रामजन्मभूमि- बाबरी विवाद: सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव सामाजिक ढांचे पर पड़ेगा, राजू रामचंद्रन की दलील, साल्वे ने कहा, देश 1992 से आगे निकल चुका है [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

28 April 2018 4:56 PM GMT

  • रामजन्मभूमि- बाबरी विवाद: सुप्रीम कोर्ट के फैसले का प्रभाव सामाजिक ढांचे पर पड़ेगा, राजू रामचंद्रन की दलील, साल्वे ने कहा, देश 1992 से आगे निकल चुका है [आर्डर पढ़े]

     रामजन्मभूमि बाबरी विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पक्ष की ओर से  पेश वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने पीठ को बताया कि वरिष्ठ वकील राजीव धवन स्वास्थय कारणों से उपस्थित नहीं हुए हैं। इसके बाद उन्होंने अपनी दलीलें रखते हुए कहा कि ये मामला बहुत ही महत्वपूर्ण है इसलिए इसे संवैधानिक पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। राजू रामचंद्रन ने कहा कि हाई कोर्ट ने इस केस को असाधारण महत्व वाले केस के तौर पर लिया था कानून के सवाल पर नहीं। इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में फुलकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की थी।

    उन्होंने कहा कि इस केस की संवेदनशीलता के कारण न सिर्फ अयोध्या बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी कानून व्यस्था प्रभावित हुई। हाई कोर्ट के आदेश से कोई भी पक्ष खुश नही है इस लिए सभी ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। रामचंद्रन ने कहा कि राष्ट्र के लिए ये महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट का जो भी फैसला आएगा इसका प्रभाव देश की सामाजिक ढांचे पर पड़ेगा क्योंकि इस केस से देश के दो धार्मिक समुदाय की धार्मिक भावनाएं जुड़ी हुई हैं।

    उन्होंने कहा कि 1994 के संवैधानिक पीठ के फैसले पर विचार करने की जरूरत है क्योंकि इसके आधार पर ही हाईकोर्ट ने 2010 में सूट पर फैसला सुनाया।

    वहीं दूसरे पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि देश 1992 से आगे बढ़ चुका है। अब ये सिर्फ संपति विवाद रह गया है।

    हरीश साल्वे ने कहा कि धर्म और राजनीति से जुड़े मुद्दे की चर्चा अदालत के दरवाजों से बाहर की जानी चाहिए। टीवी शाम को क्या दिखाता है, ये चर्चा अदालत में नही्ं चाहिए। अदालत इस मामले की गंभीरता को समझती है तभी इस मामले की सुनवाई कर रही है। अब ये दो धर्मों का मामला नही है ये केवल सम्पति विवाद का मामला है और उसे उसी तरह से लेना चाहिए।

    वहीं  रामलला विराजमान की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील के परासरन ने दलीलें रखते हुए कहा कि इस मामले की सुनवाई संविधान पीठ द्वारा किया जाना ना तो व्यावहारिक है और ना ही कानून सम्मत है। परासरन ने कहा कि ये अब किसी समुदाय का मामला नही रहा। ये केवल एक जमीनी विवाद है। इसके लिए कभी 5 जज, कभी 7 और कभी 9 जज पीठ गठित करने की मांग का कोई अंत नही है।इसमें कोई संवैधानिक पेंच नही है तो बड़ी बेंच या उससे बड़ी बेंच के सामने सुनवाई केवल वक्त बर्बाद करना है। इस मामले में 15 मई को भी सुनवाई जारी रहेगी।

    गौरतलब है कि 6 अप्रैल को रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद टाइटल सूट पर सुप्रीम कोर्ट में एक बार फिर हाई वोल्टेज सुनवाई हुई थी जब मुस्लिम पार्टियों के लिए उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली तीन जजों की बेंच से प्रेस के सामने खुली अदालत में स्पष्टीकरण देने को कहा कि वो रामजन्मभूमि मामले से बहुविवाह मामले को ज्यादा मानते हैं या नहीं।

    45 मिनट तक धवन ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की पीठ से सवाल किया कि क्यों सर्वोच्च न्यायालय ने बहुविवाह मामले के खिलाफ दाखिल मामले को संविधान पीठ में भेजने का फैसला किया जबकि रामजन्मभूमि मामले में उठाए सवालों को संविधान पीठ में  भेजने के  मुस्लिम पार्टियों के अनुरोध के बावजूद विचार ही किया जा रहा है।

    "मुझे बताएं, बहुविवाह को असंवैधानिक घोषित करने वाली याचिकाएं -जो मुसलमानों के लिए हानिकारक मुद्दा है और  रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में उठाए गए प्रश्नों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है?” धवन ने कहा था।


     

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