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न्यायमूर्ति चेलामेश्वर के साथ करन थापर की बातचीत : उन्होंने क्या कहा यह समझने की कोशिश

LiveLaw News Network
9 April 2018 4:44 AM GMT
न्यायमूर्ति चेलामेश्वर के साथ करन थापर की बातचीत : उन्होंने क्या कहा यह समझने की कोशिश
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सुप्रीम कोर्ट के एक वर्तमान जज और एक वरिष्ठ पत्रकार के बीच खुली बातचीत को सुनना निश्चित रूप से एक दिलचस्प अनुभव होता है। और अगर यह जज कोई और नहीं बल्कि जस्ती चेलामेश्वर हों और पत्रकार करन थापर, तो यह अनुभव और विशिष्ट हो जाता है। शनिवार को हुई इस बातचीत का अर्थ ढूंढना मुश्किल है – क्योंकि बहुत सी बातें आम श्रोताओं के लिए अनकही ही रही; लोग कयास ही लगाते रहे कि न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने जब यह कहा तो उनके दिमाग में क्या चल रहा था।

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को अगला मुख्य न्यायाधीश बनाए जाने का मामला

न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को अगला मुख्य न्यायाधीश नहीं बनाया जाएगा पर अगर ऐसा हुआ तो उनकी वह आशंका सच साबित होगी जो उन्होंने 12 जनवरी को अपने प्रेस कांफ्रेंस में जाहिर की थी। वर्तमान मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा 2 अक्टूबर को इस वर्ष रिटायर हो रहे हैं और उनके बाद वरिष्ठतम जज जो उनकी जगह ले सकते हैं वे हैं रंजन गोगोई।

ऐसा हो सकता है कि वर्तमान मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा अगले सीजेआई के रूप में रंजन गोगोई के नाम का प्रस्ताव करें और उसे सरकार मान भी ले और उनकी नियुक्ति कर दी जाए। अगर ऐसा होता है तो क्या 12 जनवरी को इन चार जजों ने जो आशंकाएं जाहिर की थीं वह खारिज हो जाएंगी? ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो यह मानते हैं कि चार जजों ने अपने प्रेस कांफ्रेंस में जो बातें कही थी वे अनावश्यक नहीं थी। बल्कि इन जजों ने जो चिंताएं व्यक्त की उससे जो एक आम राय बनी वह न्यायमूर्ति रंजन गोगोई को अगला सीजेआई बनाने के पक्ष में निर्णय को प्रभावित कर सकता है।

जयललिता का मामला

न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता के बारे में निर्णय के लिए गठित पीठ के बारे में जिन बातों को उजागर किया वह चौंकाने वाला था। जब करन थापर ने पूछा कि क्या जयललिता के मामले की सुनवाई का मामला ऐसा था जिसके बारे में कहा जा सकता है कि रोस्टर का मुखिया होने के नाते सीजेआई ने इसे अपनी पसंदीदा पीठ को सौंपा ताकि प्रत्याशित परिणाम प्राप्त किया जा सके और जो केंद्र को पसंद हो, न्यायमूर्ति चेलामेश्वर उनसे सहमत दिखे।  यद्यपि न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने यह बात स्पष्ट शब्दों में नहीं कही, पर जो बात कही गई उसका तात्पर्य ऐसा निकाला जा सकता है। जैसे वे अपनी इन बातों की पुष्टि करना चाहते हों, न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने कहा कि इस मामले में फैसला देने में जो विलम्ब हुआ उससे सक्षमता से न्याय दिलाने के लक्ष्य का भला नहीं हुआ – कि किसी व्यक्ति की अपील पर उसके जीते जी फैसला कर दिया जाए।

पर सवाल उठता है कि न्यायमूर्ति पिनाकी चन्द्र घोष और अमिताव रॉय की पीठ सर्वाधिक पसंदीदा पीठ क्यों थी उस समय?

न्यायमूर्ति पिनाकी चन्द्र घोष और अमिताव रॉय की पीठ ने जयललिता और उनके सह आरोपी को बरी किये जाने के खिलाफ कर्नाटक सरकार की अपील पर 8 जनवरी 2016 से सुनवाई शुरू की। इससे पूर्व 2015 में न्यायमूर्ति पिनाकी चन्द्र घोष और आरके अग्रवाल की पीठ ने इस मामले की 25 दिनों तक सुनवाई करने के बाद 7 जून के लिए अपना फैसला सुरक्षित रखा। पर इस पीठ ने 14 फरवरी 2017 को आठ महीने के बाद अपना फैसला सुनाया। इस बीच 5 दिसंबर 2016 को जयललिता की मृत्यु हो चुकी थी।

तत्कालीन सीजेआई न्यायमूर्ति एचएल दत्तू, जो कि रोस्टर के मालिक थे, ने इस मामले को न्यायमूर्ति पिनाकी चन्द्र घोष को सौंपा। जिस समय न्यायमूर्ति पिनाकी चन्द्र घोष को यह मामला सौंपा गया उस समय वह वरिष्ठताक्रम में सुप्रीम कोर्ट में 12वें नंबर पर थे।

जयललिता को बरी किए जाने को कर्नाटक सरकार द्वारा चुनौती देने के मामले की सुनवाई अंततः न्यायमूर्ति पिनाकी चन्द्र घोष और अमिताव रॉय की पीठ ने की और फैसला आरोपी के खिलाफ आया। क्या न्यायमूर्ति चेलामेश्वर यह कहना चाहते थे कि इस मामले की और शीघ्रता से सुनवाई हो सकती थी अगर किसी अन्य पीठ ने इसकी सुनवाई की होती? पर इस बारे में कोई अंदाजा ही लगा सकता है। जो मामले के बारे में जानते हैं, उनका कहना है कि इस मामले को किसी वरिष्ठ को नहीं सौंपकर न्यायमूर्ति घोष को सौंपने पर उस समय भवें टेढ़ी हुईं थी।  न्यायमूर्ति चेलामेश्वर खुद कहते हैं कि वे वरिष्ठ और कनिष्ठ जैसे बंटवारे में विश्वास नहीं करते और जजों में दर्जे का महत्त्व सिर्फ कॉलेजियम के लिए है मामलों के आवंटन के लिए नहीं।

न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने तो करन थापर को यहाँ तक कहा कि किसी संवेदनशील मामले की सुनवाई के लिए प्रथम पांच शीर्ष जजों के बदले अंतिम पांच जजों की पीठ भी गठित की जा सकती है। उनका सिर्फ यही कहना था कि इसके लिए जजों के चुनाव का कोई मापदंड होना चाहिए न कि जिसको मन हुआ उसको यह सौंप दिया।

प्रश्न जो अनुत्तरित रहे

कुछ ऐसे सवाल थे जो पूछे नहीं जा सके। अगर ये पूछे जाते तो इनके सर्वोत्तम जवाब मिल सकते थे। इनमें ऐसा ही एक सवाल है कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा एक जज के खिलाफ केंद्र के निर्देश पर जांच का आदेश देना और इस मुद्दे पर ही उन्होंने सीजेआई को पत्र लिखकर इस मामले में पूर्ण अदालत की सुनवाई की मांग की थी। इस जज के नाम की अनुशंसा हाई कोर्ट जज के रूप में नियुक्ति के लिए कॉलेजियम ने की है।

प्रश्न जो पूछा जा सकता था वह है : पूर्ण अदालत की बैठक कैसे होती है, अन्य जजों की इस प्रस्ताव के बारे में राय क्या है। और अब जब सीजेआई उनकी मांग पर पिछले दो सप्ताहों से कुण्डली मारकर बैठे हैं, तो उनके पास विकल्प क्या हैं।

दूसरा प्रश्न हो सकता था रिटायरमेंट के बाद जजों के करियर के विकल्प का। न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने तो स्पष्ट कर दिया है कि रिटायर होने के बाद वे सरकार से किसी भी तरह की नियुक्ति को नहीं कहेंगे। पर क्या वे पंचाट का काम संभालेंगे क्योंकि इसके बारे में भी लोग कहते हैं कि इससे एक जज की स्वतंत्रता पर आंच आती है?

न्यायमूर्ति चेलामेश्वर कुछ ही दिनों में 18 मई को रिटायर होने वाले हैं। यद्यपि उन्होंने जो फैसले दिए हैं उसके बारे में या उनके समक्ष या उनके सहयोगी जजों के समक्ष लंबित मामलों के बारे में उन्होंने कोई भी बात करने से मना कर दिया,  पर अन्य मुद्दों के बारे में उनके जो विचार हैं उससे उस पर प्रभाव पड़ता है। इनमें एक है जजों की नियुक्ति और कॉलेजियम की कार्यप्रणाली का मुद्दा और एनजेएसी के फैसले पर हम उनकी इस असहमति का प्रभाव देख चुके हैं। पीछे नजर दौड़ाएं तो केंद्र जिस तरह से कॉलेजियम की अनुशंसाओं का रास्ता रोक रहा है, क्या उनको अब भी लगता है कि एनजेएसी मामले में उन्होंने जो असहमति जताई थी – जो कि सरकार के प्रतिनिधियों पर उनके भरोसे पर आधारित था, जायज था? हम उम्मीद करते हैं कि न्यायमूर्ति जेएस वर्मा की तरह ही वह भी रिटायर होने के बाद अपने कतिपय फैसले पर अपनी राय जाहिर करेंगे।

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