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बैंक के लिए क्रेडिट कार्ड का बकाया वसूलना कोई भड़काऊ काम नहीं : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
![बैंक के लिए क्रेडिट कार्ड का बकाया वसूलना कोई भड़काऊ काम नहीं : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें] बैंक के लिए क्रेडिट कार्ड का बकाया वसूलना कोई भड़काऊ काम नहीं : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/03/bombay-hc.png)
बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा है कि बैंकों की ओर से क्रेडिट कार्ड का बकाया वसूलना कोई भड़काऊ कार्य नहीं है।
न्यायमूर्ति पीडी नाइक ने रायगड के सत्र न्यायाधीश के इस बारे में आदेश को ख़ारिज कर दिया। सत्र न्यायाधीश ने आरोपी द्वारा दिए गए आवेदन को खारिज कर दिया था। हाई कोर्ट ने आरोपी बैंक कर्मचारी एआर सतीश की अपील को स्वीकार कर लिया।
मामले की पृष्ठभूमि
एफआईआर भारत पेट्रोलियम में कार्य करने वाले शंकर देवर ने दर्ज कराया था। उसके पास तीन अलग अलग बैंकों का क्रेडिट कार्ड था जिसका प्रयोग वह सामान खरीदने के लिए करता था।
आरोपी उस समय आईसीआईसीआई बैंक में काम करता था और उसने शिकायतकर्ता के घर कई बार जाकर उसे कहा कि अगर वह बैंक की राशि नहीं लौटाता है तो उसके घर के सामान उठा लिए जाएंगे। शिकायतकर्ता के अनुसार, सतीश इसके बाद उसको फोन पर धमकियां देने लगा।
चूंकि देवर घबराया हुआ था, उसने नींद की गोली और चूहे मारने वाला जहर खा लिया जिसके बाद उसको न्यू पनवेल के अस्पताल में उसका इलाज चला। उस समय देवर ने कहा था कि उसने पारिवारिक कारणों से जहर खाया था।
इसके बाद अक्टूबर 2007 में देवर को बताया गया कि सतीश ने उसे सिटी बैंक की ओर से फोन किया था। इसके बाद उसको मोबाइल फ़ोन पर बताया गया कि कॉल करने वाले ने अब सिटी बैंक ज्वाइन कर लिया है और उस पर सिटी बैंक का भी 1.30 लाख रुपए बकाया है।
दबाव में देवर ने फिर नींद की करीब 30 गोलियाँ खा ली जिसके बाद उसको हॉस्पिटल ले जाया गया। देवर बच गया लेकिन उसने आरोपी के खिलाफ उसको आत्महत्या के लिए उसकाने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करा दिया।
फैसला
कोर्ट ने सारी दलील और गवाहों के बयान सुनाने के बाद अपने फैसले में कहा :
“सारे सबूतों को देखने के बाद यह नहीं लगता कि यह उकसावे का मामला है। आरोपी बैंक की ओर से बकाया राशि प्राप्त करने के लिए ऐसा कर रहा था...सत्र अदालत ने यह कहकर आवेदन खारिज करने की गलती की है कि उसकी कथित कार्रवाई की वजह से पीड़ित को आत्महत्या जैसा कदम उठाना पड़ा।”
इस तरह कोर्ट ने सत्र न्यायालय के आदेश को निरस्त कर दिया और आवेदन सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया।