के लिए है जो कि एक साथ रह रहे हैं। कोई महिला/पुरुष अगर घरेलू हिंसा के पीड़ित के रूप में कोर्ट आता है तभी इस अधिनियम के तहत उसे राहत मिल सकती है।

    फैमिली कोर्ट के आदेश को गलत बताते हुए कोर्ट ने कहा, “यद्यपि फैमिली कोर्ट ने आलोच्य आदेश में याचिकाकर्ता पति की ओर से कोर्ट में पेश किये गए इन बयानों पर गौर किया कि याचिकाकर्ता अपने खिलाफ घरेलू हिंसा होने की शर्त को साबित नहीं कर पाई है, और इसलिए इस याचिका पर गौर नहीं किया जा सकता, पर फैमिली कोर्ट ने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और मामले के बारे में अपने स्तर पर ही आदेश दिया।  कोर्ट ने सिर्फ यह कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 20 के तहत याचिकाकर्ता अपने और अपने बच्चे के लिए राहत की मांग कर रही है पर कोर्ट ने यह जांचने की कोशिश नहीं की कि याचिकाकर्ता घरेलू हिंसा की पीड़ित है कि नहीं। यद्यपि कोर्ट अपने समक्ष रखे गए सबूतों के आधार पर यह तय करेगा कि घरेलू हिंसा से कोई पीड़ित है कि नहीं पर कोर्ट को कम से कम यह देखना चाहिए था कि कोर्ट की शरण में आने वाली महिला प्रथम दृष्टया पीड़ित है कि नहीं। सिर्फ गुजारे की राशि की मांग के लिए कोई  व्यक्ति इस अधिनियम की शरण में नहीं आ सकता। यह अधिनियम परिवार में घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं को राहत दिलाने के लिए है।”

    कोर्ट ने अंततः इस मामले को दुबारा फैमिली कोर्ट को भेज दिया और उससे महिला की मांग के बारे में घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 20 के तहत निर्णय लेने को कहा है।


     
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