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इच्छुक गवाहों के साक्ष्य में पक्षपात के प्रभाव को कभी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
29 April 2018 8:28 AM GMT
इच्छुक गवाहों के साक्ष्य में पक्षपात के प्रभाव  को कभी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
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  इस तरह के प्रभावों के तहत मनुष्य जानबूझकर नहीं, कुछ तथ्यों को दबाएगा, दूसरों को नरम या संशोधित करेगा और अनुकूल रंग प्रदान करेगा, बेंच ने कहा 

भास्कर राव बनाम महाराष्ट्र राज्य में सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के मामले में आरोपी 14 लोगों को बरी करते हुए कहा कि किसी मामले के परिणाम में गवाहों के साक्ष्य में पक्षपात के प्रभाव को कभी भी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति एनवी रमना और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर की बेंच ने उच्च न्यायालय द्वारा दोषी 14 लोगों द्वारा अपील की इजाजत देते हुए ये व्यवस्था दी जिसमे ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए उन्हें दोषी करार दिया था।

 जमानत मिलने से पहले इस मामले में आरोपी लगभग तीन साल जेल काट चुका था। उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करने वाली पीठ ने पाया कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान में सुधार और विरोधाभासों के साथ अभियोजन पक्ष के मामले में कमियां और विसंगतियां हैं और इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि अभियुक्त व्यक्ति ने वास्तव में एक गैरकानूनी जमावड़ा किया और मारने के लिए मृतक पर हमला किया।

अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि इस मामले में ज्यादातर गवाह एक दूसरे से जुड़े हुए हैं, पीठ ने विभिन्न उदाहरणों को संदर्भित किया और कहा: "जो कोई भी अदालत के समक्ष गवाह रहा है, अगर परिणाम में मजबूत रूचि हो तो परिणामस्वरूप दिलचस्पी नहीं रखने वाले लोगों के साथ उसी तराजू में तौलने के लिए, विकृत सत्य के लिए अदालत के दरवाजे को खोलना होगा। यह नियम जो इस प्रणाली की धार को बनाए रखता है  और जो इस तरह के स्रोतों से प्राप्त साक्ष्य के मूल्य को निर्धारित करता है, सावधानीपूर्वक और ध्यान से देखा और लागू किया जाना चाहिए। इस तथ्य के बारे में कोई विवाद नहीं है कि गवाह के हित में उसकी गवाही को प्रभावित करना एक सार्वभौमिक सत्य है। "

अदालत ने यह भी कहा कि पूर्वाग्रह के प्रभाव में, एक व्यक्ति सही तरीके से न्याय करने की स्थिति में नहीं हो सकता, भले ही वो ईमानदारी से ऐसा करने की इच्छा रखता है और वह निष्पक्ष तरीके से साक्ष्य प्रदान करने की स्थिति में नहीं हो सकता जब तक इसमें अपनी रूचि से शामिल होता है।

  “ इस तरह के प्रभावों के तहत मनुष्य जानबूझकर नहीं, कुछ तथ्यों को दबाएगा, दूसरों को नरम या संशोधित करेगा और अनुकूल रंग प्रदान करेगा।”  अदालत ने कहा कि ये मानव साक्ष्य की विश्वसनीयता के संबंध में सबसे अधिक नियंत्रित विचार हैं और साक्ष्य के नियमों को लागू करने और प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के तहत सत्य के पैमाने पर उनका वजन निर्धारित करने में इसे कभी अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।


 
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