विशेष अदालतों को अधिकरणों का दर्जा देने व अन्य प्रस्तावों के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की राय माँगी [आर्डर पढ़े]

LiveLaw News Network

6 April 2018 3:31 PM GMT

  • विशेष अदालतों को अधिकरणों का दर्जा देने व अन्य प्रस्तावों के बारे में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की राय माँगी [आर्डर पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने देश में ट्रिब्यूनलों के काम काज के बारे में केंद्र से चार महत्त्वपूर्ण पर प्रश्न पूछे हैं।

    इससे पहले पीठ ने गौर किया था कि अधिकरणों (ट्रिब्यूनल) की संरचना पर दुबारा विचार करने की जरूरत है। यह भी सुझाव दिया कि इसके लिए स्थाई कैडर, इनके स्वायत्त चुनाव, स्वायत्त उत्तरदायित्व और अनुशासन की प्रक्रिया स्थापित की जाए।

    केंद्र से कहा गया है कि वह अमिकस क्यूरी के सुझावों पर अपनी राय दे। एएसजी ने इसके लिए ज्यादा समय माँगा और पीठ ने उन्हें निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर देने को कहा :

    क्या प्रत्येक राज्य में एकल सीट ट्रिब्यूनल के क्षेत्राधिकार को निर्दिष्ट अदालत को सौंपा जा सकता है?

    पीठ ने पूछा है कि वहाँ जहाँ किसी ट्रिब्यूनल में एक ही सीट है तो न्याय तक पहुंच के रास्ते की बाधा को कैसे दूर की जा सकती है।

    इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा था, “...कुछ अधिकरणों (उदाहरण के लिए दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997) के अन्य अदालतों की तुलना में मौलिक क्षेत्राधिकार हैं और ये दिल्ली में ही स्थित हैं। यह भी गौर करने वाली बात है कि इनके अध्यक्ष और सदस्यों की सेवा अवधि तीन से पांच साल की होती है। इन अधिकरणों में न्याय वैसे ही सुलभ नहीं हैं जैसे स्थानीय दीवानी अदालतों में। इस तरह के प्रावधानों की जनहित में समीक्षा की जानी चाहिए ताकि न्याय तक लोगों की पहुँच हो सके।

    इसके बाद पीठ ने यह जानना चाहा कि इस तरह के मामले में अधिकरण के न्यायिक क्षेत्राधिकार को विशेष अदालतों को दी जा सकती है जिसे हाई कोर्ट ने हर राज्य में स्थापित किया है या फिर ऐसे राज्यों में जहाँ काम इतना कम होता है कि वह एक अधिकारी के लिए भी पर्याप्त नहीं होता।

    न्याय सुगमता केन्द्रों तक लोगों की पहुंच ताकि दूरस्थ अधिकरणों को -फाइलिंग की सुविधा मिल सके।

    कोर्ट ने यह भी जानना चाहा कि निजी भागीदारी के बिना ‘न्याय सुगमता केन्द्र (एजेएफसी) देश के कुछ सुविधाजनक केन्द्रों पर स्थापित किए जा सकते हैं या नहीं ताकि वहाँ से कोई पक्ष बिना किसी निर्दिष्ट राशि के भुगतान के दूर स्थित किसी कोर्ट या ट्रिब्यूनल तक पहुँच सके।

    कोर्ट ने कहा कि ऐसे केन्द्रों पर भी ई-फाइलिंग और अन्य तरह की सुविधा हो सकती है ताकि कोई पक्षकार न्याय की प्रक्रिया में शामिल हो सके। इससे न्याय तक लोगों की पहुँच बढ़ सकती है और लोग लम्बी दूरी तक यात्रा करने से बच जाएंगे। खासकर दूरस्थ इलाकों में रहने वाले लोगों को इसका लाभ मिल सकता है।

    क्या अधिकरणों में कर्मचारियों की नियुक्ति होने तक इसका कामकाज मौजूदा अदालतों के अधिकारी देख सकते हैं?

    पीठ ने पूछा : अधिकरणों/आयोगों को चलाने के लिए उपयुक्त योग्यता वाले व्यक्तियों के अभाव में ऐसे लोगों की नियुक्ति होने तक क्या इनको मौजूदा अदालत के कर्मचारी हाई कोर्ट से सलाह मशविरा करके चला सकते हैं या नहीं। यह कहने की जरूरत नहीं है कि सेवा में भर्ती होने वाले अधिकारियों की बाकायदा नियुक्ति के जाती है और वे कार्यक्षमता और अनुशासन के लिए उत्तरदाई होते हैं।

    आयोग के न्यायिक क्षेत्राधिकार को मानव अधिकार आयोगों की तरह हर जिले के अदालतों तक बढाया जा सकता है या नहीं।

    पीठ ने जानना चाहा : मानव अधिकार आयोग जैसे आयोगों/अधिकरणों जिनके न्यायक्षेत्र ओवरलैप करते हैं, और जिनके राज्य में मात्र एक ही सीट है, क्या उनको एक या एक से अधिक जिलों की विशेष अदालतों को दिया जा सकता है ताकि सबसे निचले स्तर के लोगों की न्याय तक पहुँच हो सके।

    अब इस मामले की अगली सुनवाई 2 मई को होगी और पीठ ने भारत सरकार से कहा है कि वह 30 अप्रैल तक अपना हलफनामा दायर कर दे।


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