ब्रेकिंग : तीन तलाक के बाद अब बहुविवाह और निकाह हलाला पर सुनवाई करेगी संविधान पीठ [याचिका पढ़े]

LiveLaw News Network

26 March 2018 9:06 AM GMT

  • ब्रेकिंग : तीन तलाक के बाद अब बहुविवाह और निकाह हलाला पर सुनवाई करेगी संविधान पीठ [याचिका पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट में तीन न्यायाधीशों की बेंच ने ने सोमवार को मुस्लिमों के बीच बहुविवाह और निकाह हलाला की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनने पर सहमति व्यक्त की है। पीठ ने कहा कि इसकी सुनवाई संविधान पीठ करेगी।

    मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा,  न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति डीवाईचंद्रचूड की पीठ बहुविवाह और निकाह हलाला की प्रथा को चुनौती देने वाली चार याचिकाओं को सुन रही थी। ये याचिका भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय, समीना बेगम, नफीसा बेगम और मोहम्मद बिन हुसैन बिन अब्द अल काथिरी द्वारा दाखिल की गई हैं।

    अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश  वरिष्ठ अधिवक्ता परासरन ने कहा कि "चुनौती बहुविवाह  और निकाह हलाला के भयावह प्रभाव से जुड़ी है, जो तीन तलाक के फैसले में खुली रखी गईं थीं।

    वकील शेखर ने कहा: "दुर्भाग्य से, तीन तलाक के फैसले में इन जुड़े मुद्दों पर कार्रवाई नहीं की गई ह।”

    मुख्य न्यायाधीश ने पूछा, "बहुमत क्या कहता है?"

     फिर पारासरन ने उत्तर दिया: " शुरु में में बेंच ने स्वयं कहा था कि तीन तलाक का मुद्दा ही तय होगा।"

    मुख्य न्यायाधीश: हाँ। हम यह भी देख रहे हैं कि इन दो पहलुओं को निपटाया नहीं गया है। ठीक है, वैसे भी हम नोटिस जारी करेंगे।”

    आदेश

    "याचिकाकर्ताओं के लिए वकील इस बात से सहमत हैं कि इन याचिकाओं में चुनौती बहुविवाह और निकाह  हलाला के प्रचलित अभ्यास से जुड़ी है और यह तर्क देते हैं कि वे असंवैधानिक हैं। विभिन्न आधारों को इन दोनों प्रथाओं  के विरोध में उद्धृत किया गया है। वे कहते हैं कि संविधान के तहत इन दोंनों प्रथाओं को अनुमति नहीं दी जा सकती।”

    "उनके द्वारा तर्क दिया जाता है कि ट्रिपल तलाक  मामले में संविधान खंडपीठ ने इन दोनों मुद्दों को नहीं निपटाया और उन्हें खुला रखा। फैसले के एक अवलोकन पर हम पाते हैं कि यह सही है। वे यह भी तर्क करते हैं कि  एक संविधान खंडपीठ द्वारा इन दोनों मुद्दों से निपटा जाना चाहिए। "

     "इस मामले के महत्व को ध्यान में रखते हुए इसे एक उपयुक्त संविधान के गठन के लिए मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रख दिया जाए, “ पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि एक प्रति सेंट्रल एजेंसी को दी जाए।

    बेंच ने लॉ कमिशन को नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया, जिसे सभी याचिकाओं में पार्टी बनाया गया था।

    कौन से वकील हैं

     वरिष्ठ अधिवक्ता वी  शेखर और वकील गोपाल शंकरनारायण क्रमशः याचिकाकर्ता पीड़ितों समीना बेगम और नफीसा खान के लिए पेश हुए। वरिष्ठ अधिवक्ता मोहन पारासरन और साजन पोव्वैया

    याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय और मोहसीन काथिरी का प्रतिनिधित्व किया जो वकालत भी कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बहुविवाह  और 'निकाह हलाला’ भी दो न्यायाधीशों की पीठ (अक्टूबर 2015) के आदेश का हिस्सा थे, जिसने मुसलमानों के बीच तीन तलाक के अभ्यास सहित तीनों मुद्दों को संवैधानिक न्यायालय में भेजा था। उस पीठ में कहा गया था कि अगर तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला के परिणामस्वरूप मुस्लिम समुदाय में लिंग भेदभाव माना जाए या  इन्हें संविधान के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं माना जाना चाहिए।

    क्या कहा गया है याचिका में

     चारों याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर बहुविवाह और हलाला को असंवैधानिक करार दिए जाने की मांग की है।

    याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम, 1937 की धारा 2 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करने वाला घोषित किया जाए, क्योंकि यह बहुविवाह और निकाह हलाला को मान्यता देता है।

    भारतीय दंड संहिता, 1860 के प्रावधान सभी भारतीय नागरिकों पर बराबरी से लागू हों।याचिका में यह भी कहा गया है कि ‘ट्रिपल तलाक आईपीसी की धारा 498A के तहत एक क्रूरता है। निकाह-हलाला आईपीसी की धारा 375 के तहत बलात्कार है और बहुविवाह आईपीसी की धारा 494 के तहत एक अपराध है।

    हैदराबाद के रहने वाले मौलिम मोहिसिन बिन हुसैन काथिरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मुसलमानों में प्रचलित मुता और मिस्यार निकाह को अवैध और रद घोषित करने की मांग की है।इसके अलावा याचिका में निकाह हलाला और बहुविवाह को भी चुनौती दी गई है।


     

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