प्रो. शमनाद बशीर की याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एएसजी से पूछा, क्या नेशनल लॉ स्कूल संस्थान राष्ट्रीय महत्व के हैं?
LiveLaw News Network
21 April 2018 12:13 PM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि एएसजी तुषार मेहता से कहा कि वे कोर्ट को बताएं कि क्या नेशनल लॉ स्कूल्स को राष्ट्रीय महत्त्व का समझा जा सकता है और क्या उन्हें संविधान के सातवें अनुसूची के तहत केंद्रीय सूची की प्रविष्टि 63 के तहत राष्ट्रीय घोषित किया जा सकता है?
न्यायमूर्ति एसए बोबडे और नागेश्वर राव की पीठ ने प्रो. शमनाद बशीर की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह पूछा।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की पैरवी करते हुए गोपाल शंकरनारायण और सुश्री लिज़ मैथ्यू ने कोर्ट को बताया कि उनकी याचिका पर केंद्र, बार काउंसिल के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्र और राजीव गाँधी नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ, पटियाला को नोटिस जारी किया जिस पर सीएलएटी, 2016 की परीक्षा आयोजित करने का जिम्मा था।
कोर्ट का ध्यान इस और खींचा गया कि हर साल सीएलएटी का आयोजन करने वाले नेशनल लॉ स्कूलों की तरह ही अन्य एनएलयू के रेस्पोंस की भी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए। इससे सहमत होने के बाद कोर्ट ने सभी एनएलयू को नोटिस जारी किया।
वर्ष 2015 में दायर याचिका में कहा गया कि सीएलएटी को सांस्थानिक रूप दिया जाना चाहिए। परीक्षा आयोजन में होने वाली कई तरह की गड़बड़ी के अलावा याचिका में यह भी कहा गया था कि यह पीए इनामदार एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्यमामले में कोर्ट के फैसले का उल्लंघन हो रहा है। इस फैसले में कोर्ट ने अनिवासी भारतीयों के लिए कोटा 15% निर्धारित किया था।
प्रो. बशीर की याचिका में कहा गया कि सभी एनएलयू ने एनआरआई के संबंध में इस फैसले का उल्लंघन किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि इन संस्थानों में धनी और पहुँच वाले लोगों को जिसका कोई भी दूर का रिश्तेदार एनआरआई है, सीएलएटी में बिना अच्छा नंबर लाए भी प्रवेश मिल जाता है। इसलिए उन्होंने याचिका में विशेषज्ञों की एक समिति बनाने की मांग की है जो कि सीएलएटी की समीक्षा करेगा और उसमें सुधार लाने के रास्ते बताएगा।