अदालत पर गुस्सा होना महँगा पड़ा बुजुर्ग को – मजिस्ट्रेट ने गिरफ्तार कर इहबास भिजवाया; दिल्ली हाई कोर्ट ने माफी माँगी, सरकार से दो लाख मुआवजा देने को कहा [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

27 April 2018 4:03 PM GMT

  • अदालत पर गुस्सा होना महँगा पड़ा बुजुर्ग को – मजिस्ट्रेट ने गिरफ्तार कर इहबास भिजवाया; दिल्ली हाई कोर्ट ने माफी माँगी, सरकार से दो लाख मुआवजा देने को कहा [निर्णय पढ़ें]

    कोर्ट में अपने मामले के कछुआ चाल से आजिज आकर दिल की बीमारी से ग्रस्त 71 वर्षीय वृद्ध का गुस्सा फूट पड़ा। इसका खामियाजा उन्हें 20 दिन तक मानसिक अस्पताल में बिताने के रूप भी भरना पड़ा। अब दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली सरकार से कहा है कि वह उस वृद्ध को दो लाख रुपए मुआवजा दे। साथ ही कोर्ट ने उनसे माफी माँगी और कहा कि मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के गलत आदेश पास करने के कारण उन्हें यह परेशानी झेलने पड़ी।

    न्यायमूर्ति एस मुरलीधर और न्यायमूर्ति आईएस मेहता ने 71 वर्षीय इस बुजुर्ग से माफी मांगी जिनको गत वर्ष इहबास में 20 दिन रखने के बाद छुट्टी दी गई थी।

    यह बुजुर्ग 2008 में एक मोटर दुर्घटना के मामले में ट्रिब्यूनल में अपना बचाव कर रहे थे।

    प्रतिवादी गत वर्ष निर्धारित तिथि पर अदालत समय पर नहीं आ पाया। जब वह अदालत पहुंचा तो उसे बताया गया कि अब उसके मामले की सुनवाई किसी अन्य दिन होगी। बुजुर्गवार को गुस्सा आ गया। इस पर पीठासीन अधिकारी ने उसकी गिरफ्तारी का आदेश दिया और उसे पुलिस हिरासत में भेज दिया। यहाँ से उसे अस्पताल में जांच के लिए भेजा गया। उस रात में ड्यूटी मजिस्ट्रेट ने उसे इहबास भेजने का आदेश दिया। और यह सब बिना किसी क़ानून का सहारा लिए किया गया।

    इस पर हाई कोर्ट ने कहा, “10 साल तक न्याय के लिए प्रतीक्षा की वजह से यह व्यक्ति अपना धैर्य खो बैठा...इतनी लंबी अवधि तक न्याय के लिए प्रतीक्षा की परिणति थी यह।”

    “जज ने जो किया वह भी अप्रत्याशित नहीं था। जज भी आदमी हैं। इनमें से अधिकाँश पर काम का काफी बोझ है। उनके धैर्य की अमूमन प्रतीक्षा होती रहती है...एक जज को इस तरह के गुस्से के इजहार के लिए तैयार रहना चाहिए...” 

    “...इस व्यक्ति को बिना किसी आदेश के पुलिस की हिरासत में भेजना और फिर उसकी जांच के लिए अस्पताल भेजने का विकल्प क़ानून में मौजूद नहीं है...इस व्यक्ति को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा बिना किसी कानून का संदर्भ दिए या बिना किसी न्यायिक शक्ति के मानसिक अस्पताल में भेजना स्वीकार्य नहीं है...”, कोर्ट ने कहा।

    कोर्ट ने एमएसीटी-2, रोहिणी अदालत को इस मामले में छह माह के भीतर फैसला देने को कहा है।


     
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