जमीअत उलमा-ए-हिन्द बहुविवाह और निकाह-हलाला का समर्थक; कहा, निजी क़ानूनों को मौलिक अधिकारों के तर्क से चुनौती नहीं दी जा सकती [आवेदन पढ़ें]

LiveLaw News Network

4 April 2018 3:48 PM IST

  • जमीअत उलमा-ए-हिन्द बहुविवाह और निकाह-हलाला का समर्थक; कहा, निजी क़ानूनों को मौलिक अधिकारों के तर्क से चुनौती नहीं दी जा सकती [आवेदन पढ़ें]

    उसकी मांग है, सुप्रीम कोर्ट बहुविवाह और निकाह हलाला पर महिलाओं की दलील सुनने के पहले उनकी सुने

    यह कहते हुए कि निजी क़ानून के प्रावधानों को मौलिक अधिकारों के तर्क से चुनौती नहीं दी जा सकती है, जमीअत उलमा-ए-हिन्द नामक इस्लामी संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा है कि नफीसा खान की याचिका पर सुनवाई करने से पहले उसे उनकी याचिका पर गौर करनी चाहिए। नफीसा ने बहुविवाह और हलाला-निकाह को चुनौती दी है और कहा है कि मुस्लिम निजी क़ानून (शरीयत) एप्लीकेशन अधिनियम की धारा 2 के तहत अवैध घोषित करने की मांग की है।

    अपनी याचिका में जमीअत ने कहा कि निजी क़ानून अपनी वैधता किसी विधायिका से प्राप्त नहीं करते। निजी कानूनों का आधार उनके धर्म ग्रन्थ हैं। मुसलमानों के क़ानून क़ुरान और हदीस पर आधारित हैं और ये संविधान के अनुच्छेद 13 के हिस्सा नहीं हो सकते और इसलिए इनको चुनौती नहीं दी जा सकती।

    इस संगठन ने यह भी कहा, “अनुच्छेद 44 में एक आम नागरिक संहिता की बात कही गई है जो कि राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत का हिस्सा है। इसे चुनौती नहीं दी जा सकती क्योंकि इसके तहत विभिन्न निजी संहिताओं को मान्यता दी गई है।

    इस संगठन ने कहा कि संविधान के निर्माता एक आम नागरिक संहिता को लागू करने में आने वाली मुश्किलों से वाकिफ थे और इसीलिए उन्होंने जानबूझकर इसमें किसी भी तरह की दखल नहीं दी।

    जमीअत की अपील का आधार बॉम्बे राज्य बनाम नरसू अप्पा माली के मामले में न्यायमूर्ति गजेन्द्रगडकर का फैसला है जिसमें उन्होंने कहा कि संविधान ने निजी कानूनों के अस्तित्व को स्वीकार किया है।

    इस संगठन ने कहा कि बहुविवाह और निकाह हलाला को 1997 में अहमदाबाद वीमेन एक्शन ग्रुप बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया मामले में भी चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने इस मामले में यह कहते हुए हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया कि यह न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता और इस पर विधायिका को गौर करना है।

    याचिकाकर्ता ने कृष्णा सिंह बनाम मथुरा अथिर मामले का भी जिक्र किया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान का पार्ट-III निजी कानूनों की चर्चा नहीं करता और हाई कोर्ट आधुनिक समय की अपनी परिकल्पना को इसमें नहीं ला सकता।

    जमीअत ने कहा कि उपरोक्त दृष्टान्तों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कोर्ट को मुस्लिम निजी कानूनों में बहुविबाह और निकाह हलाला के मुद्दों पर सुनवाई नहीं कर सकता।

    उधर नफीसा ने बहुविवाह और निकाह हलाला को गैरकानूनी करार दिए जाने की मांग की है।


     
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