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अगर चुना हुआ प्रतिनिधि पद और गोपनीयता की शपथ नहीं लेता है तो विधायिका को इसके लिए गंभीर परिणाम का प्रावधान करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
![अगर चुना हुआ प्रतिनिधि पद और गोपनीयता की शपथ नहीं लेता है तो विधायिका को इसके लिए गंभीर परिणाम का प्रावधान करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें] अगर चुना हुआ प्रतिनिधि पद और गोपनीयता की शपथ नहीं लेता है तो विधायिका को इसके लिए गंभीर परिणाम का प्रावधान करना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2017/12/madan-lokur-deepak-gupta.jpg)
हमारा मानना है कि निर्वाचित प्रतिनिधि अगर पद और गोपनीयता की शपथ नहीं लेता है तो उसको एक निर्धारित गंभीर परिणाम की चेतावनी दी जानी चाहिए। इसका मुख्य कारण यह है कि संविधान भी पद और गोपनीयता की शपथ को गंभीरता प्रदान करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया है कि पद और गोपनीयता की शपथ नही लेने वाले चुने हुए प्रतिनिधि को विधायिका इसके लिए गंभीर परिणाम होने की बात सुझाए।
न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने सुझाव दिया कि निर्वाचित प्रतिनिधि का रिकॉर्ड रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार के संबंधित अधिकारी को दिया जाना चाहिए। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने अपनी अलग राय में कहा कि शपथ दिलाने की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी होनी चाहिए ताकि इस तरह का कोई विवाद भविष्य में पैदा नहीं हो।
उक्त दोनों जजों की पीठ एक मामले की सुनवाई कर रही थी जिसमें यह आशंका व्यक्त की गई है कि उत्तर प्रदेश में कुछ पंचायत सदस्यों ने शपथ नहीं ली है। जिन सदस्यों ने कथित तौर पर शपथ नहीं ली है उन्होंने अविश्वास का प्रस्ताव दिया है। कोर्ट ने इस मामले में कहा कि अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने वाले पंचायत के निर्वाचित सदस्य हैं और वे अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर सकते हैं।
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि किसी निर्वाचित सदस्य को अविश्वास प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है क्योंकि इसका एक ही परिणाम है कि अगर किसी सदस्य ने शपथ नहीं ली है तो वह पंचायत में बैठ नहीं सकता/सकती है।
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा कि शपथ लेना के गंभीर मौक़ा होता है, ऐसा नहीं करने के गंभीर परिणाम होने चाहिएं जैसे कि एक निश्चित समय के बाद उस सीट को खाली घोषित कर दिया जाए।
हालांकि न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता ने इस याचिका को खारिज किये जाने की बात से सहमति जताई पर कहा कि जिन सदस्यों ने शपथ नहीं ली है उन्हें इस तरह के प्रस्ताव पर वोट डालने का अधिकार नहीं है और इस तरह के प्रस्ताव पर वे हस्ताक्षर नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, “अगर ऐसा है हुआ तो इससे बहुत ही अजीबोगरीब स्थिति पैदा होगी कि इस तरह का कोई सदस्य प्रस्ताव पर हस्ताक्षर तो कर कसता है पर वह वोट नहीं डाल सकता।”
न्यायमूर्ति गुप्ता ने कहा, “...इस शपथ को निरर्थक नहीं बनाया जा सकता और विधायिका को इसके परिणाम के बारे में प्रावधान करना चाहिए। इस तरह के विवाद भविष्य में नहीं हो इसके लिए यह सलाह दी जाती है कि शपथ लेने/दिलाने की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जानी चाहिए।”