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केंद्र ने कॉलेजियम की अनुशंसा को बदला, अतरिक्त जज को स्थाई करने के बजाय उनके कार्यकाल की अवधि बढ़ा दी

LiveLaw News Network
24 April 2018 3:10 PM GMT
केंद्र ने कॉलेजियम की अनुशंसा को बदला, अतरिक्त जज को स्थाई करने के बजाय उनके कार्यकाल की अवधि बढ़ा दी
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केंद्र और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के बीच चल रही खींचतान थोड़ी और बढ़ गई है। अब केंद्र ने एक पक्षीय रूप से कॉलेजियम की अनुशंसा को बदल दिया है। केंद्र ने अतरिक्त जज को स्थाई बनाने के सुझाव की जगह उनके कार्यकाल को बढ़ा दिया है।

19 अप्रैल को जारी एक अधिसूचना में केंद्र ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के अतरिक्त जज न्यायमूर्ति रामेन्द्र जैन की कार्य अवधि को छह महीने के लिए बढ़ा दिया।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की कॉलेजियम ने इस वर्ष मार्च में न्यायमूर्ति जैन को स्थाई जज बनाने की अनुशंसा की थी। केंद्र सरकार हालांकि इस सुझाव पर चुप बैठी रही जबकि कॉलेजियम उसको इस बारे में याद दिलाता रहा वह इस पर अपनी अनुमति शीघ्र दे क्योंकि न्यायमूर्ति जैन की अवधि 19 अप्रैल को समाप्त हो रही थी। इस कॉलेजियम में शामिल अन्य वरिष्ठ जज हैं न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई।

फिर जब न्यायमूर्ति जैन की अवधि समाप्त होने में दो दिन शेष रह गए थे, कॉलेजियम ने केंद्र को दुबारा इस नियुक्ति के बारे में याद दिलाया। अपनी अनुशंसा में कॉलेजियम ने कहा था कि उनके ट्रांसफर के मुद्दे पर 12 जुलाई 2017 को गौर किया जा चुका है जिसमें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में उनकी स्थाई नियुक्ति का कारण बताया गया है।

इस अनुशंसा के बावजूद केंद्र ने सिर्फ न्यायमूर्ति जैन की कार्य अवधि को बढ़ा दिया है जबकि स्थापित क़ानून यह कहता है कि केंद्र को कॉलेजियम की अनुशंसा अवश्य माननी चाहिए अगर दूसरी बार ऐसा किया गया है तो।

केंद्र की कार्रवाई पर नाराजगी जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा, “सरकार अपने मन से ऐसा निर्णय कैसे कर सकती है? स्थापित क़ानून के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की अनुशंसा, अगर दुबारा भेजी जाती है, तो इसे मानना सरकार के लिए बाध्यकारी है...

... अगर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम अपने सुझावों में संशोधन न करे तो मुझे नहीं लगता कि इस बारे में कोई दुविधा है और उस स्थिति में केंद्र को इन सुझावों को मानना ही होगा। मैं उम्मीद करता हूँ कि मुख्य न्यायाधीश इस बारे में कुछ करेंगे ताकि केंद्र की मनमानी पर लगाम लगे...”

न्यायिक नियुक्तियों में सरकारी हस्तक्षेप

नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद न्यायिक नियुक्तियों में केंद्र के हस्तक्षेप को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कई जज अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं।  न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने तो सीजेआई को एक पत्र भी इस बारे में लिखा था और सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों की बैठक बुलाने का आग्रह किया था ताकि सरकारी हस्तक्षेप की चर्चा की जा सके।

न्यायमूर्ति पी कृष्ण भट के खिलाफ शुरू की गई जांच की प्रक्रिया भी केंद्र के हस्तक्षेप का एक उदाहरण है। कॉलेजियम ने उनकी नियुक्ति की अनुशंसा की लेकिन केंद्र ने उनके खिलाफ सीधे हाई कोर्ट को जांच करने के लिए कह दिया।

केंद्र की कार्रवाई का विरोध करते हुए न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने अब कहा है कि अगर केंद्र को जज भट को दी गई पदोन्नति को लेकर कोई आपत्ति थी तो वह हाई कोर्ट को लिखने की बजाय इस अनुशंसा को कॉलेजियम को वापस कर सकती थी।


 

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