वे कारण जिनकी वजह से उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने खारिज किया महाभियोग का नोटिस [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

23 April 2018 1:01 PM GMT

  • वे कारण जिनकी वजह से उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने खारिज किया महाभियोग का नोटिस [आर्डर पढ़े]

    उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग के विपक्ष के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। नायडू ने कहा कि जिन सांसदों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किया है वे अपने ही मामले के बारे में सुनिश्चित नहीं हैं।

    दुर्व्यवहार साबित नहीं हुआ

    नायडू ने एम कृष्णा स्वामी बनाम भारत संघ मामले में आए फैसले के संदर्भ में इस प्रस्ताव की जाँच की कि अगर इसके सभी बयानों को सही माना जाए तो जो आरोप लगाए गए हैं क्या उससे संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत “दुर्व्यवहार साबित” होता है या नहीं।

    आदेश में कहा गया कि नायडू ने क़ानून विशेषज्ञों, संविधान के जानकारों, दोनों सदनों के पूर्व महासचिवों, पूर्व क़ानून अधिकारियों, विधि आयोग के सदस्यों और प्रख्यात न्यायविदों से सलाह मशविरा किया। आदेश के अनुसार, इन सभी विशेषज्ञों ने एक मत से यह राय दी कि जज को हटाने के लिए यह एक उचित प्रस्ताव नहीं है।

    नायडू ने अनुच्छेद 124(4) में प्रयुक्त भाषा पर गौर किया और कहा कि इसमें “दुर्व्यवहार साबित” और “अक्षमता” जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है। उन्होंने कहा कि “साबित” प्रत्यय के प्रयोग का मतलब है किसी जज को हटाने के लिए संसदीय प्रक्रिया के समक्ष वास्तव में जज की गलती को साबित करना।

    उन्होंने, इसलिए कहा कि प्रस्ताव में जिस तरह के वाक्य प्रयुक्त हुए हैं उससे यह लगता है कि “सिर्फ संदेह, अटकल या अनुमान” को आधार बनाया गया है जो कि संदेह साबित करने के लिए प्रयाप्त सबूत नहीं हैं जैसा कि अनुच्छेद 124(4) के तहत “दुर्व्यवहार साबित” का मामला बनाने के लिए जरूरी है।

    नायडू ने कहा कि किसी तीसरे पक्ष के बीच बातचीत जिनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है, सीजेआई के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत नहीं बन सकते। उनका इशारा मेडिकल कॉलेज धूस कांड के सिलसिले में तीन आरोपियों के बीच कथित बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट की ओर था।

    सुप्रीम कोर्ट का आतंरिक मामला

    दिलचस्प बात यह है कि आदेश में कामिनी जायसवाल बनाम भारत संघ मामले का भी जिक्र किया गया है जिसे सांसदों ने महाभियोग के लिए दूसरा आधार बनाया है। प्रस्ताव में कहा गया है कि सीजेआई ने कामिनी जायसवाल और सीजेएआर की याचिकाओं को जिस तरीके से निपटाया उससे जजों के लिए निर्धारित आचार संहिता का स्पष्ट उल्लंघन होता है। इन दो याचिकाओं में न्यायपालिका के शीर्ष स्तर में भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कराने की मांग की गई थी।

    इस संदर्भ में गत नवंबर में सुप्रीम कोर्ट में हुए अप्रत्याशित घटना का जिक्र किया गया है जिसमें कोर्ट ने दो जजों की पीठ द्वारा पास किए गए आदेश को निरस्त कर दिया। इस क्रम में सीजेआई और एडवोकेट प्रशांत भूषण के बीच बाद-विवाद भी हुआ था।

    नायडू ने यह कहने के लिए इस फैसले पर भरोसा किया कि यह न्यायपालिका का आतंरिक मामला है और सुप्रीम कोर्ट इसको खुद ही निपटाएगा। उन्होंने कहा : महाभियोग के नोटिस में जिन पांच कारणों को गिनाया गया है, मेरी राय में इन पर गौर नहीं किया जा सकता। वर्तमान मामले से जो बात सामने आ रही है उसमें न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नजरअंदाज करने का गंभीर संकेत है जो कि भारतीय संविधान का आधारभूत सिद्धांत है। सम्पूर्ण तथ्यों पर गौर करने के बाद मैं दृढ़ता से यह मानता हूँ कि इस प्रस्ताव को स्वीकार करना  न तो विधि-सम्मत है, न ही वांछनीय और न ही उचित”।

    उन्होंने आगे कहा कि जो आरोप लगाए गए हैं वे या तो न्यायपालिका का आतंरिक मामला है या फिर ये आधारहीन और अनुमान पर आधारित हैं जिसके आधार पर जांच की प्रक्रिया शुरू नहीं की जा सकती। इसके अलावा उन्होंने कहा कि देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्तियों में से एक व्यक्ति के खिलाफ इस तरह के प्रस्ताव पर गौर करने के क्रम में हर पहलुओं पर सावधानीपूर्वक और भावातिरेक के बिना गौर किया जाना चाहिए क्योंकि इस तरह की प्रक्रिया में न्यायिक प्रणाली में आम लोगों के विश्वास को कम करने की प्रवृत्ति होती है।

    नायडू ने कहा, “एक प्रतिष्ठापूर्ण गणतांत्रिक परम्परा के उत्तराधिकारी और वर्तमान और भविष्य की लोकतांत्रिक राजनीत के संरक्षक होने के कारण मेरे विचार में, संविधान निर्माताओं द्वारा प्रदत्त इस भव्य प्रासाद को हम सबको मिलकर मजबूत करना चाहिए न कि इसको कमजोर। हम अपने प्रशासन के किसी भी स्तंभ को किसी भी विचार, शब्द या कार्य से कमजोर किए जाने की इजाजत नहीं देंगे”।

    सांसद संसदीय रिवाजों और परंपराओं को तोड़ रहे हैं

    नायडू ने कहा कि राज्यसभा के हैंडबुक में जिन संसदीय रिवाजों और परंपराओं का उल्लेख है उनकी अनदेखी की गई है। उन्होंने कहा कि किसी सदस्य द्वारा अध्यक्ष को दिए गए किसी प्रस्ताव को स्वीकार करने और इनको सदस्यों में प्रसारित करने तक उस प्रस्ताव के बारे में प्रचार नहीं करने की बात कही गई है।

    हालांकि, वर्तमान मामले में सांसदों ने प्रस्ताव सौंपने के तुरंत बाद एक प्रेस कांफ्रेंस कर प्रस्ताव में लगाए गए आरोपों के बारे में बताया था। नायडू ने कहा कि ऐसा करना संसदीय औचित्य और शिष्टाचार के खिलाफ है क्योंकि एक संस्थान के रूप में यह सीजेआई की गरिमा को कम करता है।


     
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