हम यह उल्लेख कर सकते हैं कि हमारे सामने अपील का रिकॉर्ड बताता है कि अपीलकर्ताओं द्वारा पुरानी याचिकाओं रूप में उनकी स्थिति की पुष्टि करने वाली कुछ अन्य कार्यवाही भी शुरू की गईं, पीठ ने कहा।
जिस दृढता और सहनशक्ति के साथअपीलकर्ता दशकों से मुकदमेबाजी कर रहे हैं, उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए, लेकिन न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने ये कहते हुए कई अदालतों को घुमाने वाली याचिका को खारिज करते हुए 50 हजार रुपये का जुर्माना लगा दिया।
ये मुकदमेबाजी 1967 से शुरू हुई जिसमें पूर्ववर्ती द्वारा दायर एक मुकदमे के साथ-साथ मौजूदा मुकदमेदारों के हित में दावा किया गया जिसमें भूमि का टाइटल खारिज कर दिया गया था।
1975 में अतिक्रमण को हटाने के लिए दायर एक अन्य सूट में समझौता किया गया था। 1987 में भूमि हथियाने का मामला सिविल कोर्ट के सामने दायर किया गया था, जिसे डिफ़ॉल्ट के तौर पर खारिज कर दिया गया था। आंध्र प्रदेश भूमि अधिग्रहण (निषेध) अधिनियम, 1982 के तहत स्थापित विशेष अदालत के समक्ष भूमि अधिग्रहण मामले को भी खारिज कर दिया गया था और आंध्र उच्च न्यायालय ने इसकी पुष्टि की थी। सुप्रीम कोर्ट में अपील में इन आदेशों को चुनौती दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने विवादों को खारिज करते हुए कहा कि अपीलकर्ताओं द्वारा दायर जमीन हथियाने के मामले को खारिज करने में विशेष अदालत पूरी तरह से न्यायसंगत थी और उच्च न्यायालय भी उनके द्वारा दायर की गई याचिका को खारिज करने में उचित था।
विशेष अदालत के सामने मुद्दा यह था कि क्या पहले के फैसले को रिट क्षेत्राधिकार के रूप में संचालित किया गया और क्या ये दावा करने से इनकार कर दिया गया है कि वे निर्धारित फैसले के आधार पर उक्त संपत्ति के मालिक हैं।
पीठ ने कहा कि उन्होंने खुद दिवालिया अदालत से संपर्क किया है और अब यह तर्क देने के लिए बहुत देर हो चुकी है कि उन्होंने गलत मंच से संपर्क किया था।
खंडपीठ ने उनसे जुड़े गलत मंचों के संबंध में कहा, "यह हमारे लिए काफी स्पष्ट है कि कानून में जो कुछ भी हो, अपीलकर्ता ने गलत फोरम में मुकदमेबाजी का करके या सही फ़ोरम तक पहुंचने से परेशान पैदा की। इसके लिए अपीलकर्ताओं को स्वयं ही दोषी ठहराया जाता है और वो सिविल कोर्ट के अधिकार क्षेत्र की कमी के पर्दे के पीछे छिपा नहीं सकता। "
“ व्यक्त विचारों में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है और तदनुसार अपीलकर्ताओं द्वारा दशकों तक निरंतर और बेकार मुकदमेबाजी के माध्यम से कई अदालतों को घुमाने के लिए हम 50,000 रुपये की लागत के साथ अपील खारिज करते हैं, “ बेंच ने उनकी अपील खारिज करते हुए कहा।