Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

हत्या के आरोपी को अपर्याप्त कानूनी मदद : पटना हाई कोर्ट ने मौत की सजा निरस्त की, मामले की दुबारा सुनवाई करने को कहा [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network
14 April 2018 4:09 PM GMT
हत्या के आरोपी को अपर्याप्त कानूनी मदद : पटना हाई कोर्ट ने मौत की सजा निरस्त की, मामले की दुबारा सुनवाई करने को कहा [निर्णय पढ़ें]
x

पटना हाई कोर्ट हत्या के एक मामले में दुबारा सुनवाई का आदेश दिया है। आरोपी की मौत की सजा को निरस्त करते हुए कोर्ट ने कहा कि आरोपी को पर्याप्त कानूनी मदद उपलब्ध नहीं कराई गई।

यह मामला दो नाबालिग बच्चों की हत्या का है। सुनवाई अदालत ने अभियोजन पक्ष के छह गवाहों की गवाही के आधार पर आरोपी को मौत की सजा सुनाई थी।

अपील के दौरान हाई कोर्ट में कहा गया कि गरीबी के कारण आरोपी नियमित रूप से अपना वकील नहीं रख सका और यही कारण है कि छह में से पांच गवाहों से कोई वकील पूछताछ नहीं कर पाया। यह भी कहा गया कि ज्ञापक, जांच अधिकारी और डॉक्टर जिसने पोस्ट मार्टम किया, से अभियोजन पक्ष पूछताछ नहीं कर पाया।

न्यायमूर्ति राकेश कुमार और न्यायमूर्ति अरविंद श्रीवास्तव की पीठ ने कहा कि सुनवाई अदालत के लिए यह जरूरी है कि वह सरकारी खर्चे से कानूनी मदद उपलब्ध कराए। कोर्ट ने कहा, “अपीलकर्ता को पर्याप्त कानूनी मदद नहीं उपलब्ध कराया गया। गवाहियों से पूछताछ के दौरान आवेदनकर्ता की पैरवी करने के लिए कोई मौजूद नहीं था और इसलिए या तो उसको खुद ही उनसे पूछताछ करनी पड़ी या फिर उसने कुछ गवाहियों से कुछ भी पूछने से मना कर दिया...इस तरह हमारा मानना है कि इससे सीआरपीसी की धारा 304 का ठीक से पालन नहीं हुआ”।

कोर्ट ने इस मामले की दुबारा सुनवाई का आदेश देते हुए कहा, “चूंकि इस मामले में आरोपों के अनुसार दो नाबालिग बच्चों की हत्या की गई है, यह मामला यहीं समाप्त नहीं होता, बल्कि यह जरूरी है कि इस मामले को निचली अदालत को दुबारा भेजा जाए और उनसे कहा जाए कि वह इस मामले को फिर से वहाँ से शुरू करें जहाँ से अभियोजन की गवाही को बंद किया गया था। इसके बाद अभियोजन पक्ष इस बात को हर तरह से सुनिश्चित करेगा कि ज्ञापक, जांच अधिकारी और पोस्ट मार्टम करने वाला डॉक्टर अदालत में मौजूद हों। अभियोजन को बचे हुए गवाहों से पूछताछ करने का अधिकार होगा।”

कोर्ट ने सुनवाई अदालत को यह निर्देश भी दिया कि वह इस मामले की सप्ताह में कम से कम दो बार सुनवाई करे ताकि फैसला आने में अनावश्यक विलंब न हो।


 
Next Story