सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव के लिए “ दो बच्चों” की पॉलिसी को अनिवार्य बनाने पर दाखिल PIL पर सुनवाई से इनकार किया

LiveLaw News Network

9 May 2018 9:39 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव के लिए “ दो बच्चों” की पॉलिसी को अनिवार्य बनाने पर दाखिल PIL पर सुनवाई से इनकार किया

     इससे पहले तीन मौकों पर भी ऐसी PIL हमारे सामने आई थीं और हमारा यही रुख था। हम चुनाव आयोग को नियम बनाने के लिए कहने या  या बनाने को मजबूर नहीं कर सकते। हम उन क्षेत्रों में नहीं जा सकते जहां  हमें नहीं जाना चाहिए” : SC बेंच 

    सुप्रीम कोर्ट ने आज दो बच्चों की नीति को अपनाकर सख्त आबादी नियंत्रण उपायों को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र को दिशानिर्देश जारी करने वाली एक जनहित याचिका को मंजूर करने से इनकार कर दिया।

    इसके बाद  याचिकाकर्ता द्वारा याचिका को वापस ले लिया गया।

    जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस मोहन एम शांतनागौदर ने कहा: ' इससे पहले तीन मौकों पर भी ऐसी PIL हमारे सामने आई थीं और हमारा यही रुख था। हम चुनाव आयोग को नियम बनाने के लिए कहने या  या बनाने को मजबूर नहीं कर सकते। हम उन क्षेत्रों में नहीं जा सकते जहां  हमें नहीं जाना चाहिए।’

     यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि पीआईएल में दो बच्चों के मानदंड को संसदीय, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने, राजनीतिक दल बनाने, राजनीतिक पदाधिकारी बनने और आवेदन करने, कार्यकारी और न्यायपालिका में नौकरियों के लिए और सरकारी सहायता व सब्सिडी प्राप्त करने के लिए अनिवार्य मानदंड बनाने के लिए उचित कदम उठाने के लिए केंद्र  को दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई थी।

     सर्वोच्च न्यायालय के वकील और दिल्ली भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर पीआईएल में महिलाओं और बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और कानून मंत्रालय को उत्तरदाताओं के रूप में बनाया था। इसमें संविधान के कार्य की समीक्षा करने के लिए राष्ट्रीय आयोग की सिफारिशों के कार्यान्वयन की मांग की (एनसीआरडब्ल्यूसी) जिसे न्यायमूर्ति वेंकटचलैया आयोग के रूप में भी जाना जाता है।

     यह कहा गया कि एनसीआरडब्ल्यूसी ने 31 मार्च, 2002 को तत्कालीन कानून मंत्री को जनसंख्या नियंत्रण पर सुझाव सहित अपनी व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की थी लेकिन दुर्भाग्यवश सरकारों ने इस संबंध में कुछ भी नहीं किया .. याचिका में आरोप लगाया गया है कि जनसंख्या नियंत्रण उपायों को लागू करने के लिए राज्य और कार्यपालिका की निरंतर निष्क्रियता और उदासीनता के कारण सभी नागरिकों के लिए स्वास्थ्य, आश्रय, पानी, शीघ्र न्याय, पर्यावरण और आजीविका के अधिकार सहित संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार सुरक्षित नहीं किए जा सकते।

     "याचिका जनसंख्या नियंत्रण पर संविधान के कार्य की समीक्षा करने के लिए राष्ट्रीय आयोग की सिफारिश को लागू करने की व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार को एक दिशा निर्देश की मांग कर रही है,” पीआईएल में कहा, "जनसंख्या नियंत्रण उपायों को लागू करने के लिए यह राज्य और कार्यपालिका की निरंतर उदासीनता है जो बदले में मौलिक अधिकारों के आनंद को खतरे में डाल देती है।"

    राज्य की निष्क्रियता और उदासीनता जनता को चोट पहुंचाती है क्योंकि स्वास्थ्य का अधिकार, आश्रय का अधिकार, पानी का अधिकार, तेजी से न्याय करने का अधिकार, स्वस्थ वातावरण का अधिकार, विकास का अधिकार, गरिमा का अधिकार, आजीविका का अधिकार, शांतिपूर्वक रहने का अधिकार, बराबर काम के बराबर वेतन का अधिकार, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत कानूनी सहायता के अधिकार के जरिए जनसंख्या नियंत्रण के बिना सभी नागरिकों को सुरक्षित नहीं किया जा सकता।

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