चुनाव याचिका पर गौर करने के लिए कोई कोर्ट वैधानिक अवधि को बढ़ा नहीं सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

3 May 2018 9:24 AM GMT

  • चुनाव याचिका पर गौर करने के लिए कोई कोर्ट वैधानिक अवधि को बढ़ा नहीं सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    तो संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट और ही अनुच्छेद 32, 136, या 142 के तहत यह कोर्ट चुनाव से संबंधित अवधि को बढ़ा सकता है, पीठ ने कहा।

    सुप्रीम कोर्ट ने रेजी थॉमस बनाम केरल राज्य के मामले में कहा कि एक बार जब क़ानून के तहत किसी चुनाव की याचिका को एक समय सीमा देकर स्वीकार कर लिया जाता है, तो नियम के तहत इसकी समय सीमा बढाने का कोई प्रावधान नहीं होने के कारण कोई भी कोर्ट चुनाव के मामलों में अवधि को बढ़ा नहीं सकता है।

    न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ की अध्यक्षता वाली पीठ ने एक को-ऑपरेटिव सोसाइटी के चुनाव के मामले में केरल हाई कोर्ट के इस बारे में आदेश को खारिज कर दिया और कहा कि न तो संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट और न ही अनुच्छेद 32, 136, या 142 के तहत यह कोर्ट चुनाव से संबंधित अवधि को बढ़ा सकता है।

    हाई कोर्ट ने इस मामले के पक्षकारों को एक पंचाट में भेज दिया था जो चुनावी विवादों की सुनवाई कर रहा था और इस मामले को सुलझाने के लिए 30 दिन का समय दिया था क्योंकि चुनाव याचिका के लिए निर्धारित समय सीमा समाप्त हो गई थी।

    केरल को-ऑपरेटिव सोसाइटीज एक्ट, 1969 के अनुसार, “किसी प्रबंधन बोर्ड या सोसाइटी के किसी अधिकारी के चुनाव से संबंधित कोई विवाद को-ऑपरेटिव आर्बिट्रेशन कोर्ट स्वीकार नहीं कर सकता है बशर्ते कि यह उसके पास चुनाव की तिथि के एक महीने के भीतर भेजा जाए।”

    अपील में तीन सदस्यीय पीठ जिसमें न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनगौदर और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा शामिल हैं, ने इस मामले पर गौर किया कि धारा 69(3) के तहत हाई कोर्ट इस मामले में ज्यादा अवधि दे सकता है या नहीं।

    पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट क़ानून के तहत पक्षकारों को वैकल्पिक निदान की ओर निर्देशित नहीं करना चाहिए था और चुनाव के बारे में विवाद को सुलझाने के लिए अतिरिक्त समय नहीं देना चाहिए था। कोर्ट ने कहा, “...क़ानून के तहत जब इस विवाद को सुलझाने के लिए एक समय सीमा दे दे गई है तो क़ानून में किसी भी तरह का प्रावधान नहीं होने के कारण किसी भी परिस्थिति में न तो हाई कोर्ट (अनुच्छेद 226 के तहत) और न ही सुप्रीम कोर्ट (अनुच्छेद 32, 136 या 142 के तहत) इस अवधि को बढ़ा सकता है। चुनावी मामलों में सीमा को देखते हुए, कोर्ट को प्रावधानों की व्याख्या बहुत ही कड़ाई से करनी चाहिए थी।”

    इसके बाद पीठ ने हाई कोर्ट को निर्देश दिया कि वह इस मामले की नए सिरे से सुनवाई करे।

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