वाहनों की गलत श्रेणीकरण के कारण टोल में कमी : नागपुर कोर्ट ने केंद्र की याचिका ख़ारिज की और राजस्व हानि की भरपाई के लिए कंपनी को टोल वसूलने के लिए अधिक समय देने के फैसले को सही ठहराया [निर्णय पढ़ें]

LiveLaw News Network

4 April 2018 3:39 PM GMT

  • वाहनों की गलत श्रेणीकरण के कारण टोल में कमी : नागपुर कोर्ट ने केंद्र की याचिका ख़ारिज की और राजस्व हानि की भरपाई के लिए कंपनी को टोल वसूलने के लिए अधिक समय देने के फैसले को सही ठहराया [निर्णय पढ़ें]

    नागपुर की एक अदालत ने नागपुर की एक कंपनी के पक्ष में दिए गए फैसले के खिलाफ केंद्र की याचिका को खारिज कर दिया। इस फर्म को तीन साल, छह महीना और दो दिनों का एक्सटेंशन दिया गया था जो कि टोल संग्रहण में उसको हुए घाटे की भरपाई के एवज में थी। वैनगंगा परियोजना में संरचनात्मक परिवर्तन की वजह से टोल की दर में कमी आई जिसकी वजह से उसका टोल संग्रहण कम हो गया।

    जिला जज वीडी डोंगरे ने पंचाट के इस फैसले में दखल देने से इनकार कर दिया जिसने कंपनी मै. जायसवाल अशोका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के आवेदन पर छूट की अवधि 2011 में बढ़ा दी थी।

    जहाजरानी, सड़क और उच्चमार्ग मंत्रालय ने आर्बिट्रेशन एंड कोन्सिलिएशन एक्ट की धारा 34 के अधीन इस फैसले को चुनौती दी। मंत्रालय की दलील थी कि कंपनी के पक्ष में दिया गया फैसला सही नहीं है और ट्रिब्यूनल को इस बारे में निर्णय करने का अधिकार नहीं है।

    महाराष्ट्र सरकार ने भारत सरकार की ओर से राष्ट्रीय राजमार्ग नंबर 6 के नागपुर-रायपुर खंड पर 491/00 किलोमीटर वैनगंगा नदी पर निर्माण कार्य के लिए निविदा आमंत्रित की जो कि बनाओ, चलाओ और ट्रांसफर (बीओटी) के आधार पर था।

    मै. जायसवाल अशोका इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड ने को 1998 में सबसे कम ऑफर देने के कारण यह काम सरकार ने दे दिया और इसके लिए चार पक्षकारों का एक समझौता किया गया।

    इस समझौते के अनुसार, ढाई साल में निर्माण कार्य पूरा करना था और यह अवधि 15 मई 2001 को समाप्त होनी थी। निर्माण अवधि के साथ कन्सेशन की अवधि 18 साल 9 महीने थी यानी 15 अगस्त 2017 तक।

    कंपनी ने 2 मार्च 2001 को निर्माण कार्य पूरा कर दिया जिसके बाद टोल संग्रहण के लिए 3 मार्च 2001 को अधिसूचना जारी कर दी गई। इस बीच पार्टियों के बीच उत्पन्न विवादों को फैसले के लिए 2007 में पंचाट में लाया गया।

    कंपनी ने 1,522.96 लाख रुपए और इस पर 20 फीसदी की दर से 1,383.31 लाख रुपए के ब्याज के साथ अंतिम भुगतान के रूप में राशि की मांग की। ट्रिब्यूनल ने इस कंपनी के पक्ष में फैसला दिया औ इस राशि की भरपाई के लिए टोल वसूली की अवधि बढ़ा दी।

    सरकार ने नागपुर कोर्ट में इसे चुनौती दी और कहा कि यह जो फैसला दिया गया है वह मोटर वाहन अधिनियम के खिलाफ है।

    कम्पनी के वकीलों ने कहा कि कम्पनी को सरकार के इंजीनियरों के एक आदेश के कारण उसे राजस्व हानि हुई। इन्होंने कहा कि इस आदेश के कारण इसको टाटा 407 से हर बारी 10 रुपए और 709 से 40 रुपए वसूलने के आदेश दिए गए थे।

    कंपनी के वकील ने कहा कि उसको हुए इस घाटे की भरपाई सरकार को करनी होगी और इस बारे में ट्रिब्यूनल ने आदेश भी दे दिया है।

    मुख्य जज ने सभी पक्षों को सुनाने के बाद केंद्र की याचिका ख़ारिज कर दी और कंपनी के पक्ष में दिए गए फैसले को सही ठहराया।


     
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