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बच्चों से रेप करने वालों को मौत की सज़ा देने के लिए POCSO में संशोधन करेंगे : सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा

LiveLaw News Network
20 April 2018 3:37 PM GMT
बच्चों से रेप करने वालों को मौत की सज़ा देने के लिए POCSO में संशोधन करेंगे : सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा
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कठुआ में आठ साल की लड़की से बलात्कार पर राष्ट्रव्यापी विरोध के दौरान केंद्र ने आज सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसने यह सुनिश्चित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है कि बच्चों से बलात्कार के दोषी लोगों को मौत की सजा मिले। सरकार ने कहा कि यह POCSO अधिनियम, 2012 में संशोधन करके किया जाएगा।

"मुझे ऊपर उल्लिखित याचिका का उल्लेख करने और POCSO अधिनियम, 2012 के प्रावधानों के संशोधन के संबंध में याचिका में उठाए गए मुद्दों को सूचित करने के लिए निर्देशित किया गया है ताकि 12 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों से बलात्कार के अपराधों के लिए  मृत्युदंड तक अधिकतम सजा प्रदान की जा सके और मंत्रालय इस पर  सक्रियता से  विचार कर रहा है।

मंत्रालय बच्चों की दुर्दशा के प्रति संवेदनशील है, जिनके साथ बेहद भयानक तरीके से दुर्व्यवहार किया जाता है। मंत्रालय बच्चों के खिलाफ बढ़ते यौन उत्पीड़न के मामलों में दुर्व्यवहार के लिए मौत की सजा पेश करने के लिए POCSO अधिनियम, 2012 में संशोधन करने का प्रस्ताव ला रहा है।

उन्होंने भारत सरकार के एक उप सचिव द्वारा दिए गए नोट को मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ को सौंपा और अदालत द्वारा इस मामले में मूल्यांकन किया जाएगा।

यह सुनवाई की आखिरी तारीख पर सरकार के उस रुख में यू टर्न है, जिसमें बच्चों से दुर्व्यवहार करने वाले,  बलात्कारियों को मौत की सजा देने के लिए आपत्ति व्यक्त की थी और कहा था कि "मृत्युदंड सब चीजों का जवाब नहीं है।"

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ सुप्रीम कोर्ट के वकील अलख आलोक श्रीवास्तव द्वारा दायर याचिका की सुनवाई कर रही है, जिसमें बच्चों से बलात्कार करने वालों को मौत की सजा मांगी गई है। श्रीवास्तव ने जनवरी में उत्तर-पश्चिम दिल्ली के शकूरबस्ती में  28 वर्षीय चचेरे भाई द्वारा आठ महीने की एक बच्ची से बलात्कार की चौंकाने वाली घटना पर अदालत का ध्यान आकर्षित करने के लिए जनहित याचिका दायर की थी और यह सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की मांग की थी। इसमें कहा गया था कि POCSO (यौन अपराध से बच्चों के संरक्षण) अधिनियम के तहत, 12 साल से कम उम्र के बच्चों से बलात्कार से जुड़े मामलों की जांच और ट्रायल, एफआईआर दर्ज कराने की तारीख से छह महीने के भीतर पूरा किया जाना चाहिए।

12 मार्च को पीठ ने सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया था कि वो लैंगिक अपराध अधिनियम 2012 के तहत बच्चों के संरक्षण के लंबित मामलों की जिलावार स्टेटस रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय की रजिस्ट्री में दाखिल करे।  पीठ ने श्रीवास्तव द्वारा प्रस्तुत किए गए आंकडों , जिनमे कहा गया कि 2016 में 95 फीसदी केस लंबित थे, पर उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से सुझाव पेश करने का अनुरोध किया था।

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