- Home
- /
- मुख्य सुर्खियां
- /
- प्यार के दौरान यौन...
प्यार के दौरान यौन संबंध बलात्कार नहीं : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
![प्यार के दौरान यौन संबंध बलात्कार नहीं : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें] प्यार के दौरान यौन संबंध बलात्कार नहीं : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/03/bombay-hc.png)
“यह स्पष्ट है कि पीडबल्यू-1 ने पहली बार की घटना के बाद न केवल याचिकाकर्ता के साथ अपने संबंधों को बनाए रखा बल्कि उसने हलफनामा दायर कर शिकायत भी वापस ले ली...उसने इसमें कहा था कि वह नहीं चाहती कि याचिकाकर्ता को जेल भेजा जाए क्योंकि वह उस समय तनाव में था और उसका आईपीएचबी अस्पताल, बम्बोलिम में इलाज चल रहा था और वह इसके खिलाफ निजी और भावनात्मक कारणों से शिकायत वापस लेना चाहती है। इससे यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता और पीडबल्यू-1 के बीच गहरा प्यार था। यह नहीं कहा जा सकता कि पीडब्ल्यू-1 ने याचिकाकर्ता द्वारा शादी के वादे के कारण सहमति दी।”
बॉम्बे हाई कोर्ट के गोवा पीठ के न्यायमूर्ति सीवी भडंग ने अपने 20 पृष्ठ के फैसले में धारा 376 के तहत दोषी करार दिए गए व्यक्ति को बरी कर दिया। सुनवाई अदालत ने इस व्यक्ति को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत दोषी पाते हुए 7 साल के जेल की सजा सुनाई थी।
पृष्ठभूमि
शिकायतकर्ता गोवा के एक कैसिनो में डीलर के रूप में काम करती थी जबकि आरोपी उसी जगह शेफ के रूप में कार्यरत था। दोनों मिले और दोनों के बीच प्रगाढ़ संबंध हो गया। आरोपी ने इसके बाद शिकायतकर्ता के साथ शादी करने की इच्छा व्यक्त की लेकिन युवती ने उसे बताया कि वह अनुसूचित जाति की है और वह इस बारे में दुबारा सोच ले।
दोनों के बीच संबंध कायम रहे और शिकायतकर्ता के अनुसार, वे आरोपी के घर गए जहाँ आरोपी ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने की इच्छा जाहिर की लेकिन शिकायतकर्ता ने कहा कि वह इसके लिए तैयार नहीं है क्योंकि वे दोनों शादीशुदा नहीं हैं पर आरोपी ने उसे यह विश्वास दिलाया कि वह उससे शादी कर लेगा।
शिकायकर्ता के अनुसार, इस तरह के 3-4 और वाकये हुए जब दोनों ने आरोपी के घर में शारीरिक संबंध बनाए। लेकिन आरोपी ने उसको फरवरी 2014 में कहा कि चूंकि वह अनुसूचित जाति से है इसलिए उसकी माँ उनकी शादी के लिए तैयार नहीं होगी। शिकायतकर्ता को इस पर गुस्सा आया और उसने इसके बाद उसकी माँ को यह बताया कि उन दोनों के बीच संबंध है। आरोपी की माँ ने इस पर विचार के लिए कुछ और समय माँगा पर कोई उत्तर नहीं मिलने पर उसने मार्च 2014 में शिकायत दर्ज कराई।
फैसला
अभियोजन पक्ष की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने इस बात पर गौर किया कि कैसे शिकायतकर्ता ने जब आरोपी के साथ शारीरिक संबंध स्थापति किया तब वह सहमति देने की उम्र में थी। कोर्ट ने कहा कि दोनों ही लोगों के बीच कई बार शारीरिक संबंध बने और शिकायतकर्ता ने आरोपी को कई बार वित्तीय सहायता दी।
कोर्ट ने इस बारे में दीपक गुलाटी बनाम हरियाणा राज्य (2013) मामले और उदय बनाम कर्नाटक राज्य, एआईआर 2003 मामले में दिए गए फैसले का उदाहरण दिया।
कोर्ट ने कहा : “यह स्पष्ट है कि पीडबल्यू-1 ने पहली बार की घटना के बाद न केवल याचिकाकर्ता के साथ अपने संबंधों को बनाए रखा बल्कि उसने हलफनामा दायर कर शिकायत भी वापस ले ली...उसने इसमें कहा था कि वह नहीं चाहती कि याचिकाकर्ता को जेल भेजा जाए क्योंकि वह उस समय तनाव में था और उसका आईपीएचबी अस्पताल, बम्बोलिम में इलाज चल रहा था और वह इसके खिलाफ निजी और भावनात्मक कारणों से शिकायत वापस लेना चाहती है। इससे यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता और पीडबल्यू-1 के बीच गहरा प्यार था। यह नहीं कहा जा सकता कि पीडब्ल्यू-1 ने याचिकाकर्ता द्वारा शादी के वादे के कारण सहमति दी।”
कोर्ट ने यह भी पाया कि शिकायतकर्ता ने यह शिकायत मूल रूप से एससी/एसटी अधिनियम के तहत दर्ज नहीं कराया था बल्कि बाद में ऐसा किया। फिर, जांच अधिकारी को इस अपराध की जांच के लिए आवश्यक अधिकार नहीं दिए गए।
इस तरह कोर्ट ने अंततः आरोपी की अपील को स्वीकार कर लिया और उसे सभी आरोपों से बरी कर दिया।