Begin typing your search above and press return to search.
ताजा खबरें

आईपीसी की धारा 498A पर अपने ही फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट सोमवार को करेगा सुनवाई

LiveLaw News Network
20 April 2018 9:05 AM GMT
आईपीसी की धारा 498A पर अपने ही फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट सोमवार को करेगा सुनवाई
x

मुख्य न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ  आईपीसी की धारा 498A के दुरुपयोग की जांच के निर्देश पर पुनर्विचार के लिए सोमवार को सुनवाई करने को तैयार हो गई है।

दरअसल 2017 में  राजेश शर्मा बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले में ये निर्धारित किया गया था।

 धारा 498A के तहत पुलिस या दंडाधिकारी द्वारा शिकायत के पंजीकरण के प्रक्रियागत पहलुओं को विनियमित करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने 1983 के आपराधिक कानून (दूसरा संशोधन) अधिनियम के उद्देश्य और कारणों का विवरण पढ़ने पर विचार किया।

उन्होंने कहा कि आईपीसी के ये प्रावधान, विभिन्न उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के सामने विचाराधीन हैं और इस बारे में फिर से विचार करने की जरूरत है कि न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल और न्यायमूर्ति यूयू ललित की बेंच द्वारा राजेश शर्मा मामले में दिए गए फैसले के मुताबिक  परिवार कल्याण समिति का गठन किया जाना चाहिए या नहीं। गिरफ्तारी से पहले किसी भी शिकायत को देखने के लिए इसे बनाया जाना है।

 वरिष्ठ वकील इंदू मल्होत्रा, जिन्हें NGO  न्यायधर  की संबंधित याचिका में अमिक्स क्यूरी नियुक्त किया गया था, ने कहा, "राजेश शर्मा में  जुलाई 2017  का फैसला आने के बाद  धारा 498 ए के तहत कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई है।”

 यह नोट किया जाना चाहिए कि एनजीओ की ओर से याचिका पर सुनवाई करते मुख्य न्यायाधीश मिश्रा ने 13 अक्टूबर 2017 को राजेश शर्मा के फैसले के संदर्भ में कहा, "हम इस मामले में पारित फैसले के साथ समझौते में नहीं हैं। हम कानून नहीं लिख सकते हम केवल कानून की व्याख्या कर सकते हैं।”

वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने न्यायमूर्ति गोयल और न्यायमूर्ति रोहिंग्टन की बेंच के  गुरुवार को राजेश शर्मा के फैसले को पुनर्विचार के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पेश करने करने के आदेश की जानकारी दी।

उन्होंने प्रस्तुत किया कि सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट  हैक किए जाने की वजह से यह आदेश प्राप्त करना संभव नहीं है।

जब मुख्य न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि वह एक प्रशासनिक आदेश था, जयसिंह ने कहा कि यह एक न्यायिक आदेश था।

 शुक्रवार को यह भी तर्क दिया गया कि 2017 के फैसले कि गिरफ्तारी से पहले जांच करने कि  आरोप पहली नजर में सच हैं या जबरन  कार्रवाई की जा रही है, के परिणामस्वरूप महिलाओं को परेशान किया जा रहा है।

Next Story