सुप्रीम कोर्ट ने SC/ST के आरक्षण लाभ से क्रीमी लेयर को हटाने की जनहित याचिका पर केंद्र सरकार से हलफनामा मांगा
LiveLaw News Network
28 March 2018 8:40 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार को उस जनहित याचिका पर हलफनामा दाखिल कर जवाब मांगा है जिसमें रोजगार और शिक्षा क्षेत्र में आरक्षण प्रदान करने के मामले में अनुसूचित जाति/जनजाति जनजातियों में अपेक्षाकृत अमीर या सुशिक्षित लोगों यानी क्रीमी लेयर को बाहर करने की मांग की है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर की पीठ ने शपथ पत्र दाखिल करने के लिए केंद्र को चार सप्ताह दिए हैं और जुलाई के दूसरे सप्ताह में सुनवाई के लिए जनहित याचिका को सूचीबद्ध किया है।
सीजेआई मिश्रा ने केंद्र सरकार के लिए उपस्थित अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल पी एस नरसिम्हा से कहा कि एक स्टैंड लें और हलफनामा दाखिल करें।
यह याचिका सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग के सरकारी कर्मचारी और अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के 9 व्यक्तियों की समता आंदोलन समिति द्वारा दाखिल की गई है।
गोपाल शंकरनारायणन और शोभित तिवारी, जो याचिकाकर्ताओं के लिए उपस्थित हुए, ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में क्रीमी लेयर की अवधारणा की शुरूआत करने के लिए कहा कि ताकि समृद्ध लोगों को बाहर रखकर गरीब और जरूरतमंदों का फायदा सुनिश्चित किया जा सके।
"हम अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के दबे कुचले लोगों के लिए हैं लेकिन केन्द्र का ख्याल यह है कि पूरा अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय अब भी पिछड़ा है और पूरे समुदाय को ही आरक्षण दिया जाना चाहिए, क्रीमी लेयर की पहचान नहीं होनी चाहिए,” शंकरनारायण ने कहा।
जब केंद्र से स्टैंड पूछा गया तो एएसजी नरसिम्हा ने कहा, "अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए क्रीमी लेयर नहीं हो सकती। अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति समूहों को लेकर राष्ट्रपति के निर्धारण को छुआ नहीं जा सकता,” उन्होंने कहा।
पीआईएल में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग, कानून और न्याय मंत्रालय, सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभाग, अनुसूचित जातियों के राष्ट्रीय आयोग, अनुसूचित जनजातियों के राष्ट्रीय आयोग को उत्तरदायी बनाया गया है।
वकीलों ने दलील दी कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में क्रीमी लेयर की अवधारणा के गैर-आवेदन के कारण, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के वास्तव में पिछड़े और वंचित सदस्यों के दिल जला रहे हैं कि एससी और एसटी में समृद्ध और उन्नत लोग लाभ ले रहे हैं।
वकीलों ने तर्क दिया, "याचिकाकर्ता भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत इस याचिका (पीआईएल) को दाखिल किया है।
याचिकाकर्ता राजस्थान राज्य के निवासी हैं और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के गरीब और दलित वर्ग के हैं।
इस प्रकार याचिकाकर्ता अपने मौलिक अधिकारों के संरक्षण के लिए इस माननीय न्यायालय के पास आ रहे हैं क्योंकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय में क्रीमी लेयर के चलते वो राज्य सरकार और केंद्र सरकार द्वारा दिए गए आरक्षण लाभों से दूर हैं।
दलील में कहा, "याचिकाकर्ता इस बात से सहमत हैं कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के समृद्ध और उन्नत वर्ग अधिकतम लाभ को छीन लेते हैं और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के 95% सदस्य हानिकारक स्थिति में हैं और वे अभी भी आरक्षण के किसी भी लाभ के बिना और इन समुदायों के लिए दी जा रही सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं।
इस प्रकार संरक्षण नीति का लाभ लोगों को नहीं पहुंच रहा है, जिन्हें वास्तव में इनकी जरूरत है। समुदाय के क्रीमी लेयर के सदस्यों को शामिल करने की प्रथा का उन्नत और समृद्ध सदस्यों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है।
प्रार्थना
- कोई मैंडमस या किसी अन्य उचित लेख, आदेश या दिशा का एक अनुच्छेद जारी करना, जिसमें सभी उत्तरदायियों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से क्रीमी लेयर को बाहर करने के लिए निर्देशित किया जाए।
- किसी भी उचित लेख, आदेश या दिशा को पारित करें, जिसमें सभी उत्तरदायियों कोजातियों और अनुसूचित जनजातियों से क्रीमी लेयर को हटाने के लिए मानदंड बनाने के लिए उचित दिशा-निर्देश जारी हों |