अगर नियुक्तियों को सामान्य रूप से इंकार किया जाता है तो न्यायिक प्रणाली पर कोई भी भरोसा नहीं करेगा: राजस्थान HC ने SC अभ्यर्थी की नियुक्ति के आदेश दिए [निर्णय पढ़ें]
LiveLaw News Network
24 March 2018 2:11 PM IST
यह कल्पना से परे है कि नियोक्ता आईपीसी की धारा 323 और 324 के तहत अपराध को अन्य जघन्य अपराध के समान समझेगा, बेंच ने कहा
राजस्थान उच्च न्यायालय ने आकाशदीप मोर्य को सिविल न्यायाधीश और न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद के लिए नियुक्त करने के निर्देश दिए हैं जबकि इससे पहले उनके खिलाफ दर्ज किए गए चार आपराधिक मामलों का हवाला देते हुए पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया था। हालांकि उन्हें सभी में बरी कर दिया गया था।
समिति ने यह पाया कि यद्यपि उन्हें सभी चार मामलों में निर्दोष पाया गया लेकिन वह सिविल न्यायाधीश काडर के पद पर नियुक्ति के लिए विचार करने योग्य नहीं हैं। उच्च न्यायालय समिति ने यह नोट किया कि उम्मीदवार के खिलाफ चार मामले दर्ज किए गए थे, जिसमें उन्होंने प्रतिनिधित्व अस्वीकार कर दिया था और कहा: “ मोर्य के खिलाफ एक के बाद एक चार आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं।
उपरोक्त सभी मामलों में अपराध प्रकृति में गंभीर थे और स्वच्छ तरीके से बरी नहीं किया गया था। उनकी उम्मीदवारी के निर्णय में अन्य उम्मीदवारों के साथ तुलना प्रासंगिक नहीं है। इसलिए सभी प्रासंगिक पहलुओं को ध्यान में रखते हुए समिति का मानना है कि मोर्य सिविल जज कैडर के पद पर नियुक्ति के योग्य नहीं हैं और उनका प्रतिनिधित्व अस्वीकार किया ही जाना चाहिए।”
न्यायमूर्ति रामचंद्र सिंह झाला और न्यायमूर्ति गोपाल किशन व्यास की पीठ ने उनके खिलाफ दर्ज मामलों के ब्यौरे देखने के बात कहा, "यह स्वीकार किया जाता है कि याचिकाकर्ता अनुसूचित जाति श्रेणी का है, जो समाज का कमजोर वर्ग है, जिसके खिलाफ दो झूठे मामले दर्ज किए गए थे, जिसके बाद जांच में पुलिस ने राय दी कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई और साधारण चोटों के अपराध के लिए उसके खिलाफ दर्ज दो अन्य मामलों में पार्टियों के बीच समझौता हुआ और समझौते के आधार पर उसे अदालत से बरी कर दिया गया। इसलिए हम राय से हैं कि समिति का निर्णय अवतार सिंह (सुप्रा) के मामले में फैसले की भावना के अनुरूप नहीं है। "
अदालत ने आगे कहा: "यह मामले का महत्वपूर्ण पहलू है कि याचिकाकर्ता जो एससी श्रेणी से संबंधित है, जो कि समाज का कमजोर वर्ग है, प्रतिस्पर्धी परीक्षा में शामिल हुआ और अपने प्रदर्शन के आधार पर सफल हुआ और नियुक्ति की सिफारिश की गई। लेकिन आवेदन जमा करने से पहले उसके खिलाफ कुछ मामलों का पंजीकरण होने के कारण माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर ध्यान दिए बिना नियुक्ति को अस्वीकार कर दिया गया है।
हमारी राय में समिति निष्पक्ष रूप से याचिकाकर्ता के मामले में नियुक्ति के लिए विचार करने के लिए कानूनी दायित्व में थी क्योंकि कमजोर वर्ग के एक व्यक्ति को उनके कानूनी अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता जो प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा के माध्यम से उनके द्वारा प्राप्त किया जाता है।”
मोर्य की नियुक्ति को रद्द करना कानून में ना टिकने वाला और असंवैधानिक बताते हुए बेंच ने कहा: "ऐसे मामलों में यदि नियुक्तियों को आकस्मिक रूप से नकार दिया जाएगा तो कोई भी न्यायिक प्रणाली पर विश्वास नहीं करेगा। इसलिए यह नियोक्ता का कर्तव्य है कि उम्मीदवार की उपयुक्तता का निष्पक्ष मूल्यांकन करने के लिए अपने दिमाग का इस्तेमाल करे। यह कल्पना से परे है कि नियोक्ता आईपीसी की धारा 323 और 324 के तहत अपराध को अन्य जघन्य अपराध के समान समझेगा। "