उत्तर प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवा के प्रोमोटियों को तब तक पदोन्नति नहीं जब तक वे उपयुक्तता की जांच में सफल नहीं हो जाते : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
29 March 2018 10:42 AM GMT
बुधवार को अपने एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोएल और रोहिंटन नरीमन की पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवा (एचजेएस) में 2008-2009 में नियुक्त होने वाले प्रोमोटियों को उनकी नियुक्त से पहले वरिष्ठ नहीं बनाया जा सकता। पीठ ने कहा कि इसका आधार यह है कि उपयुक्तता जांच की जरूरत की शुरुआत 2007 में हुई।
पीठ इस बात से सहमत था कि अखिल भारतीय जज संघ बनाम भारत संघ [(2002)4 SCC 247] और यूपी एचजेएस (छठा संशोधन) नियम, 2006 मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार उपयुक्तता जांच जरूरी है। इस तरह, प्रोमोटियों को उपयुक्तता जांच के बिना पदोन्नति नहीं दी जा सकती और वे इसके बिना वरिष्ठता का दावा भी नहीं कर सकते। उन्हें नियुक्त से ही वरिष्ठता दे दी गई है।
यूपी एचजेएस नियम 1975 में नियुक्ति के तीन स्रोत बताए गए हैं – बार से सीधी नियुक्त, उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा (यूपीएनएस) के सदस्य के रूप में पदोन्नति, न्यायिक मजिस्ट्रेट के कैडर के ऑफिसर के रूप में।
अखिल भारतीय जज संघ के मामले में यह निर्देश दिया गया था कि किसी भी उपयुक्त समय में एचजेएस में नियुक्ति 50 फीसदी दीवानी जजों (वरिष्ठ डिवीजन) से पदोन्नति के रूप में होगा जिसका आधार प्रतिभा और वरिष्ठता होगी; 25 फीसदी नियुक्ति पूर्णतया योग्यता के आधार पर दीवानी जजों (वरिष्ठ डिवीजन) की सीमित विभागीय प्रतियोगिता परीक्षा के द्वारा होगी जिनकी सेवा अवधि कम से कम पांच साल की है; और 25 फीसदी नियुक्ति सीधे योग्य एड्वोकेटों के बीच से होगी जिनके लिए लिखित और मौखिक परीक्षा संबंधित हाई कोर्ट आयोजित करेगा।