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जामिया मिलिया इस्लामिया 'अल्पसंख्यक संस्था नहीं है’: केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया [शपथ पत्र पढ़ें]
![जामिया मिलिया इस्लामिया अल्पसंख्यक संस्था नहीं है’: केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया [शपथ पत्र पढ़ें] जामिया मिलिया इस्लामिया अल्पसंख्यक संस्था नहीं है’: केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट को बताया [शपथ पत्र पढ़ें]](http://hindi.livelaw.in/wp-content/uploads/2018/03/Jamia-Millia-Islamia-min.jpg)
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी हरिशंकर की दिल्ली उच्च न्यायालय की बेंच ने हाल ही में 5 मार्च 2018 कोकेंद्र सरकार कीसंशोधित शपथ पत्र को दर्ज करने की याचिका को मंजूरी दी जिसमें विजय कुमार शर्मा बनाम राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानआयोग और अन्य संगठनों संबंधीडब्लूपी (सी) 1971- 2011 में केंद्र सरकार ने अपना रुख बदला है।इसके अलावा केंद्र सरकार की याचिका के किसी भी विरोध की अनुपस्थिति में 29 अगस्त, 2011 के पहले हलफनामे को रिकॉर्ड से हटा दिया गया है।
29 अगस्त, 2011 को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तत्कालीन मंत्री कपिल सिब्बल ने न्यायालय में एक हलफनामा जमा करते हुए कहा था कि सरकार राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान (एनसीएमआई) द्वारा की गई घोषणा का सम्मान करती है जिसमें कहा गया कि जामिया मिलिया इस्लामिया एक धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थाहै।
हालांकि संशोधित हलफनामे के मद्देनजर यह विचार अधिक स्पष्ट हो गया है जिसके तहत केंद्र ने अपने दृष्टिकोण में बदलाव को अपनाया है और कहा है कि भारत सरकार का पहला स्टैंड कानूनी स्थिति की गलत समझ है और इसे वापस ले लिया जा सकता है। पिछले हलफनामे में खामियां निकाली गई और संशोधित हलफनामे में कहा गया है कि पिछले शपथ पत्र ने एस अजीज बाशा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया [एआईआर 1968 एससी 662] का नोट नहीं लिया था जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला किया था कि संसद के अधिनियम के तहत स्थापितविश्वविद्यालय अल्पसंख्यक स्थिति का दावा नहीं कर सकता।
संशोधित हलफनामे के कुछ अंश निम्नानुसार हैं:
"एक केंद्रीय विश्वविद्यालय को अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थान के रूप में माननाकानून के विपरीत है और इसकी स्थिति को कम करने के अलावा यह एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के मूल सिद्धांत के खिलाफ है।
कल्पना के जरिए अनुच्छेद 30 (1) का इस तरग मतलब नहीं निकाला जा सकता कि अगर एक केंद्रीय कानून द्वारा शैक्षिक संस्था की स्थापना की गई हो, तो अभी भी अल्पसंख्यक को इसका प्रशासन करने का अधिकार है। "
2011 में एनसीएमआई ने जामिया मिलिया इस्लामिया को एक धार्मिक अल्पसंख्यक संस्था के रूप में घोषित किया था क्योंकि जामिया मिलिया इस्लामिया मुस्लिमों द्वारा समुदाय के लाभ के लिए स्थापित किया गया था और मुस्लिम अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान के रूप में इसने कभी भी अपनी पहचान नहीं खोई।
आयोग ने यह भी कहा था कि संस्थान "अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के राष्ट्रीय आयोग की धारा 2 (जी) के अलावा “ अनुच्छेद 30 (1) के तहत शामिल था। दिलचस्प बात यह है कि केंद्र सरकार का ये अस्थिर दृष्टिकोण जनवरी 2016 में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के सामने भी दिखा था जिसमें पूर्व अटार्नी जनरल ने आवाज उठाई कि एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
संयोग से अनुच्छेद 30 (1) अल्पसंख्यकों को धर्म या भाषा के आधार पर, 'अपनी पसंद के शैक्षिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन' करने का अधिकार देता है।
उल्लेखनीय है कि अनुच्छेद 30 (2) के तहत राज्य, शैक्षिक संस्थानों को सहायता देने में किसी भी शैक्षणिक संस्थान के साथ इसलिए भेदभाव नहीं कर सकता क्योंकि वो अल्पसंख्यक संस्था है।
जेएमआई अधिनियम की धारा 2 (ओ) के अनुसार जामिया मिलिया इस्लामिया को 1920 में अलीगढ़ में मुस्लिम राष्ट्रवादी नेताओं द्वारा महात्मा गांधी द्वारा ब्रिटिश शासन के समर्थन या उनके द्वारा चलने वाले सभी शैक्षणिक संस्थानों के बहिष्कार के जवाब में स्थापित किया गया था राष्ट्रवादी शिक्षक समूह और छात्रों ने अपने समर्थक ब्रिटिश झुकावों के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छोड़ दिया।
इस आंदोलन के प्रमुख सदस्य मौलाना महमूद हसन, मौलाना मोहम्मद अली, हाकिम अजमल खान, डॉ मुख्तार अहमद अंसारी और अब्दुल माजिद ख्वाजा थे। 1988 में भारतीय संसद के एक अधिनियम द्वारा जामिया मिलिया इस्लामिया एक केंद्रीय विश्वविद्यालय बन गया।