राज्य बिजली नियामक आयोग के अध्यक्ष का हाई कोर्ट का जज होना आवश्यक नहीं है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

14 April 2018 1:44 PM GMT

  • राज्य बिजली नियामक आयोग के अध्यक्ष का हाई कोर्ट का जज होना आवश्यक नहीं है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]

    सुप्रीम कोर्ट ने वृहस्पतिवार को कहा कि यह जरूरी नहीं है कि राज्य बिजली नियामक आयोग (एसईआरसी) का अध्यक्ष हाई कोर्ट का कोई जज ही हो। आयोग राज्य में बिजली शुल्कों का निर्धारण करता है।

    न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने गौर किया कि बिजली अधिनियम, 2003 के अनुसार, राज्य आयोग का अध्यक्ष हाई कोर्ट का कोई जज “हो सकता” है जबकि केंद्रीय आयोग का अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट का कोई जज या हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश हो सकता है।

    इसके बाद पीठ ने कहा कि अधिनियम राज्य को आयोग के अध्यक्ष के रूप में किसी जज को नियुक्त करने का सिर्फ विशेष विकल्प उपलब्ध कराता है। इसलिए यह प्रावधान जरूरी नहीं है।

    पीठ ने हालांकि कहा कि लेकिन क़ानून से जुड़े एक व्यक्ति का तीन-सदस्यीय आयोग में होना आवश्यक है। पीठ ने कहा, “...इस समय आयोग में एक ही सदस्य है, जो कि सभी दायित्वों को पूरा करते हैं और इसलिए आयोग में क़ानून से जुड़े एक व्यक्ति का होना जरूरी है क्योंकि अगर ऐसा नहीं होगा तो शक्तियों के बंटवारे और न्यायिक पुनरीक्षण के सिद्धांत का पालन नहीं करना होगा जो कि संविधान की आधारभूत संरचना का हिस्सा है”।

    हालांकि पीठ ने स्पष्ट किया कि लेकिन यह नहीं है कि क़ानून से जुड़ा कोई भी व्यक्ति इस आयोग का सदस्य हो सकता है बल्कि यह व्यक्ति ऐसा होना चाहिए जो कि न्यायिक अधिकारी के रूप में किसी पद पर रहा हो या ऐसा व्यक्ति हो जिसके पास पेशेवर योग्यता हो और उसके पास क़ानूनी प्रैक्टिस का लंबा अनुभव हो और वह हाई कोर्ट या जिला न्यायालय में नियुक्ति की योग्यता रखता हो।

    याचिका

    यह मामला मद्रास और गुजरात हाई कोर्ट द्वारा परस्पर विरोधी फैसला देने का है। मद्रास हाई कोर्ट ने तमिलनाडु राज्य बिजली आयोग के अध्यक्ष के चुनाव को चुनौती देने वाली याचिका पर अपना फैसला देते हुए कहा था कि अधिनियम सिर्फ एक जज की ही नियुक्ति का विकल्प देता है और यह भी कि यह आवश्यक रूप से जरूरी नहीं है। इसके उलट गुजरात हाई कोर्ट ने फैसला दिया था कि ऐसा करना आवश्यक रूप से जरूरी है।

    इस तरह के विरोधाभासी फैसलों को देखते हुए कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं जिन्हें अब सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया है।

    अधिनियम की धारा 84(2)

    कोर्ट ने अधिनियम की धारा 84 की पड़ताल की जिसमें आयोग के अधक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के प्रावधानों के बारे में लिखा है। पीठ ने कहा कि 84(1) में कहा गया है कि अध्यक्ष और सदस्य दोनों को ही योग्य और ईमानदार होना चाहिए जिसके पास पर्याप्त योग्यता हो और इंजीनियरिंग, वित्त, वाणिज्य, अर्थव्यवस्था, क़ानून या प्रबंधन जैसे विषयों से निपटने की क्षमता हो।

    पर धारा 84(2) में कहा गया है कि राज्य सरकार चाहे तो हाई कोर्ट कि किसी पूर्व या वर्तमान जज की नियुक्ति कर सकता है। इसके बाद उसने दोनों प्रावधानों में अंतर को स्पष्ट किया और कहा -

    “...इसमें कोई संदेह नहीं कि विधायिका सिर्फ वर्तमान या पूर्व जजों के समूह से किसी की नियुक्ति की संभावना की बात कहता है और इस स्थिति में नियुक्ति की प्रक्रिया धारा 85 के तहत होने वाली नियुक्ति की प्रक्रिया से अलग होगी।”

    कोर्ट ने आगे कहा कि धारा 85(1) में हाई कोर्ट के एक जज की अध्यक्षता में एक चयन समिति के गठन की बात कही गई है, प्रावधान स्पष्ट करते हैं कि अगर किसी पूर्व या वर्तमान जज को अध्यक्ष नियुक्त किया जा रहा है तो यह प्रावधान लागू नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि इससे स्पष्ट है कि किसी गैर जज को भी आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया जा सकता है।

    राज्य आयोग का गठन

    पीठ ने इसके बाद कहा कि आयोग सीमित न्यायिक कार्यों को अंजाम देता है इसलिए इस आयोग में एक न्यायिक सदस्य का होना जरूरी है।

    निष्कर्ष




    1.  तमिलनाडु के राज्य आयोग में अध्यक्ष की नियुक्ति को दी गई चुनौती को खारिज किया जाता है।

    2.   हमारा फैसला आगे के मामलों पर लागू होगा और अभी तक पास किए गए आदेश को यह प्रभावित नहीं करेगा।

    3. अगर आयोग में क़ानून का जानकार कोई व्यक्ति सदस्य नहीं है तो हर राज्य आयोग में अगली नियुक्ति क़ानून से जुड़े सदस्य की होगी।


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