सामुदायिक सेवा के नाम पर बलात्कार के आरोपी को जमानत देना गैर जरूरी : दिल्ली हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

19 April 2018 3:25 PM GMT

  • सामुदायिक सेवा के नाम पर बलात्कार के आरोपी को जमानत देना गैर जरूरी : दिल्ली हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    दिल्ली हाई कोर्ट ने बलात्कार के आरोपी 26 साल के एक युवक को निचली अदालत से मिली जमानत को निरस्त कर दिया। इस युवक ने वंचित तबके के बच्चों को पढ़ाने जैसे सामुदायिक सेवा का प्रस्ताव दिया था और कोर्ट ने इस आधार पर उसे जमानत दे दी थी।

    न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा ने निचली अदालत के जमानत देने के आदेश को खारिज कर दिया और कहा कि सत्र न्यायाधीश ने खुद ही कहा था कि इस स्थिति में उसको जमानत नहीं दिया जा सकता।

    न्यायमूर्ति सचदेवा ने 5 फरवरी 2018 को अपने आदेश में कहा था कि इस समय आरोपी को जमानत नहीं दी जा सकती पर बाद में सामुदायिक सेवा के प्रस्ताव पर उसको जमानत दे दी।

    “...इस कोर्ट का मानना है कि आवेदक इस समय जमानत का हकदार नहीं है पर आवेदक ने खुद ही सामुदायिक सेवा का प्रस्ताव दिया और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी दिखाते हुए उसने वंचित तबके के बच्चों को पढ़ाने की बात कही। उसके प्रस्ताव को हम स्वीकार करें और वह आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित तबके के बच्चों को पढ़ाएगा और यह कार्य वह कब और कहाँ करेगा यह उसे जांच अधिकारी बता देगा”, सत्र न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा।

    शिकायतकर्ता ने इस आदेश को अपने वकील मनदीप एस विनाइक और मनीष लाम्बा के माध्यम से हाई कोर्ट में चुनौती दी।

    “...आवेदन में कोई दम नहीं होने के बावजूद महज सामुदायिक सेवा के आधार पर जमानत देना और वह भी जब आरोपी पर आईपीसी की धारा 313 और 376 के तहत मामला दर्ज किया गया है, पूरी तरह अवांछनीय है”, न्यायमूर्ति सचदेवा ने कहा।

    कोर्ट ने आरोपी की अग्रिम जमानत के निचले कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया।

    इस छात्र पर आरोप है कि उसने 2011 में फेसबुक के माध्यम से एक लड़की को अपना दोस्त बनाया और बाद में उसके साथ बलात्कार किया और उसका गर्भपात कराया।

    शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि शादी करने के वादे के बाद उसने आरोपी के साथ शारीरिक संबंध बनाए। एक साल बाद वह गर्भवती हो गई पर आरोपी ने उसे जबरदस्ती एक दवा दी जिसकी वजह से उसका गर्भपात हो गया।

    आरोपी ने इन आरोपों से इनकार किया और इस बारे में उसके वकीलों ने ऐसे कई मामलों का जिक्र किया। इसमें एक मामला बॉम्बे हाई कोर्ट का है जिसमें कोर्ट ने कहा था कि लड़का-लड़की सही में शादी करने की इच्छा रखते हैं और शारीरिक संबंध बना लेते हैं पर बाद में उन्हें लगता है कि वे शादी नहीं कर सकते और संबंध तोड़ लेते हैं।

    आरोपी की अग्रिम जमानत पर सुनवाई के दौरान आरोपी ने सामुदायिक सेवा का प्रस्ताव रखा और सत्र न्यायाधीश ने उसको 9 बजे सुबह से 1 बजे दोपहर तक गरीब बच्चों को सप्ताह में पांच दिन तक जांच अधिकारी द्वारा बताये गए स्थान पर पढ़ाने का आदेश दिया।


     
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